क्या है अक्षय तृतीया का महत्व, क्यों होता है इसका इंतजार?
कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पवित्र मानी जाने वाली अक्षय तृतीया पर्व हिन्दू श्रद्धालू उपवास और दान आदि कर्म फल को अक्षय मानते हैं।
लखनऊ। अक्षय तृतीया अर्थात ऐसी तृतीया तिथि जिसका कभी क्षय न हो। इस दिन करने वाले कार्य का कभी क्षय नहीं होता है, चाहे वह पुण्य कार्य हो पाप कर्म। अतः अक्षय तृतीया को पुण्य कर्म करना ही लाभकारी रहता है। इस बार अक्षय तृतीया को लेकर थोड़ा भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ पंचागों में 28 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और कुछ में 29 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। अब सवाल उठता है कि जनमानस खरीद्दारी कब करें 28 अप्रैल को या फिर 29 अप्रैल को ? read also : इस साल दो दिन मनेगी अक्षय तृतीया: जानिए पूजा का सही समय
भविष्य पुराण के अनुसार यदि अक्षय तृतीया वाले दिन कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो प्रशस्त माना गया है। 28 अप्रैल को सुबह 10: 31 मिनट तक तृतीया है, जो 29 अप्रैल को प्रातः 6: 56 मिनट तक रहेगी। 28 अप्रैल को अपरान्ह 1: 40 मिनट तक कृतिका नक्षत्र है तत्पश्चात रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ हो जायेगा,जो 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक रहेगा। इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो रहा है। खरीद्दारी का शुभ मुहूर्त-28 अप्रैल मध्यान्ह 12:20 मिमट से रात्रि 10 बजे तक रहेगा और फिर 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
उपवास और दान आदि कर्म फल को अक्षय मानते हैं
कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पवित्र मानी जाने वाली अक्षय तृतीया पर्व हिन्दू श्रद्धालू उपवास और दान आदि कर्म फल को अक्षय मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु वैशाख मास की अक्षय तृतीया को अवतरित हुये थे। भगवान विष्णु को गरीबों की सहायता करना एंव सहयोग करना बेहद प्रिय है। वर्तमान समय में अक्षय तृतीया के दिन सोना, चॉंदी एंव आभूषण खरीदना एक तरह का फैशन बन गया है। यह चलन सिर्फ व्यावसायिकता का प्रतीक और कुछ नहीं। इसका कोई शास्त्रीय आधार या उल्लेख वर्णित नहीं है।
अक्षय तृतीया में क्या दान करें
अक्षय
तृतीया
का
पर्व
ग्रीष्म
ऋतृ
में
पड़ता
है,
इसलिए
इस
पर्व
पर
ऐसी
वस्तुओं
का
दान
करना
चाहिए
।
जो
गर्मी
में
उपयोगी
एंव
राहत
प्रदान
करने
वाली
हो।
इस
दिन
दान
एंव
उपवास
करने
हजार
गुना
फल
मिलता
है।
अक्षय
तृतीया
के
दिन
महालक्ष्मी
की
साधना
विशेष
लाभकारी
एंव
फलदायक
सिद्ध
हेाती
है।
ज्येष्ठ
महीना
शुरू
होने
से
पूर्व
ही
वैशाख
शुक्ल
पक्ष
को
अक्षय
तृतीया
का
