इंडिया गेट से: सलमान रश्दी पर हमले के बाद चुप्पी क्यों?
भारतीय मूल के विश्वविख्यात लेखक सलमान रश्दी पर हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर साबित किया है कि ईश निंदा के नाम पर जारी किए जा रहे फतवे किसी के बोलने व लिखने की आज़ादी और इंसानियत के लिए कितने घातक हैं।
भारतीय मूल के सलमान रश्दी और बांग्लादेश की तसलीमा नसरीन अभिव्यक्ति की आज़ादी के अग्रदूत हैं। यह संयोग है कि दोनों मुसलमान हैं, और दोनों के खिलाफ फतवे भी मुस्लिम मौलवियों की ओर से जारी किए गए हैं। आप अंदाज लगा सकते हैं कि जब मुसलमानों को ही इस्लाम के बारे में कुछ कहने या सवाल उठाने का अधिकार नहीं तो गैर मुसलमानों को यह आज़ादी कैसे मिल सकती है।
इस
लिए
जब
'द
सैटेनिक
वर्सेज'
लिखने
के
34
साल
बाद
और
मौत
का
फतवा
जारी
होने
के
33
साल
बाद
सलमान
रश्दी
पर
प्राणघातक
हमला
हो
सकता
है,
तो
बिना
किसी
गलती
के
भी
नूपुर
शर्मा
के
लिए
सदैव
जान
का
खतरा
बना
रहेगा।
उदयपुर
के
कन्हैया
लाल
की
तरह
सलमान
रश्दी
का
भी
गला
काटने
की
कोशिश
की
गई।
रश्दी
पर
हुए
इस
हमले
का
कारण
ईरान
के
अयातुल्ला
खुमैनी
का
फ़तवा
है।
खुमैनी
ने
14
फरवरी
1989
को
सलमान
रुशदी
का
गला
काटने
वाले
को
2.8
मिलियन
डालर
के
इनाम
की
घोषणा
की
थी।
रश्दी
पर
हुए
हमले
के
कुछ
घंटे
बाद
ही
पता
चल
गया
कि
हमलावर
24
वर्षीय
एक
मुसलमान
है।
स्टेनिक
वेर्सिज
उसके
जन्म
से
10
साल
पहले
लिखी
गई
थी
,
इससे
यह
भी
साबित
होता
है
कि
नफरत
पीढी
दर
पीढी
आगे
बढ़
रही
है।
हमलावर
हादी
मतार
अपनी
असली
पहचान
छुपा
कर
फर्जी
दस्तावेज
दिखा
कर
कांफ्रेंस
रूम
में
घुसा
था।
फ्रांस के राष्ट्रपति एम्मानुएल मैक्रॉन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन समेत दुनिया भर के राजनेताओं ने इस हमले की निंदा की है। भारत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशी थरूर, पूर्व कांग्रेसी नेता और सांसद कपिल सिब्बल, शिव सेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, यहाँ तक कि सेक्यूलरिज्म के झंडाबरदार स्वरा भास्कर और जावेद अख्तर ने भी सलमान रश्दी पर हमले की निंदा की है।
लेकिन भारत सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आना आश्चर्यचकित करने वाला है। 'द सैटेनिक वर्सेज' लंदन से प्रकाशित होने के कुछ दिन बाद ही राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथियों के दवाब में इसे बैन कर दिया। यही नहीं तब लंदन में रह रहे रश्दी को वहां स्थित इंडियन कल्चरल सेंटर में आने से भी तत्कालीन निदेशक गोपाल कृष्ण गांधी ने यह कह कर रोक दिया कि इससे उनकी और भारत सरकार की मुस्लिम विरोधी छवि बन जाएगी। फिर एक के बाद दूसरे मुस्लिम देश भी इसे बैन करने लगे। जब कई देशों में इस पुस्तक के विरोध में कट्टरपंथी हिंसा करने लगे तब ईरान के अयातुल्लाह खुमैनी ने रश्दी का गला काटने वाले को ईनाम की घोषणा कर दी।
खुद
को
असुरक्षित
महसूस
करने
के
कारण
रश्दी
पहले
ब्रिटेन
और
बाद
में
अमेरिका
में
रहने
लग
गए।
अटल
बिहारी
वाजपेयी
जब
प्रधानमंत्री
थे,
तब
उन्हें
भारत
आने
की
अनुमति
मिली
और
अपनी
पैतृक
संपत्ति
को
देखने
वे
सोलन
भी
गए
थे।
अब
जब
भारतीय
मूल
के
सलमान
रश्दी
पर
इस्लामिक
आतंकवाद
का
हमला
हुआ
है,
तो
राजीव
गांधी
सरकार
और
मौजूदा
सरकार
में
कोई
फर्क
दिखाई
नहीं
देता,
क्योंकि
भारत
सरकार
के
मंत्री,
और
भाजपा,
कांग्रेस
समेत
सारी
राजनीतिक
पार्टियां
चुप्पी
साधे
हुए
हैं।
आश्चर्यचकित
कर
देने
वाला
रहस्यमय
सन्नाटा।
कहीं
से
आधिकारिक
निंदा
का
बयान
नहीं
आया
है।
क्या
यह
मुस्लिम
तुष्टिकरण
नहीं
है?
