भगवान गणेश नहीं करना चाहते थे विवाह, फिर कैसे हुई उनकी शादी?
नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं गणेशजी विवाह करने के बिलकुल इच्छुक नहीं थे। उन्हें अपनी साधना-तपस्या करना और स्वच्छंद विचरण करना अत्यधिक प्रिय था। वे सदैव अकेले रहना चाहते थे और विवाह से सदैव दूर भागते थे। फिर आखिर किसने उन्हें श्राप दे दिया, जिसके कारण उन्हें विवाह करना पड़ा और वह भी दो-दो स्त्रियों से।

आइए इस पौराणिक कथा के माध्यम से जानते हैं :
एक समय की बात है। नवयौवन से संपन्न तुलसीदेवी तपस्या करने के लिए तीर्थो में भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर जा पहुंची। वहां उन्होंने गणेशजी को ध्यान करते हुए देखा। गणेशजी किशोरवय, नवयौवन से संपन्न, अत्यंत सुंदर पीतांबर धारण किए हुए थे। उनके पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगा हुआ था। वे सुंदर रत्नों से सुशोभित हो रहे थे। मंद-मंद मुस्कुराते हुए नारायण का ध्यान कर रहे थे। उन्हें देखकर तुलसीदेवी उनकी ओर आकर्षित हो गई, परंतु उन्हें गणेशजी की गजमुख और लंबोदर होने का कारण समझ नहीं आ रहा था। गणेशजी को देखकर वे आकर्षित तो थी, परंतु उन्हें हंसी आ गई। इससे गणेशजी का ध्यान भंग हुआ। गणेशजी ने पूछा वत्से तुम कौन हो? किसकी कन्या हो? तुम्हारे यहां आने का कारण क्या है? यह मुझे बताओ। क्या तुम जानती नहीं तपस्वियों का ध्यान भंग करना सदा पापजनक और अमंगलकारी होता है।
तुलसी ने कहा- प्रभो! मैं धर्मात्मज की नवयुवती कन्या हूं
इस पर तुलसी ने कहा- प्रभो! मैं धर्मात्मज की नवयुवती कन्या हूं। मैं पति की प्राप्ति के लिए तपस्या में संलग्न हूं। अत: आप मुझसे विवाह कर लीजिए। यह सुनकर अगाध बुद्धिसंपन्न गणेशजी ने नारायण का स्मरण करते हुए कहा- हे माता! विवाह के विषय में मेरी बिलकुल रुचि नहीं है। मैं सदैव अपनी तपस्या में लीन रहना चाहता हूं। विवाह दुख का कारण होता है। यह हरि भक्ति में व्यवधान डालता है, तपस्या का नाश करता है, भव बंधन की रस्सी है, गर्भवासकारक है। इसलिए तुम मेरी ओर से अपना ध्यान हटा लो और अपने लिए कोई अन्य योग्य वर की तलाश करो।
'विवाह से भाग रहे हैं तो आपका विवाह अवश्य होगा'
गणेशजी के ऐसे वचन सुनकर तुलसी को क्रोध आ गया। वे गणेशजी को श्राप देते हुए बोली- आपने मेरा अनादर किया है। विवाह से भाग रहे हैं तो आपका विवाह अवश्य होगा और दो-दो बार होगा। यह सुनकर गणेशजी ने भी तुलसी को श्राप दिया कि- देवी! तुम निस्संदेह असुरों द्वारा ग्रस्त हो जाओगी। इसके पश्चात महापुरुषों के श्राप से तुम वृक्ष हो जाओगी। गणेशजी के श्राप से तुलसी चिरकाल तक दैत्यराज शंखचूड़ की पत्नी बनी रही। इसके बाद शंखचूड़ शिवजी के त्रिशूल से मृत्यु को प्राप्त हो गया तब तुलसी वृक्ष बन गई।
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