Republic Day Tableau: धर्मपथ बन गया कर्तव्य पथ
पिछले साल राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ ही नहीं हुआ बल्कि इस साल 26 जनवरी को जिस तरह की झांकियां निकाली गयीं उससे यह धर्मपथ नजर आने लगा।
Republic Day Tableau: भारत को गणराज्य इसलिए घोषित किया गया क्योंकि यह अनेकानेक संस्कृतियों की भूमि है। अलग अलग भाषा, बोली, खान पान, पहनावा, अलग अलग जीवनशैली। भारत में इतनी विविधता है कि इसे एक केन्द्रित स्वरूप में परिभाषित ही नहीं किया जा सकता। इन सभी संस्कृतियों का जो केन्द्र है वही भारत है। भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता को नकारने या बदलने की बजाय उन्हें स्वीकार करता है।
इस सांस्कृतिक विविधता का आधार है स्थानीयता। भारत में सांस्कृतिक विविधता इसलिए भी दिखती है क्योंकि यहां प्रचुर जलवायु विविधता है। समुद्र का किनारा भी है तो रेगिस्तान भी है। अत्यधिक ठंडे प्रदेश भी हैं तो अत्यधिक गर्म प्रदेश भी। ऐसी जगहें हैं जहां सघन वर्षावन है और ऐसी जगहें भी हैं जहां सबसे कम वर्षा होती है। अनुपजाऊ पहाड़ और पठार हैं तो उर्वर मैदानी भाग भी है। जलवायु की इतनी विविधता है कि अलग अलग जीवन शैली और सोच का विकसित होना स्वाभाविक हो जाता है।
इसीलिए भारत में अलग अलग पर्यावास में अलग अलग संस्कृतियों का विकास हुआ। अतीत में जब वीजा पासपोर्ट वाले राज्य या राष्ट्र की अवधारणा नहीं थी तब भारत की जनता एक बहुविध संस्कृति वाला समाज होकर भी एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरा। यह राष्ट्र वर्तमान नेशन स्टेट जैसा नहीं था। यह सामाजिक राष्ट्र था। अलग अलग संस्कृति होने के बावजूद एक केन्द्रीय विचार इसे एक सामाजिक राष्ट्र बनाते थे, और वह केन्द्रीय विचार था, धर्म।
धर्म भारत का सबसे पवित्र शब्द है। धर्म शब्द को भारतीय वैसे नहीं देखते जैसे इस्लाम या ईसाइयत में मजहब या रिलीजन को देखा जाता है। हमारे लिए धर्म का अर्थ है धारण करने योग्य। जो कुछ अच्छा है, सुन्दर है वही धारण करने योग्य है इसलिए वही धर्म है। अब ये अच्छाई या सुन्दरता किसी भी रूप में हो सकती है। विचार के रूप में, आचार के रूप में या फिर संस्कार के रूप में। जिसमें मनुष्य सहित संपूर्ण चराचर जगत का कल्याण निहित हो, हमारे लिए वही धर्म है।
यह धर्म भारत की हर संस्कृति में व्याप्त दिखाई देता है। भारत की किसी भी जलवायु की संस्कृति को आप देखेंगे तो पायेंगे कि धर्म ही वह धागा है जिससे भारत की सभी संस्कृतियां बंधी हुई हैं। इस धर्म के धागे को आप हटा लें तो वह संस्कृति तो नष्ट होगी ही, भारत भी नष्ट हो जाएगा।
संभवत इसी सोच के साथ 1953 में पहली बार राजपथ पर अलग अलग राज्यों की झांकियां प्रस्तुत करने का चलन शुरु हुआ होगा। सत्तर साल से राजपथ पर राज्यों की झांकियां निकाली जा रही हैं। लेकिन इन सत्तर सालों में राजनीति का एक लंबा दौर ऐसा भी रहा जहां धर्म की बजाय मजहब या रिलीजन को भारत में प्रमुखता दी जाने लगी। उसे ही भारतीय संस्कृति बताकर प्रस्तुत किया जाने लगा। मानों कोई राजनैतिक दबाव ऐसा बना दिया गया कि कुछ खास तरीकों से ही आप भारत की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक विविधता को सुनिश्चित कर सकते हैं।
इन खास तरीकों में कुछ अभारतीय विचारधाराओं को भारत में स्वीकार्य बनाने की मुहिम साफ दिखाई देती थी। उसे ही मानक बना दिया गया था और सांस्कृतिक विविधता के नाम पर प्रस्तुत किया जाने लगा था। इसके कारण भारत की सहज सांस्कृतिक विविधता की विरासत नेपथ्य में चली गयी थी। धर्म का तो जैसे राजपथ से लोप ही हो गया था।
लेकिन बीते कुछ सालों से 26 जनवरी के दिन राजपथ पर धर्मपथ की झलक दिखती है। यह सब प्रतीकात्मक ही होता है, लेकिन इसका संदेश स्पष्ट होता है। वह करो जिससे भारत के लोग एक दूसरे से परिचित हो सकें और जुड़ाव महसूस कर सकें। राजपथ पर राज्यों की झांकियां प्रस्तुत करने का उद्देश्य भी तो यही था कि इसके कारण भारत के भीतर जो सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता है उसके बीच समन्वय स्थापित हो सके। यही भारत को गणराज्य घोषित करने का असली उद्देश्य था।
लेकिन जैसे उर्दू और अंग्रेजी ने हिन्दी को दूसरी भारतीय भाषाओं से दूर कर दिया वैसे ही भाईचारा के नाम पर अभारतीय विचारधाराओं के साथ समन्वय की होड़ में भारत की आपसी संस्कृतियां एक दूसरे से दूर होती गयीं। इन्हें पास लाने का एकमात्र उपाय था कि धर्म के धागे को फिर से मजबूत किया जाए। उन प्रतीकों और आदर्शों को राजपथ पर प्रस्तुत किया जाए जिससे भारत एक सूत्र में पिरोया हुआ दिखे।
राजपथ पर 26 जनवरी को जो भी प्रस्तुति होती है उसका नियंत्रण रक्षा मंत्रालय के हाथ में होता है। उसी की एक कमेटी वही तय करती है कि राजपथ पर कितनी झांकियां निकलेगीं। इस साल कुल 12 राज्यों को झांकियां निकालने की अनुमति मिली जिसमें उत्तर से प्रमुख रूप से हरियाणा और उत्तर प्रदेश थे तो दक्षिण से कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल, पश्चिम से गुजरात तो पूरब से बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश थे।
इन सभी राज्यों ने कर्तव्य पथ पर धर्म के उस सूत्र की पहचान प्रदर्शित करने की कोशिश किया जो न केवल उस राज्य की बल्कि संपूर्ण भारत की आस्था का केन्द्र है। ऐसा नहीं है कि इसमें सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों ने ही ऐसा किया है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल जैसे गैर बीजेपी शासित राज्यों की झांकियों में धर्म को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया। असम से मां कामाख्या, हरियाणा से भगवान कृष्ण के गीतोपदेश को और उत्तर प्रदेश से भगवान राम का दरबार इस बार कर्तव्य पथ का प्रदर्शक बना। आकर्षण का एक केन्द्र और जम्मू कश्मीर की झांकी रही जहां पहली बार शैव भूमि से अमरनाथ शिव की झांकी को प्रदर्शित किया गया।
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कर्तव्य पथ के धर्म पथ बनने का ही लक्षण था कि पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड में भारत माता की जय के साथ जय श्री राम का नारा भी सुनाई दिया। मानों भारत रामराज्य के अपने लोककल्याण कारी मार्ग पर दोबारा लौटने को व्यग्र है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)