बिंदी केवल एक श्रृंगार और परंपरा ही नहीं सुरक्षा कवच भी है
बैंगलुरू। कहते हैं ना किसी भी महिला का श्रृंगार बिंदी बिना अधूरा है, वक्त बदला है और वक्त के साथ बहुत सारी चीजें भी लेकिन बिंदी की पोजिशन वो ही है जो पहले थी, हां यह और ग्लैमरस हो गई है। हिंदू धर्म में तो बिंदी लगाना केवल एक श्रृंगार ही नहीं है बल्कि यह एक सुहागिनों की परंपरा और संस्कार है। शादी के बाद बिंदी केवल वो ही महिला नहीं लगाती जो कि विधवा होती है, इसलिए सुहागिनों का माथा खाली रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
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लेकिन आज हम आपको यह बताते हैं कि बिंदी लगाना केवल एक श्रृंगार और परंपरा ही नहीं है बल्कि यह सुरक्षा कवच भी है। वैज्ञानिकों के मतानुसार बिंदी से महिलाओं को सेहतलाभ होता है। कैसे इसे विस्तृत से जानने के लिए आपको नीचे की स्लाइडों पर क्लिक करना पड़ेगा।
अपने लक्ष्य से भटकती नहीं
बिंदी माथे के बीच में लगायी जाती है, जहां पर आज्ञा चक्र होता है जो कि इंसान की ध्यानशक्ति बढ़ाता है। इसलिए योग में कहा जाता है कि इस बिंदु पर प्रेशर डालो, महिलाएं तो उसी जगह बिंदी लगाती है जिसके कारण महिलाओं का ध्यान केन्द्रित रहता है और वो अपने लक्ष्य से भटकती नहीं है, वो सेहत मंद रहती हैं।
आज्ञा चक्र
पुराणों में आज्ञा चक्र की तुलना तीसरे नेत्र से की गई है, कहते हैं कि इसलिए इस स्थान पर बिंदी लगाने से स्त्रियों का मन नियंत्रित रहता है।
मन नियंत्रित और संतुलित
आज्ञा चक्र मन को नियंत्रित और संतुलित करता है जिसके कारण महिलाएं एक साथ की काम कर लेती हैं।
रक्त तंत्र को संतुलित
कहा जाता है कि दो भौओं के मध्य में जहां बिंदी लगायी जाती है, वो महिलाओं के रक्त तंत्र को संतुलित करता है, जिससे महिलाओं को सिर दर्द कम होता है।
मन शांत
दोनों भवों के बीचों-बीच का आज्ञाचक्र होता है, जहां ईस्वरीय ऊर्जा के रूप में हमारे संचित संस्कार केन्द्रीत होते हैं। इस कारण महिलाओं का मन शांत भी रहता है।
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