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MP चुनाव में आसान नहीं होगी सीएम शिवराज की राह, क्या सिंधिया बनेंगे रोड़ा?

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Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chouhan

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेसी हावी है। शिवराज सिंह चौहान नवंबर 2005 से मुख्यमंत्री बने हुए हैं, जनता में ऊब दिख रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जब से बीजेपी में आए हैं, शिवराज के लिए समस्याएं बढ़ी हैं। सिंधिया को पूरा मध्यप्रदेश जानता है और थोड़ी मेहनत करके जन नेता वाला तमगा मिल सकता है। तो वहीं, शिवराज के विकल्पों में बहुत सारे नाम हैं और इनमे से कई अब टीम सिंधिया के होती दिखाई दे रहे हैं। मंत्रिमंडल में भी शिवराज की पसंद के लोग कम, सिंधिया के समर्थकों को अच्छे पद, जिससे सिंधिया का दबदबा कायम है।

बीजेपी की एक बात जो कांग्रेस से उसको बिल्कुल जुदा करती है वो है आंतरिक मनमुटाव होने के बावजूद बाहरी तौर पर एकजुट दिखाई देना। मध्यप्रदेश में भी ये फॉर्मूला हमेशा देखने को मिलता है। मसलन यह चर्चे आम हैं कि सिंधिया खेमा, शिवराज खेमा और पार्टी के अन्य प्रथम पंक्ति के नेताओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, लेकिन इसके उदाहरण यदा कदा ही बीजेपी की चार दीवारी से बाहर आ पाते हैं। हालांकि, हाल फिलहाल की राजनीतिक चहल पहल को देखें तो बीजेपी में सब कुछ ठीक चल रहा है वाली तस्वीर पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे आंतरिक कलह की गगरी छलक रही है।

वैसे आलाकमान ने प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने मध्यप्रदेश के दौरों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भरोसा जताया है लेकिन करीब 15-16 साल से प्रदेश एक ही मुख्यमंत्री को देखकर ऊब चुका है। यानी की एंटी इनकंबेंसी हावी है। ऐसे में चुनाव के पहले क्या कुछ होगा इसको लेकर सब सकते हैं।

शिवराज और एंटी इनकंबेंसी
यह बात मानने से कोई इंकार नहीं करता है कि शिवराज सिंह चौहान का जनता में दबदबा है, उनका अपना वोट बैंक है, लेकिन 2018 के चुनावों ने ये बता दिया था की जनता ऊबती है तो नुकसान होता है। 2020 में येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने के बाद फिर से शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने और जो जनता ऊब कर बीजेपी को हटाने के लिए वोट की थी उसको फिर से वही मुख्यमंत्री मिल गया। आने वाले विधानसभा चुनावों में शिवराज सिंह के विकल्पों के इर्द गिर्द जितनी चर्चाएं हैं वो सिर्फ एंटी इनकंबेंसी के चलते हैं।

राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि, 'बीजेपी के पास शिवराज को बदलने का एक ही कारण है वो है एंटी इनकंबेंसी। इसके अलावा कोई और कारण नजर नहीं आता है, क्योंकि सत्ता चलाने से लेकर और पार्टी के लिए मेहनत करने तक मुख्यमंत्री चौहान ने अच्छा परफॉर्म किया है, इतना अच्छा की अपनी अगली पंक्ति पैदा ही नहीं होने दी। छुटपुट नेता होते रहे, लेकिन कोई ऐसा नेता बीजेपी से उभरकर नहीं आया जो शिवराज सिंह चौहान जैसा जनता में पैठ रखता हो और सत्ता, एडमिनिस्ट्रेशन सब संभाल सकता हो।'

क्यों सिंधिया और शिवराज खेमे के बीच गहमागहमी की बात निकल रही है?
बीजेपी को दोबारा सत्ता में लाए ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी मध्यप्रदेश में अच्छी पकड़ है। आज की तारीख में शिवराज के बाद अगर बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश में जन नेता या ऐसा नेता जिसको प्रदेश भर की जनता जान रही है और जिस पर विश्वास कर सकती है वो सिंधिया ही हैं, मसलन चाहे गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा हों या केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, अपने इलाकों के अलावा प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में इन नेताओं की जनमानस में पूछ पहुंच लगभग ना के बराबर है। इसीलिए भी शिवराज के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष में रहते हुए भी और अब एक ही पार्टी में होने के बावजूद सिंधिया ही हैं। हालांकि सिंधिया के लिए भी राह आसान नहीं है, लेकिन इस पर चर्चा कभी और...।

