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Mulayari : 50 साल में एक बार उपजती है चावल की ये खास किस्म, जानिए Bamboo Rice की खासियत

अगर आप चावल खाने के शौकीन हैं तो ये खबर आपके लिए रोचक है। क्या आपने बांस के चावल (bamboo rice) के बारे में सुना है ? केरल में पैदा होने वाली मुलायारी राइस (mulayari rice) 50 साल में एक बार पैदा होती है। पढ़िए रिपोर्ट

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तिरुवनंंतपुरम (केरल), 14 मई : बैम्बू राइस (bamboo rice) चावल की उस खास किस्म का नाम है जो 50 साल में केवल एक बार उपजती है। मुख्य रूप से केरल में पाए जाने वाले इस चावल को मुलायारी राइस (mulayari rice) भी कहा जाता है। वनइंडिया हिंदी इससे पहले भारत में पैदा होने वाले जीआई टैग वाले चावलों की रिपोर्ट प्रकाशित कर चुका है। उस रिपोर्ट में हमने बताया था कि अलग-अलग राज्यों में पैदा होने वाली चावल की किस्मों की विशेषताएं क्या हैं। आज की इस विशेष रिपोर्ट में पढ़िए मुलायारी राइस से जुड़े कुछ रोचक तथ्य। बता दें कि मलयालम भाषी लोगों और केरल की संस्कृति में मुलायारी चावल का इस्तेमाल खीर बनाने में भी किया जाता है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में मुलायारी की कीमत 500 रुपये प्रतिकिलो तक बताई गई है।

मुलायारी राइस : पोषक तत्वों का खजाना

मुलायारी राइस : पोषक तत्वों का खजाना

चावल खाने के शौकीन लोग सफेद और ब्राउन राइस के बारे में तो जिक्र करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी बांस के चावल (बैम्बू राइस) का जिक्र सुना है। बांस के चावल को मुलायारी राइस (Mulayari Rice) भी कहा जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर मुलायारी राइस की सबसे खास बात इसका 50 साल में एक बार उपजना है। बैम्बूू राइस (bamboo rice nutrition) में प्रचूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। यह चावल और गेंहू से भी ज्यादा पौष्टिक माना जाता है। बांस के चावल का सेवन जोड़ों के दर्द, कमर दर्द जैसी परेशानियों में राहत पहुंचाता है। मुलायारी चावल का सेवन करने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती।

दूसरे चावलों से अलग बैम्बू राइस

दूसरे चावलों से अलग बैम्बू राइस

बांस के चावल (Bamboo Rice) दूसरे चावलों की तरह धान से नहीं निकलता, बल्कि बैंबू के बीज (Bamboo seed) को मुलायारी या बैम्बू राइस या बांस का चावल कहा जाता है। जनजातीय समाज के लोग मुलायारी को पकाकर खीर व अन्य पकवान तैयार करते हैं। जब एक बांस का पेड़ अपने अंतिम समय में होता है तो मुलायारी राइस उपजता है। मरने वाले बांस की गोली के बीज के रूप में जाना जाने वाला मुलायारी राइस सामान्य बाजार में तो नहीं मिलता लेकिन, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन बैम्बू राइस खरीदने का विकल्प देखा गया है। बांस के जीवन काल यानी लगभद 50-60 साल में पैदा होने वाला बैम्बू राइस आदिवासियों की आय का प्रमुख श्रोत है।

