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Pasmanda Muslims: वे कौन हैं, जो भाजपा को वोट नहीं देते

भारतीय जनता पार्टी की डेढ़ दिन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से सिर्फ दो बातें निकली| पहली यह कि 2023 में उन सभी राज्यों में एनडीए की सरकार बनानी है और लोकसभा में 350 और एनडीए की 400 सीटे करनी है।

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राजनीति शतरंज है और मोदी इस शतरंज के अच्छे खिलाड़ी हैं| जब से भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक खत्म हुई है मुसलमानों के पसमांदा और बोहरा समुदाय की चर्चा हो रही है| मोदी ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे इन दोनों वर्गों तक पहुंचे, वे वोट भले ही ना दें, लेकिन भाजपा के कार्यक्रमों और योजनाओं को समझें| अब भाजपा के कार्यकर्ता उन तक पहुंचें या न पहुंचें, मीडिया मोदी का संदेश ले कर उनके पास पहुंच रहा है| और जो मोदी चाहते थे, वह दिखने लगा है। इन दोनों समुदायों का मोदी के प्रति साफ्ट कार्नर बन गया है| जिस तरह सेक्यूलर दल पिछले पांच छह दशकों से जातिवाद की राजनीति करके हिन्दुओं में फूट डालने में कामयाब थे, उसी तरह मोदी ने उन्हीं के हथियार से उन्हीं के मुस्लिम वोट बैंक में दरार पैदा करनी शुरू कर दी है।

भारतीय जनता पार्टी की डेढ़ दिन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से सिर्फ दो बातें निकली| पहली यह कि 2023 में उन सभी राज्यों में एनडीए की सरकार बनानी है, जहां चुनाव होने हैं, और लोकसभा में खुद के बूते 350 और एनडीए की 400 सीटें हासिल करनी हैं| जिन राज्यों में चुनाव हैं उनमें राजस्थान, छतीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं और तेलंगाना में बीआरएस की सरकार है|
दूसरी यह कि भाजपा कार्यकर्ताओं को उन वोटरों के पास भी जाना है, जो भाजपा को वोट नहीं देते| तो वह सिर्फ मुसलमानों की बात नहीं कर रहे थे| वे हिन्दुओं के भी उन वर्गों की बात कर रहे थे, जो अब तक भाजपा को अछूत समझे हुए हैं| नरेंद्र मोदी ने जब यह बात कही तो उनके दिमाग में उस समय ख़ास तौर पर बिहार चल रहा होगा।

नरेंद्र मोदी हिमाचल प्रदेश की हार से उतना हताश नहीं हैं, जितना नीतीश कुमार के धोखा देने से निराश हैं। क्योंकि उनके साथ समझौता करने के लिए 2019 में भाजपा ने उपेन्द्र कुशवाहा से भी संबंध तोड़े और खुद भी कम सीटों पर चुनाव लड़ कर अपनी पांच सीटों का बलिदान किया था| उपेन्द्र कुशवाहा उस समय अपनी अलग पार्टी के साथ एनडीए में थे।

मोदी उस समय बिहार के साथ यूपी की बात भी कर रहे थे| 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भी भाजपा की सीटें घटीं थी, 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सीटें और वोट प्रतिशत घटा है| तो यूपी और बिहार में ऐसे तीन वर्ग हैं, जो भाजपा को वोट नहीं देते| मैं यह नहीं कहता कि इन तीनों वर्गों से भाजपा को बिलकुल वोट नहीं मिलता| मिलता है पर थोड़ा मिलता है| ये तीन वर्ग इन दोनों बड़े राज्यों में विपक्ष की ताकत हैं।

हालांकि यूपी में भाजपा ने 2014 से वहां के तीनों वर्गों में से एक वर्ग में अच्छी खासी सेंध लगा कर सफलता पा ली है, लेकिन बिहार में अभी भी वह काफी पीछे है। बिहार में जब तक इन तीन में से दो वर्गों में भाजपा के पाँव नहीं जमेंगे, तब तक अपने बूते पर सरकार बनाना और लोकसभा में यूपी की तरह 42 में से 30-32 तक सीटें हासिल करना असंभव है| वे तीन समुदाय कौन कौन से हैं, जिनका इन दोनों राज्यों में अच्छा खासा प्रभाव है। ये हैं, यादव, दलित (यूपी में जाटव) और मुस्लिम|

उतर प्रदेश में कभी समाजवादी पार्टी के साथ इन तीन में से दो वर्ग यानी यादव और मुस्लिम एकजुट थे| मुलायम सिंह का मुस्लिम यादव गठबंधन सर चढ़ कर बोल रहा था| मुस्लिम मुलायम से निराश हुए तो मायावती के साथ चले गए| तब वहां मायावती का मुस्लिम जाटव का गठबंधन सर चढ़ कर बोला| वैसे तो यूपी का पूरा दलित समुदाय मायावती के साथ रहता था, लेकिन उनकी अपनी जाति का जाटव सौ फीसदी मायावती के साथ रहता है।

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भाजपा ने यूपी में दो बड़े काम किए, दलितों में से गैर जाटवों को टारगेट किया और यादवों को संगठन में हिस्सेदारी दे कर आगे बढाया| नतीजतन मायावती और मुलायम सिंह दोनों के वोट बैंक में सेंध लगी और भाजपा को सफलता मिलनी शुरू हुई। जब एक बार सफलता मिल गई, तो इन दोनों वर्गों को अपने साथ जोड़े रखने का काम सफलतापूर्क चल रहा है, इसलिए 2014 से दोनों दल भाजपा से मात खा रहे हैं|