सिंधिया के नजदीकी वो जिनकी शिवराज से है ठनी हुई?
बीजेपी में इन दिनों सब कुछ केंद्रीय नेतृत्व के ऊपर निर्भर हो गया है। प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर नेताओं तक सबको ये साफ हो गया है कि जो होना है दिल्ली से होना है और इसी के चलते सब लोग अपने अपने नेता अपना अपना खेमा तलाशने लगे हैं। वो लोग जिनका ओहदा तो है लेकिन पूछ परख नही वो भी छटपटा रहे हैं। सिंधिया की तारीफ तो खूब हो रही है, पिछले महीने उमा भारती ने सिंधिया को हीरा कहा था‌, अब ये हीरा शिवराज नाम के नगीने का काट है या नहीं ये तो समय बताएगा लेकिन टीम सिंधिया में लोग जुड़ते जा रहे हैं।

मंत्रि मंडल में भी शिवराज की पसंद के लोग कम, सिंधिया के समर्थकों को अच्छे पद
2020 के बाद से एमपी की राजनीति में उहापोह की स्थिति बनी रही है। बीजेपी के करीब सारे प्रथम पंक्ति के नेताओं ने अपनी दावेदारी रखने में कोई कसर नही छोड़ी, लेकिन कमान मिली शिवराज को। हालांकि इस बार कमान केंद्रीय नेतृत्व ने सौंपी और न की शिवराज ने कमाई और इसके चलते उनको कई जगह कॉम्प्रोमाइज करना पड़ा। मसलन सिंधिया के समर्थकों में से 9 लोग मंत्री पद पर हैं लेकिन शिवराज के खास लोगों की बात करें तो घूम फिरकर एक ही नाम खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह का आता है।

नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह शिवराज के काफी करीबी हैं और शायद वही बस इकलौते बचे भी हैं। वहीं सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं में से 9 नेताओं को मंत्री पद मिला और इससे सिंधिया के प्रति विश्वास के साथ ही बीजेपी ने नए लोगों को जिम्मेदारी और फायदा मिलने की बात पर जोर पड़ा है, लेकिन इन सबके चलते शिवराज की पकड़ जरूर कम हुई है। बहुत सारे कयास लगाए जा रहे हैं, हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने अब तक के कार्यकाल में अपने भविष्य को लेकर रास्ता साफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

राज्य के एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'यह बात सभी जानते हैं की शिवराज सिंह को लेकर जनता में गुस्सा भले ही न हो, लेकिन ऊब तो है ही। फिर बात आती है विकल्पों की तो शिवराज सिंह ने बीत 15 सालों में अपना कोई विकल्प पैदा ही नहीं होने दिया। पार्टी जब जिस मोड में दिखी शिवराज ने अपने आप को वैसा बना लिया। पहले जन नेता थे, फिर मोदी-योगी टाइप के नेता हो गए। जब जरूरत पड़ी तो चुप रहे जब जरूरत पड़ी तो उमा भारती के साथ हो गए और अपने ही शराब बिक्री नियमों और कानून के खिलाफ बोले। कुल मिलाकर जैसी नगरी वैसा भेष बनाने में शिवराज को महारत हासिल है और इसलिए चाहकर भी, एकाएक उनका विकल्प नहीं मिल पा रहा है।'

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पत्रकार आगे कहते हैं कि बीजेपी अगर गुजरात मॉडल पर भी चुनाव लड़ती है, तो भी शिवराज पर कैंची चलाने में सबसे बड़ी ढाल शिवराज की जनमानस में लोकप्रियता बनकर सामने आ जाएगी। इसीलिए नेताओं के पर तो कटेंगे, लेकिन शिवराज सिंह चौहान की उड़ान अभी खत्म होने से काफी दूर है।

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English summary
Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chouhan BJP leader Jyotiraditya Scindia
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