Jammu Kashmir Sericulture से बदलेगा किसानों की किस्मत, 91 करोड़ की लागत से बदलाव की बयार, 22 हजार नौकरियां
जम्मू-कश्मीर सरकार ने रेशम उत्पादन में दोबारा जान फूंकने का फैसला लिया है। 100 नए पालन केंद्र स्थापित करने के लिए 91 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी गई है।
Jammu Kashmir Sericulture की दुनिया में नए युग का सूत्रपात कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने 91 करोड़ रुपये के निवेश का फैसला लिया है। इस फंड की मदद से 91 Rearing Centres की स्थापना होगी। अनुमान है कि इससे लगभग 22 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। जम्मू कश्मीर सरकार ने तकनीक का इस्तेमाल कर प्रदेश में रेशम उद्योग के पुनरुद्धार के लिए 91 करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना को मंजूरी दी है।
रेशम की गुणवत्ता बेहतर करने पर फोकस
जम्मू कश्मीर में सेरीकल्चर परियोजना के तहत शहतूत के पत्तों की उपलब्धता से लेकर बेहतर बीज और कृमि उत्पादन तक और अंत में रीलिंग सुविधाओं की वृद्धि पर फोकस किया जाएगा। अनुमान के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में उत्पादित कोकून की संख्या दोगुनी हो जाएगी। रेशम की गुणवत्ता बेहतर करने के अलावा वैल्यू एडिशन को भी बढ़ावा मिलेगा। जम्मू में अत्याधुनिक स्वचालित रीलिंग सेंटर की स्थापना होगी।
दुनियाभर में लोकप्रिय है JK का रेशम
गौरतलब है कि सेरीकल्चर या रेशम उत्पादन का जम्मू कश्मीर में पुराना इतिहास रहा है। स्थानीय के साथ विदेशी बाजार में भी यहां का रेशम बेहद लोकप्रिय है। उच्च गुणवत्ता वाले द्विप्रज रेशम (bivoltine silk) के लिए पॉपुलर जम्मू कश्मीर पूरे देश में प्रमुख रेशम उत्पादक केंद्र बनने की क्षमता रखता है। चुनौतियों के बावजूद बेहतर रेशम की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उद्योग का आधुनिकीकरण जरूरी था।
बायवोल्टाइन कोकून का उत्पादन, आय भी बढ़ेगी
91 करोड़ के निवेश के फैसले के बारे में कृषि उत्पादन विभाग के मुख्य सचिव अटल डुल्लू ने कहा, रेशम पालन एकमात्र नकदी फसल है जो कम समय में अच्छा रिटर्न सुनिश्चित करती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ये काफी अहम है। जम्मू कश्मीर उच्च गुणवत्ता वाले बायवोल्टाइन कोकून का उत्पादन करता है, लेकिन उत्पादकता और कुल कोकून उत्पादन कम है। निवेश के बाद उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि बीज की गुणवत्ता में सुधार, पालन-पोषण की सुविधा और कोकून प्रसंस्करण से क्षेत्र को बहुत मदद मिलेगी और कृषि स्तर पर आय में भी सुधार होगा।
निर्यात बाजार लगभग $ 250 मिलियन
आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. मंगला राय की अध्यक्षता में गठित समिति की तरफ से जम्मू-कश्मीर में सेरीकल्चर को मजबूत करने में तकनीक के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। जम्मू-कश्मीर के सेरीकल्चर के निदेशक मंजूर कादरी ने बताया, जम्मू-कश्मीर में रेशम उत्पादन उद्योग के सामने मुख्य चुनौतियों में से एक आधुनिक तकनीक तक पहुंच की कमी को माना गया। कई किसान अभी भी रेशम उत्पादन के पारंपरिक तरीकों का उपयोग करते हैं। इसमें समय भी लगता है और क्वालिटी भी उतनी अच्छी नहीं होती। तकनीक के अभाव में भारतीय रेशम के लिए $ 250 मिलियन के निर्यात बाजार से लाभ प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। अब 91 करोड़ की लागत से 100 केंद्रों की स्थापना एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के रेशम को वैश्विक ख्याति दिलाएगा।
22 हजार लोगों को काम, मिलेंगे अच्छे दाम
परियोजना के तहत ट्री मोड में 10 लाख नए शहतूत के पौधे लगाए जाएंगे। रेशमकीट बीज उत्पादन को 8 लाख से बढ़ाकर 16 लाख यानी दोगुना करने का प्रयास, कोकून उत्पादन को 700 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 1350 मीट्रिक टन करना, 100 नए चौकी पालन केंद्रों (chawki rearing centres) की स्थापना, किसानों को चौकी कीड़ों (chawki worms) की आपूर्ति, 7000 नए रेशमकीट किसानों को रोजगार के साथ-साथ मौजूदा 15000 किसानों का कौशल विकास भी इस परियोजना का मकसद है। यानी लगभग 22 हजार लोगों को रेशम से जुड़े काम मिलेंगे। ऑटोमैटिक रीलिंग मशीन (ARM) के रूप में रेशम की गुणवत्ता और वैल्यू एडिशन के प्रयास किए जा रहा हैं। इससे लगभग 2000 सेरी-किसानों को फायदा होगा।
रेशम को बढ़ावा देने का मकसद
सहायक प्रोफेसर डॉ फिरदौस अहमद मलिक ने बताया कि परियोजना का मकसद जम्मू-कश्मीर के रेशम उत्पादन के किसानों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। कुल मिलाकर, यह परियोजना केंद्र शासित प्रदेश के रेशम उत्पादन उद्योग को पुनर्जीवित और आधुनिक बनाने के लिए लागू की जा रही है। रेशम के उत्पादन और गुणवत्ता में अनुमानित वृद्धि के साथ-साथ इसमें शामिल लोगों की आजीविका बेहतर करने में मदद मिलेगी। आने वाले दिनों में रेशम का जम्मू कश्मीर के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदान होगा।
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