बिहार में भाजपा के सामने यूपी से बड़ा संकट है, क्योंकि यहाँ आपातकाल के बाद समाजवाद के नाम पर जातिवाद की राजनीति बहुत ज्यादा हुई है| आपातकाल से पहले संघ और जनसंघ बिहार में बड़ी ताकत के रूप में उभर रहे थे| आपातकाल के बाद बिहार की राजनीति में लालू यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार का उदय हुआ| ये समाजवादी विचारधारा के थे, लेकिन तीनों ने बाद में जातिवाद की राजनीति की। अब लालू यादव के पास यादव हैं, उन्हें मुसलमानों और अन्य छोटी जातियों का समर्थन मिल जाता है। नीतीश कुमार खुद कुर्मी है

लेकिन कुशवाहा जाति को साथ लेकर भाजपा के अपर कास्ट समर्थन से 2005 में लालू यादव से सत्ता हथिया ली थी। उपेन्द्र कुशवाहा समता पार्टी में कुशवाहा नेता के तौर पर उभरे थे। उनकी नीतीश कुमार की जोड़ी टूटती जुड़ती रही है, अभी दोनों साथ साथ हैं| अपने 12 प्रतिशत वोटों की बदौलत कुशवाहा बिहार की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं।

यादव अभी भी मौटे तौर पर लालू यादव के परिवार के साथ हैं, इसी लिए भाजपा-जदयू का गठबंधन होने के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में लालू यादव की राजद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी| भाजपा के पास यादव, कुर्मी, कुशवाहा या दलित में से कोई जाति नहीं है| बिहार में यादवों में सेंध लगाना भाजपा के लिए उतना आसान नहीं है, जितना दलितों, कुर्मियों और कुशवाहा जातियों में सेंध लगाना आसान है| दलित, कुर्मी और कुशवाहा वोटों में सेंध लगाने के लिए इन जातियों के स्थापित नेताओं को अपने साथ जोड़ने की रणनीति अपनानी होगी।

जहां तक दलित वोटों का सवाल है तो पिछले लोकसभा चुनाव तक वह रामविलास पासवान के साथ था, पासवान भाजपा के साथ थे| लेकिन विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जिद्द के चलते भाजपा ने चिराग पासवान को दूध से मक्खी की तरह निकाल फैंका था| अब न नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं, न चिराग पासवान| न खुदा ही मिला, न वसाल-ए-सनम|

विधानसभा चुनाव के बाद में चिराग पासवान के चाचा पशुपतिनाथ ने पार्टी को विभाजित कर केंद्र में मंत्री पद पा लिया| रामविलास का जैसे बिहार के दलित वोटरों पर दबदबा था, वैसा दबदबा चिराग पासवान नहीं दिखा पाए| लेकिन अब भाजपा के लिए जरूरी है कि लालू यादव और नीतीश कुमार को मात देने के लिए पासवान परिवार को एकजुट करे| इसके साथ ही उपेन्द्र कुशवाहा को अपने साथ लाएं ताकि 2014 की तरह दलित और कुशवाहा वोटर एनडीए के पाले में आएं| भारतीय जनता पार्टी अगर लोकसभा चुनाव से पहले इस साल के आखिर तक नीतीश कुमार से उपेन्द्र कुशवाहा को तोड़ लेती है और चिराग पासवान को भी एनडीए में ले आती है तो बिहार का अभेद्य किला भी भेद पाएगी|

इन दोनों ही राज्यों में मुस्लिम वोट भी बहुत महत्व रखते हैं। नरेंद्र मोदी पिछले लगभग एक साल से बोहरा मुसलमानों और पसमांदा मुसलमानों की बात कर रहे हैं| मुसलमानों की पिछड़ी जातियों से ताल्लुक रखने वाले पसमांदा हैं| कहने को मुसलमानों में जातिवाद नहीं है, लेकिन मुसलमानों में भी अपर कास्ट और लोअर कास्ट होते हैं|

नरेंद्र मोदी को पता है कि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देंगे, लेकिन बोहरा और पसमांदा मुसलमानों को अगर भाजपा कट्टरपंथी अशराफ (अपने को श्रेष्ठ मानने वाले) मुसलमानों से अलग करने में कामयाब हो जाती है, तो इनके वोट भले ही भाजपा को नहीं मिलें, फिर इस्लाम के नाम पर सभी मुसलमानों के वोटों पर कब्जा होने का दावा कुछ अशराफ नेता नहीं कर सकते| मान लो मुसलमानों का अपर कास्ट यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ जाता है तो पसमांदा और बोहरा मुस्लिम भाजपा को वोट न भी दे, तो भी लोअर कास्ट के नाते मायावती के साथ जा सकता है, तो इससे भी भाजपा को फायदा होगा।

मोदी जानते हैं कि मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं देंगे क्योंकि उनकी सियासत मस्जिदों और मौलवियों से चलती है, लेकिन अगर देश भर में मुसलमानों की छोटी जातियों को भाजपा न्यूट्रल करने में भी सफल हो जाती है, तो उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है| इसलिए भाजपा की कार्यकारिणी का संदेश यह है कि आने वाले एक साल में भाजपा काडर को उन वर्गों तक पहुंचना है, जो भाजपा को वोट नहीं देता। वे वोट भले न दें, भाजपा के कार्यक्रमों को तो समझें|

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English summary
Pasmanda Muslims: Who are those who don't vote for Bharatiya Janata Party
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