नेता
सच
को
सच
कहने
की
हिम्मत
भी
नहीं
कर
पा
रहे।
सच
क्या
होता
है,
वह
सलमान
रश्दी
ने
2005
में
"शालीमार
द
क्लाउन"
लिख
कर
बताया।
इस
उपन्यास
में
उन्होंने
कश्मीर
में
मुजाहिदीनों
की
ओर
से
कश्मीरी
पंडितों
की
हत्याओं
का
भंडाफोड़
किया
था।
सलमान रुश्दी और उनकी वो किताब, जिससे भड़क गए थे इस्लामिक कट्टरपंथी देश
अब कश्मीर जैसे हालात पश्चिमी बंगाल और केरल में बन रहे हैं। भारत जब आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है तो भारत पर हिंसा, कट्टरता और अलगाववाद के खतरे 1947 से भी ज्यादा मंडरा रहे हैं। आज़ादी के समय क्योंकि पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना था, इसलिए बड़ी तादाद में आबादी का आदान प्रदान हुआ, लेकिन यह शांतिपूर्वक नहीं हो सका। लाहौर से लाशें भर भर कर ट्रेने अमृतसर पहुंची थीं। जो लोग ज़िंदा आ गए थे, वे दशकों तक रिफ्यूजी कैंपों में ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष करते रहे।
महात्मा गांधी पता नहीं किस तरह का बंटवारा और किस तरह का भारत चाहते थे। उन्होंने हिन्दू शरणार्थियों से कहा कि उन्हें भारत आने की क्या जरूरत थी, वे वहीं क्यों नहीं मर गए, आखिर एक दिन सब को मरना ही है। गांधी और नेहरू का प्रयोग बुरी तरह फेल हुआ है। वे समझते थे कि केवल कुछ अमीर मुसलमान ही पाकिस्तान चाहते हैं, इसलिए वे पाकिस्तान चले जाएं, लेकिन जो मुसलमान भाईचारे में विश्वास रखते हैं, वे भारतीय बन कर भारत में ही रहें। अंबेडकर के बार बार समझाने पर भी धार्मिक आधार पर बने पाकिस्तान में पूरी मुस्लिम आबादी का स्थानांतरण नहीं किया गया।
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अब जब भारत आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है तो यह सवाल आज भी जस का तस खड़ा हुआ है। जो मुस्लिम भारत में रह गए, क्या वे सर्वधर्म समभाव वाले भारत को समझ पाए, क्या वे भारतीय बन पाए हैं? वंदे मातरम का तो संसद में ही खुला अपमान हो रहा है, राष्ट्रीय गान जन गण मन तक का अपमान शुरू हो गया है। अब राष्ट्रीय ध्वज का भी अपमान होने लगा है। जब सारा देश तिरंगे की शान में डूबा है, तब एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें अशोक चक्र की जगह पाकिस्तान का चिन्ह चाँद और तारा बना हुआ है। इसके अलावा उतर प्रदेश के कुशी नगर में सलमान नाम के एक युवक ने अपने घर पर पाकिस्तान का ही झंडा फहरा दिया। इसी तरह राजस्थान के जालोर में भारत का झंडा फाड़े जाने की घटना हुई है। फिर भी नेता चुप्पी साधे बैठे हैं।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)