‘जुगाड़’ को ‘इनोवेशन’ में बदलना सबसे बड़ी चुनौती
नई दिल्ली। भारत की युवा पीढ़ी स्मार्ट है, उसके पास स्मार्ट फ़ोन हैं, अच्छे कंप्यूटर हैं, आधुनिक उपकरण हैं। लेकिन ऐसा लगता है नई पीढी स्मार्ट तो है लेकिन विद्वान नहीं। भारत में अब शिक्षा का मतलब ज्ञान अर्जन कम धन अर्जन ज्यादा हो गया है। देश में उच्च शिक्षा का मतलब क्या ऐसे “प्रोफेशनल” पैदा करना है जो अधिक से अधिक धन अर्जित कर सकें? इसी सोच के चलते देश आविष्कारों और नए विचारों की दृष्टि से पिछाड़ रहा हैं। यहाँ नकल करने वालों की भरमार है। भारत अकल से नक़ल और जुगाड़ से काम निकालने वाले लोगों का देश बनता जा रहा है। जुगाड़ में कोई बुराई नहीं क्योंकि अक्सर खोज की शुरुआत जुगाड़ से ही होती है। जुगाड़ का उन्नत स्वरुप आविष्कार बन जाता है। लेकिन भारत में ज्यादातर मामलों में जुगाड़, आविष्कार का रूप नहीं ले पाता। इसके लिए उच्च कोटि के शोध की जरूरत होती है। यही वजह है कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भारत में रिसर्च और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर हमेशा चिंतित रहा करते थे।
अनोखा बनो, भीड़ का हिस्सा नहीं
एपीजे अब्दुल कलाम युवाओं से कहा करते थे कि क्रियेटिवटी हमें सोचने पर मजबूर करती। इस चिंतनशीलता से ज्ञान में वृद्धि होती है और ज्ञान हमें महान बनता है। शिक्षा का मतलब पैसा कमाने से कहीं अधिक है मोटिवेशन। शिक्षा का मतलब सही शिक्षा से है। हर स्टूडेंट में कुछ विशेष क्षमता होती। उस क्षमता को पहचान कर से सही दिशा में प्रेरित करने की जरूरत है। ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है जिसे भारत हासिल नहीं कर सकता। एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे अनोखा बनने की कोशिश करो, भीड़ का हिस्सा नहीं।
लोकसभा में 5 जुलाई को पेश हुए बहीखाता (आम बजट ) में भी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष जोर देने की बात कही गई है। भारत में उच्च स्तर पर क्वालिटी एजूकेशन की कमी है। देश में ऐसे रिसर्च की नितांत कमी है जो नए आविष्कारों और आईडिया के साथ देश के विकास में सहायक हो। देश के युवाओं में मेधा की कमी नहीं लेकिन मेधावी छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख करते हैं और वहां सफलता के शिखर पर पहुंच जाते हैं। रिसर्च, आइडिया और इनोवेशन से भारत दुनिया के शिखर तक पहुंच सकता है।
सुश्रुत, आर्यभट, पतंजलि के देश में इनोवेशन की कमी
विमान शास्त्र के रचयिता ऋषि भारद्वाज, सर्जरी के खोजकर्ता महर्षि सुश्रुत आर्यभट, विद्युत के आविष्कारक महर्षि आगस्त्य, पतंजलि, चरक, और भी ढेर सारे खोजकर्ता प्राचीन भारत में हुए जिन्होंने दुनिया को नई दिशा दिखाई। पतंजलि ने योग विद्या पूरी दुनिया को दी। इसकी वैज्ञानिकता को पूरी दुनिया स्वीकार करती है। देश में अब भी आविष्कारों की अपार सम्भावनाएं हैं। सबसे अधिक युवा भारत में हैं। रिसर्च, आइडिया और इनोवेशन का ‘रा मटीरियल' हमारे पास है। बस जरूरत उनको तराशने की है। यह उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार से ही सम्भव है। नई तकनीक और आविष्कार देश के विकास में बाधक समस्याओं को दूर करने में सहायक होंगे। यह बात मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक' ने हाल ही में देश के युवा विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि जो स्टूडेंट्स को इनोवेशन पर काम करना चाहते हैं, केंद्र सरकार उनकी पूरी मदद करेगी।
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कभी कभी इतिहास भी रच देते हैं ‘जुगाड़’
कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जनक है। आवश्यकता जुगाड़ की भी जननी है। जुगाड़ का उन्नत या विकसित स्वरुप है आविष्कार। आइडिया से आइडिया निकलता है। संसाधन की कमी अक्सर जुगाड़ को जन्म देती है। सीमित संसाधनों का बेहतर प्रयोग भी एक प्रकार का जुगाड़ है। ऐसा ही एक अनोखा प्रयोग कर बनारस के डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (डीएलडब्लू) ने इतिहास रच दिया है। डीएलडब्ल्यू ने मात्र 69 दिनों में दुनिया का पहला डीजल - इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव इंजन बना कर इतिहास रच दिया। भारत में रेल ट्रैक के पूर्ण विद्युतिकरण के लक्ष्य को ध्यान में रख और मेक इन इंडिया पहल के तहत स्वदेशी तकनीक पर इस डीजल इंजन रेल कारखाने ने डब्लूएजीसी 3 श्रेणी के डीजल इंजन को बिजली से चलने वाले इंजन में बदला है।
दुनिया में पहली बार भारतीय रेलवे ने एक डीजल इंजन को विद्युत इंजन में बदला है। इस प्रयोग के कई फायदे हैं। डीजल से विद्युत में बदलने से इस रेल इंजन की क्षमता 2600 एचपी से बढ़कर 5000 एचपी हो गई। अपनी मियाद पूरी कर चुके पुराने डीजल इंजन को बिजली से चलने वाले इंजन में बदलने का काम 22 दिसंबर, 2017 को शुरू हुआ था और नया लोकोमोटिव 28 फरवरी, 2018 को तैयार हुआ। रेलवे के अनुसार डीजल लोकोमोटिव को इलेक्ट्रिक इंजन में बदलने तक का काम 69 दिन में पूरा हुआ। डीएलडब्लू में तैयार किए गए इस इंजन में भारी मालगाड़ियों को खींचने की क्षमता है। वहीं इस डीजल इंजन को बिजली से चलने वाले इंजन के तौर पर बदले जाने पर इस इंजन की क्षमता में 92 फीसदी का इजाफा हो गया है। डीजल की बजाय बिजली का प्रयोग किए जाने से अब इस इंजन से वायु प्रदूषण भी नहीं होगा। रेलवे के अनुसार डीजल इंजन को बिजली से चलने वाले इंजन में परिवर्तित करने पर हर साल एक इंजन से लगभग 1.9 करोड़ रुपये के इंधन की बचत होगी। सही मायने में इसे चलती का नाम गाड़ी के बजाय चलती का नाम जुगाड़ कहा जा सकता है। देश में प्रोफेशनल और जुगाडू तो बहुत हैं लेकिन असली चनौती इन्हें रेलवे की तरह एक श्रेष्ठ खोजकर्ता में तब्दील करने की है।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)