महाकुंभ: फिर अदृश्य हो जाएंगे नागा संन्यासी
संगम (इलाहाबाद)। तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर चल रहे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम-महाकुंभ मेले में वसंत पंचमी के आखिरी शाही स्नान के बाद अब अखाड़े अपना बोरिया-बिस्तर समेटने लगे हैं। एक बार फिर नागा संन्यासी देश-दुनिया के लिए अदृश्य हो जाएंगे और इनका जीवन फिर से रहस्यमय हो जाएगा।
वैसे
तो
महाकुंभ
मेले
में
अभी
दो
शाही
स्नान
(माघी
पूर्णिमा-महाशिवरात्रि)
बाकी
हैं,
लेकिन
अखाड़ों
के
नागा
साधु
वसंत
पंचमी
को
ही
अपना
आखिरी
शाही
स्नान
मानकर
महाकुंभ
मेले
का
समापन
मानते
हैं।
15
फरवरी
को
सम्पन्न
हुए
वसंत
पंचमी
के
स्नान
पर्व
के
बाद
अब
अखाड़े
मेले
से
विदाई
लेने
लगे
हैं।
महाकुंभ
मेले
में
शिरकत
करने
आए
सभी
13
अखाड़ों
के
साधु
और
नागा
यहां
से
अपना
बोरिया
बिस्तर
समेटकर
भोले
बाबा
की
नगरी-काशी
के
लिए
प्रस्थान
करने
लगे
हैं।
अटल अखाड़े के महंत आनंदेश्वर स्वामी ने कहा कि अखाड़ों के साधु और नागा अब महाकुंभ से प्रस्थान के बाद काशी में एक महीने तक रहेंगे और वहां होली का त्योहार धूम-धाम से मनाएंगे। उसके बाद वे गुफाओं और कंदराओं में गायब हो जाएंगे। स्नान के लिए निर्वस्त्र होकर चलते, शरीर पर भभूत और रेत लपेटे, नाचते-गाते, उछलते-कूदते, डमरू-डफली बजाते और शस्त्र लहराते नागा साधु अब अगले अर्धकुंभ तक नजर नहीं आएंगे।
इन नागा संन्यासियों को देखने के लिए छह साल तक इंतजार करना पड़ेगा। धर्म की रक्षा के लिए नागा बने संन्यासियों का जीवन हमेशा रहस्यमयी रहा है। वे कहां से आते हैं और कहां जाते हैं, कुंभ के अलावा कभी नजर क्यों नहीं आते, इन सवालों के जवाब भी उन्हीं के पास हैं। जूना अखाड़े के प्रवक्ता महंत हरि गिरि का कहना है कि अखाड़ों में आए ये नागा संन्यासी कंदराओं और गुफाओं से महाकुंभ मेले आए थे और अब फिर ये वहीं लौट जाएंगे।
उन्होंने कहा कि बहुत से नागा संन्यासी उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जूनागढ़ की गुफाओं या पहाड़ियों में चले जाएंगे। नागा संन्यासी इन गुफाओं में महीनों रहेंगे और फिर किसी दूसरी गुफा में चले जाएंगे। इसी तरह गुफाओं को बदलते और भोले बाबा की भक्ति में डूबे ये नागा जड़ी-बूटी और कंद-मूल के सहारे जीवन बिताएंगे।
जंगलों में घूमते ऐसे ही नागाओं का समय बीत जाएगा और अगले अर्धकुंभ में जब ये गुफाओं से बाहर निकलेंगे तो फिर पूरी दुनिया रहस्यमयी नागाओं के दर्शन करेगी। कुछ नागा संन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रह कर तपस्या करेंगे। अर्धकुंभ के मौके पर लोगों के सामने आएंगे। कुंभ को नागा साधु अपना पर्व मानते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।