पर्व
रखा
है,
जिसमें
छाता,
दही,
जूता-चप्पल,
जल
का
घड़ा,
सत्तू,
खरबूजा,
तरबूज,
बेल
का
सरबत,
मीठा
जल,
हाथ
वाले
पंखे,
टोपी,
सुराही
आदि
वस्तुओं
का
दान
करने
का
विधान
रखा
गया
है।
अतः
हम
तपती
गर्मी
आने
से
पूर्व
स्वास्थ्य
के
अनुकूल
इन
वस्तुओं
को
सेंवन
करें
एंव
दान
करें।
विशेष-1
जिन
जातकों
के
कार्यो
अड़चने
आ
रही
हैं,
या
फिर
जिनके
व्यापार
में
लगातर
हानि
हो
रही
है।
अधिक
परिश्रम
के
बावजूद
भी
धन
नहीं
टिकता
है
एंव
घर
में
अशान्ति
बनी
रहती
है।
सन्तान
मनोकूल
कार्य
न
करें
तथा
विरोधी
चॅहुओर
से
परेशान
कर
रहें।
जिन
महिलाओं
के
वैवाहिक
सुख
में
तनाव
की
स्थिति
बनी
रहती
है।
उपरोक्त
समस्याओं
से
जूझ
रहे
जातक
अक्षय
तृतीया
का
व्रत
रखकर
और
गर्मी
में
निम्न
वस्तुओं
जैसे-छाता,
दही,
जूता-चप्पल,
जल
का
घड़ा,
सत्तू,
खरबूजा,
तरबूज,
बेल
का
सरबत,
मीठा
जल,
हाथ
वाले
पंखे,
टोपी,
सुराही
आदि
वस्तुओं
का
दान
करने
से
उपरोक्त
समस्याओं
से
मुक्ति
मिलती
है।
''शुध्यन्ति
दानः
सन्तुष्टया
द्रवयाणि''
अर्थात
धन
दान
और
सन्तोष
से
विशुद्ध
होता
है।
अक्षय तृतीया का महत्व
वैशाख
के
शुक्ल
पक्ष
की
तृतीया
को
अक्षय
तृतीया
कहते
है।
पौराणिक
ग्रन्थों
के
अनुसार
इस
दिन
जो
भी
पुण्य
कर्म
किये
जाते
है,
उनका
फल
अक्षय
होता
है।
1-
भविष्य
पुराण
के
अनुसार
इस
तिथि
की
युगादि
तिथियों
में
गणना
होती
है।
2-
सतयुग
और
त्रेता
युग
का
प्रारम्भ
भी
इसी
तिथि
को
हुआ
था।
3-
भगवान
विष्णु
ने
नर-नारायण
और
परशुराम
का
अवतरण
अक्षय
तुतीया
को
ही
हुआ
था।
4-
ब्रह्रमा
जी
के
पुत्र
अक्षय
कुमार
का
अविर्भाव
भी
इसी
तिथि
को
हुआ
था
इसीलिए
इसको
अक्षय
तिथि
कहते
है।
5-
इसी
तिथि
को
बद्रीनाथ
जी
की
प्रतिमा
स्थापित
कर
पूजन
किया
जाता
है
और
लक्ष्मी-नारायण
के
दर्शन
किये
जाते
है।
6-
उत्तराखण्ड
के
प्रसिद्ध
तीर्थ-स्थल
बद्रीनाथ
के
कपाट
भी
इसी
तिथि
को
खोले
जाते
है।
महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था
7-
वृन्दावन
स्थित
श्री
बॉके
बिहारी
जी
के
मन्दिर
में
केवल
इसी
दिन
विग्रह
के
चरण
दर्शन
होते
है
अन्यथा
बॉके
बिहारी
पूरे
वर्ष
वस्त्रों
से
ढके
रहते
है।
8-अक्षय
तृतीया
21
घटी
21
पल
होती
है।
9-इसी
तिथि
को
महाभारत
का
युद्ध
समाप्त
हुआ
था।
10-द्वापर
युग
का
समापन
भी
इसी
तिथि
को
हुआ
था।
11-इस
तिथि
को
बिना
पंचाग
देखे
कोई
शुभ
व
मॉगलिक
कार्य
जैसे-
विवाह,
गुह
प्रवेश,
वस्त्र-आभूषण
खरीदना,
वाहन
एंव
घर
आदि
खरीदा
जा
सकता
है।
12-
अक्षय
तृतीय
यदि
सोमवार
तथा
रोहिणी
नक्षत्र
के
दिन
पड़े
तो
इसका
फल
कई
गुना
अधिक
हो
जाता
है।
13-
तृतीया
मध्यान्ह
से
पहले
शुरू
होकर
प्रदोष
काल
तक
रहे
तो
बहुत
श्रेष्ठ
माना
जाता
है।
14-
यह
तिथि
वसन्त
ऋतु
के
अन्त
और
ग्रीष्म
ऋतु
के
प्रारम्भ
का
संकेत
है।
15-
चारो
धाम
की
यात्रा
भी
इसी
तिथि
से
शुरू
हो
रही
है।