Chanakya Niti: भाग्यशाली को मिलते हैं सुंदर स्त्री और वैभव
Chanakya Niti: मनुष्यों के जीवन के बहुत सारे सुख उसके पिछवले जीवन के कर्मों के कारण संभव होते हैं।
भोज्यं
भोजनशक्तिश्च
रतिशक्तिर
वरांगना
।
विभवो
दानशक्तिश्च
नाल्पस्य
तपस:
फलम्
।।
अर्थात्- अच्छे भोज्य पदार्थ, भोजन शक्ति, रतिशक्ति, सुंदर स्त्री, वैभव तथा दान शक्ति, ये सब सुख किसी अल्प तपस्या का फल नहीं होते हैं।
आचार्य चाणक्य उक्त श्लोक के माध्यम से जीवन के सुखों की ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं कि स्वादिष्ट खाने-पीने की तरह-तरह की वस्तुएं-पकवान और उन पकवानों को खाने की और पचाने की शक्ति जीवन के अंत तक जिस मनुष्य की बनी रहती है वह भाग्यशाली होता है। सुंदर स्त्री मिले और उससे संभोग की इच्छा दीर्घकाल तक बनी रहे, धन-संपत्ति, वैभव हो और दान देने की शक्ति भी बनी रहे तो ये सब सुख मनुष्य को पूर्व जन्मांतरों के संचित पुण्यकर्मों के कारण मिलते हैं। यह संभव नहीं कि मनुष्य इन सुखों को अल्प तपस्या करके प्राप्त कर ले।
भाग्यशाली मनुष्यों की किस्मत में ही सुंदर स्त्री होती है
उक्त श्लोक का आशय यह है कि यह बात कई बार देखने में आती है कि कई लोग संपन्न होते हैं और उनके पर तरह-तरह के भोज्य पदार्थ भोगने के लिए होते हैं किंतु उनका शरीर साथ नहीं देता, वे किसी न किसी रोग से घिरे रहते हैं, उनकी पाचन शक्ति इतनी कमजोर होती है कि वे सामने होते हुए भी उन भोज्य पदार्थों का रसास्वादन नहीं कर पाते हैं तो ऐसा पदार्थ उनके किसी काम के नहीं। इसके उलट देखें तो कई लोग शरीर से स्वस्थ होते हैं किंतु उनके पास अभावों के कारण खाने के लिए पकवान नहीं होते हैं। यह भाग्य की ही बात है। आचार्य का दूसरा कथन यह है कि भाग्यशाली मनुष्यों की किस्मत में ही सुंदर स्त्री होती है और स्त्री होने के साथ उसके साथ रतिक्रिया करने की शक्ति, सामर्थ्य और लालसा भी होनी चाहिए। कई मनुष्यों के पास स्त्री ही नहीं है, जिनके पास है उनकी भोग की शक्ति नहीं है। इसी तरह धन होते हुए भी जो मनुष्य कृपण है, कंजूस है, दान देने की उसकी प्रवृत्ति नहीं है वह अपने ही धन को भोग नहीं पाता।
अत: श्लोक के अनुसार भाग्यशाली मनुष्यों को पूर्ण जन्म के संचित पुण्यकर्मों के अनुसार इस जन्म में नाना प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
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