फैट फ्री होता है मुलायारी राइस

फैट फ्री होता है मुलायारी राइस

बता दें कि भारत में चावल की हजारों किस्में उपजती हैं। 15 चावलों को जीआई टैग उनकी विशेषता के कारण मिले हैं। असम के बोका चाउल को भी जीआई टैग मिला है। इसका जिक्र इसलिए क्योंकि बोका चाउल बिना पकाए खाया जाता है। चावल की हजारों किस्मों में एक बांस का चावल भी है। दूसरे चावलों की अपेक्षा ज्यादा पौष्टिक तत्व वाले बैम्बू या मुलायारी राइस का स्वाद गेहूं जैसा होता है। शुरुआत में मुलायारी राइस का रंग बांस की तरह हरा होता है। बांस के चावल का सेवन डायबिटिज के मरीजों को फायदा पहुंचाता है। एक और खासियत मुलायारी चावल का फैटफ्री (mulayari rice fat free) होना है। यानी ऐसे लोग जो चावल खाने की चाह मोटापे के डर के कारण भुला देते हैं, वे भी बैम्बू राइस का स्वाद ले सकते हैं।

बांस का चावल गुणों का भंडार

बांस का चावल गुणों का भंडार

मुलायारी या बैम्बू राइस बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं होता। प्रचलन नहीं होने के कारण इसकी सप्लाई भी काफी कम है। इसका एक कारण मुलायारी राइस की खेती में लगने वाला समय है। चेन्नई में मुलायारी राइस की कीमत 100 से 120 प्रति किलो से शुरू होती है। अलग-अलग क्वालिटी के मुलायारी राइस की कीमत भी ऊंची होती है। इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल लेवल नियंत्रित रहता है। बैम्बू राइस खाने वाले पुरुषों की प्रजनन क्षमता में भी इजाफा होने की खबरें सामने आ चुकी हैं। मुलायारी राइस स्पर्म काउंट बढ़ाने में मदद करता है। पुरुषों के अलावा महिलाओं के लिए भी मुलायारी चावल काफी फायदेमंद है।

एक दाने में पूरे बांस की ताकत

पूर्वोत्तर भारत के राज्यों सहित चीन और जापान में बैम्बू राइस काफी लोकप्रिय है। बांस के चावल के अलावा यहां बांस की कोंपल (shoots) का इस्तेमाल भी खाने-पीने की चीजें बनाने में किया जाता है। दी हिंदू डॉटकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक बैम्बू राइस के एक दाने में पूरे बांस की ताकत होती है। चीनी लोगों का मानना है कि बांस अपने अंतिम दिनों में मुलायारी का उत्पादन करता है जो अगली पीढ़ी के लिए एक तरह का सर्वोच्च बलिदान करता है।

बांस के चावल की कटाई और कुकिंग

बांस के चावल की कटाई और कुकिंग

आम तौर से बांस की झाड़ में फूल लगाए नहीं खिलते। खुद उगने वाले ये फूल 50-60 वर्षों में एक बार ही खिलते हैं। मतलब 100 सालों में केवल दो बार। मुलायारी चावल जमा करने के लिए बांस के फूल के आसपास सफाई की जाती है। फूल पर मिट्टी लपेटी जाती है। मिट्टी सूखने के बाद उसमें से चावल के दाने निकाले जाते हैं। सामान्य रूप से भी चावल झड़ते हैं। झाड़ू की मदद से मुलायारी राइस को जमा कर इनकी गंदगी साफ की जाती है। जमा करने में आसानी के लि तिरपाल बिछाए जाते हैं।

Bamboo Rice पकाने के तरीके

पौष्टिक गुणों से भरपूर मुलायारी राइस को किसी भी दूसरी चावल की किस्म की तरह ही आग पर पकाया जाता है। इसका नैचुरल स्वाद मीठा होता है। पकने के बाद मुलायारी की बनावट में अंतर साफ दिखता है। बैम्बू राइस का इस्तेमाल खिचड़ी या खीर बनाने में किया जाता है। हालांकि, अब इसे और स्वादिष्ट और लोकप्रिय बनाने के लिए मुलायारी राइस से कुकीज भी बनाई जा रही हैं। दी हिंदू डॉटकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक बांस के घने समूह (Grove) से 500 किलो तक मुलायारी राइस मिल सकता है।

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English summary
know about special variety of rice Mulayari from kerala. mulayari rice is also known as Bamboo Rice, grows once in 50 years.
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