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मौसमी मिजाज ने छीनी अन्नदाता से रोटी और हम कहते हैं वाह क्या मौसम है....

By रेखा पचौरी
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सर पर साफ़ा, सूती कुरता, घिसा हुआ पजामा, जगह-जगह से फटी मोजरी, झुलसी हुई त्वचा, शरीर छूने पर चुभती हड्डियाँ, माथे पर चिंता की चिर लकीरें और आँखों में बुझती सी उम्मीद...

Rains Destroy 50,000 Hectares of Crops, Farmer Suicides Continue

एक कृषि प्रधान देश के किसान की यही पहचान है| पिछले कुछ दिनों में किसानो के साथ जो भी हुआ उसकी कल्पना करना भी दुखद है. इस साल के शुरुआत से अब तक करीब 250 किसानों ने आत्महत्या कर ली और पिछले साल करीब 1109 किसानों ने| अजीब लगता है न कि जो किसान देश भर के लोगों का पेट भरता है वो किसान खुद के घर का पेट नहीं भर पाया|

बादलों का इंतज़ार प्रेमियों के अलावा किसान भी करता है

बादलों का इंतज़ार प्रेमियों के अलावा किसान भी करता है क्योंकि उसे लगता है कि बारिश की अमृत बूंदे जब उसके खेत की मिटटी को अपने आँचल में समेत लेंगी तो जो उसकी ज़मीन सोना बरसायेगी और वो ख़ुद के घर के साथ हज़ारों घरों को रोटी दे पायेगा लेकिन जब वही अमृत बूँदें कहर ढाने पर आमादा हो जाती हैं तब केवल भगवान के आगे हाथ फ़ैलाने के अलावा उसके पास कुछ नहीं बचता, उम्मीद भी नहीं।

उसकी एक मात्र पूंजी, उसकी फसल को ओलावृष्टि अपने तले रौंद देती है तब हम एहसास भी नहीं कर सकते कि अपनी पूंजी को यूँ लुटता देख उसका दिल चीत्कार कर उठा होगा. सोच कर बड़ा अजीब लगता है जब हम खुद को पतला करने की खातिर "हेल्दी फ़ूड" खा रहे होते हैं या खाना छोड़ देते हैं और जिनकी वजह से हम खा पा रहे हैं उनके बच्चे भूखे पेट सो जाते हैं।

Rains Destroy 50,000 Hectares of Crops, Farmer Suicides Continue

अपने परिवार को यूँ तन्हा छोड़कर जाने की हिम्मत करना आसान नहीं होता, शायद वो समझ चुके होते हैं कि अब कम से कम वो अपने परिवार को नहीं पाल सकेंगे और इस दुःख में खुद को डुबोकर फिर से परिवार के लिए बोझ बनकर जीने से अच्छा वो मरना पसंद करते हैं, वे तो मर जाते हैं उनके परिवार पर इसके बाद क्या असर पड़ता है इसकी भी कल्पना करना हम सबकी सोच से परे है।

उस किसान की अपने बच्चे को बड़ा अफ़सर बनाने की आशा के चीथड़े हाथ में आते हैं, जवानी में बूढ़ी हो गयी बीवी के आने वाले सुनहरे दिनों की उम्मीद हवा बनकर उसी के सफ़ेद-काले बालों को और बिखरा कर निकल जाती है, क़र्ज़ में डूबे परिवार को उससे निकालने की ज़द्दोजहद किसान को समय से पहले ही चिंताओं का किला बना देती है और ये चिंता धीरे धीरे उसकी चिता तैयार कर रही होती है, अब इन सबका कारण कौन? शायद कोई नहीं।

Rains Destroy 50,000 Hectares of Crops, Farmer Suicides Continue

हम जैसे लोगों को सुहाने मौसम से मतलब है और राजनीतिज्ञों को इनकी मौत पर एसी कमरे में से बैठकर राजनीति करने से,कारण यही लोग खुद हैं जिन्हें उनका हक़ भी एहसान समझ कर दिया जाता है।

आम लोगों को मौसम से और नेताओं को राजनीति से मतलब है

इस देश में आय का वितरण बेहद असमान है, अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब के पास अब कुछ बचा नहीं है। एक किसान भूखे पेट अपनी जान दे देता है और एक तरफ रोटी की जगह पिज़्ज़ा, बर्गर सरीखे विकल्प मौजूद हैं, जिस असमय मौसम में हम बारिश में चाय पकौड़ों का लुत्फ़ ले रहे होते हैं ठीक उसी वक़्त उन बेवक्त आंधी, ओले और बारिश की बूंदों से आहत सैकड़ों जानें रस्सी का एक सिरा गले में बांधकर खुद को इन सब परेशानियों से आज़ाद कर लेती हैं और उनके परिवार के लिए अब जब-जब बारिश होगी, उनके जख्मों पर नमक की बूंदे डाल कर उन्हें को हरा कर देगी और हम कह रहे होंगे कि आहा कितना सुहाना मौसम है।

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English summary
Unseasonal rains and hailstorm damaged standing Rabi crops in nearly 50,000 hectares of land impacting one lakh farmers in Vidarbha this year, even as farmer suicides continued unabated in the region, deepening the agrarian crisis there.
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