Inspirational Story: कैसे जाना जाए कि ईश्वर है या नहीं?
नई दिल्ली। संसार में भिन्न-भिन्न विचारों के लोग देखने को मिलते हैं। धार्मिक दृष्टि से देखें, तो सबसे बड़ा विभाजन दो वर्गों में देखने में आता है। पहली शाखा है आस्तिक अर्थात् जो लोग ईश्वर की सत्ता पर विश्वास करते हैं और दूसरी है नास्तिक, जो नहीं मानते कि ईश्वर जैसी कोई शक्ति अस्तित्व रखती है। इन दूसरे वर्ग के लोगों का मानना है कि जिसे हम देख नहीं सकते, उसका अस्तित्व भी माना नहीं जा सकता। तो क्या है सच्चाई? कैसे जाना जाए कि ईश्वर हैं या नहीं? कैसे साबित किया जाए कि ईश्वर की सत्ता है और हममें ही समाहित है?
एक प्यारी-सी कहानी के माध्यम से जानते हैं
संत नामदेव की महिमा और ज्ञान से कौन परिचित नहीं है? एक बार संत नामदेव प्रवचन दे रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने बीच में टोकते हुए कहा- महाराज! आप रोज भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं। पर ये तो बताइए कि आपके भगवान हैं कहां? क्या आपने उन्हें कभी देखा है? क्या ईश्वर को पाया जा सकता है? संत नामदेव ने कहा- बिल्कुल। यह तो हमारे विश्वास करने, महसूस करने की शक्ति पर निर्भर करता है। उस व्यक्ति ने कहा- मेरे पास तो ऐसी कोई शक्ति नहीं है। मुझे तो किसी ऐसे तरीके से समझाइए कि मैं आपकी बात समझ सकूं, उस पर भरोसा कर सकूं। संत ने मुस्कुराकर कहा- तो आज यही करते हैं। आपके विश्वास को जागृत करते हैं।
'एक बर्तन में पानी और थोड़ा नमक ले आओ'
इसके बाद संत ने अपने एक शिष्य से कहा- एक बर्तन में पानी और थोड़ा नमक ले आओ। शिष्य तुरंत ही सब सामान ले आया। संत नामदेव ने उस व्यक्ति को कहा, इस पानी को चखो और बताओ कि इसका स्वाद कैसा है? व्यक्ति ने पानी चख कर कहा कि यह मीठा है। इसके बाद संत नामदेव ने पानी में नमक घोल दिया और कहा कि अब चख कर स्वाद बताओ। उस व्यक्ति ने कहा कि अब पानी खारा हो गया है। संत ने कहा- बिल्कुल सही। पर क्या तुम्हें नमक दिखाई दे रहा है? व्यक्ति ने कहा- नमक कैसे दिखाई देगा? वह तो घुल चुका है। संत ने कहा- यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है पुत्र। ईश्वर अलग से दिखाई नहीं देते। वे तो हममें ही रचे-बसे हैं। उस व्यक्ति ने कहा- फिर ईश्वर को पाया कैसे जा सकता है?
तली में नमक के कण वापस दिखाई देने लगे
अब संत ने अपने शिष्य से कहा- इस पानी को उबालो। जब पानी उबल कर उड़ गया, तब बर्तन की तली में नमक के कण वापस दिखाई देने लगे। नामदेव जी ने कहा- इस पानी की तरह ही खुद को मिटाना होगा। अपने अहं का त्याग करना होगा। अपने अस्तित्व को उस परम सत्ता को समर्पित करना होगा और तुम ईश्वर को पा लोगे। अब वह व्यक्ति पूरी तरह संतुष्ट था। उसका विश्वास जाग चुका था।
शिक्षा
दोस्तों,
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