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MCD Mayor: क्या दिल्ली में केजरीवाल बनाकर रख पायेंगे अपना मेयर?

दिल्ली में नये मेयर का चुनाव हो गया, लेकिन मेयर पद को लेकर मची खींचतान अभी खत्म नहीं हुई है। एमसीडी में 1 अप्रैल को स्थाई मेयर के लिए मतदान होगा तब एक बार फिर जोर आजमाइश होगी।

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MCD Mayor: एमसीडी चुनाव के अस्सी दिनों बाद आखिरकार आम आदमी पार्टी की डॉ. शैली ओबेरॉय दिल्ली की अस्थाई मेयर बन ही गई। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की रेखा गुप्ता को 34 मतों से पराजित कर दिया। 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट से आए निर्देश के बाद ही 22 फरवरी को यह चुनाव सुगमता से संपन्न हो पाया।

अब दिल्ली की नयी महापौर डॉ. शैली ओबरॉय को स्वयं को साबित करना है। उनके लिए जरूरी है कि वह अगले 38 दिनों तक अपने नेता अरविंद केजरीवाल का विश्वास जीत कर रखें, ताकि पहली अप्रैल को फिर से होने वाले महापौर के चुनाव में डॉ. ओबरॉय को ही 'आप' का उम्मीदवार बनाया जाए और आगे भी महापौर पद पर वह आप की जीत सुनिश्चित कर पाए। ऐसा इसलिए क्योंकि विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी महापौर की कुर्सी हथियाने की हरसंभव फिराक में है।एमसीडी में अपनी हार को भाजपा पचा नहीं पा रही है।

बीते साल 8 दिसंबर को आए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव परिणाम में भाजपा को 104 और आप को 124 सीटें जीतने में सफलता मिली थी। जीत के बाद भी दिल्ली महापौर चुनाव 6 जनवरी, 24 जनवरी और 6 फरवरी की तीन कोशिशों में संभव नहीं हो पाया था। महापौर के चुनाव में आए व्यवधानों के पीछे एमसीडी में अपना नियंत्रण बनाए रखने की भाजपा की चाहत रही है।

2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा को एमसीडी में अपनी सरकार का होना महत्वपूर्ण लगता है। हालांकि यह अरविंद केजरीवाल के एकल नेतृत्वकर्ता वाले दल आप को उतना जरूरी नहीं लगता है। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चाहते तो दिल्ली महापौर चुनाव को पहले ही सुलझा चुके होते, जैसा कि 17 फरवरी के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से डॉ. ओबेरॉय ने सुलझवाया। महापौर चुनाव में इस विलंब के पीछे दिल्ली एमसीडी को हासिल वो तमाम अधिकार हैं जो दिल्ली के महापौर को मुख्यमंत्री से ज्यादा और सहजतापूर्ण अधिकार देता है।

डीएमसी कानून के मुताबिक महापौर नगर निगम के अधिकार से जुड़ा कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। मुख्यमंत्री की तरह उसे किसी भी फैसले की फाइल उपराज्यपाल या केंद्र के पास भेजने की अनिवार्यता नहीं है। निगम का सदन ही सर्वोच्च है। एमसीडी में विधेयक पास कराने के बाद उसे कानून का स्वरूप दिया जा सकता है। दिल्ली नगर निगम को इस वर्ष आवंटित 14,804 करोड़ रुपए के बजट को विभिन्न मद में खर्च करने की स्वतंत्रता है। निगम के किसी भी अधिकारी और कर्मचारियों का तबादला करने के लिए ऊपर से किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

अधिकार संपन्न महापौर की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री के अधिकारों की सीमा बंधी हुई है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि उपराज्यपाल की संस्तुति के बिना मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली सरकार के अधीन कर्मचारियों का तबादला नहीं कर सकते हैं। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार से जुड़े फैसले खुद ले तो सकते हैं, लेकिन उपराज्यपाल से मंजूरी अनिवार्य है। उनको दिल्ली सरकार की सभी फाइलों की मंजूरी के लिए केंद्र और उपराज्यपाल के पास भेजना अनिवार्य होता है। दिल्ली सरकार के लिए इस साल आवंटित 75,800 करोड़ रुपए के बजट के खर्च के लिए उप राज्यपाल को विश्वास में लेना होता है।

इतना ही नहीं राज्य क्षेत्र का प्रशासक होने के बावजूद अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री की तरह केजरीवाल के पास कानून-व्यवस्था और राजस्व समेत तमाम जनहित से जुड़े नियम बना कर लागू करवाने का अधिकार नहीं है। इन्हीं अधिकारों के लिए वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं और मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट की शरण में हैं।

संविधान की धारा 239 ए के मुताबिक दिल्ली के मुख्यमंत्री को सभी फैसलों की फाइल उपराज्यपाल के पास भेजना अनिवार्य है। साथ ही इन फैसलों को उपराज्यपाल मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। महापौर को हासिल ज्यादा अधिकारों का ही नतीजा है कि पहले तो भाजपा लंबे समय तक निलंबित एमसीडी का चुनाव टलवाती रही। थोड़ी उम्मीद बनी तो बीते 4 दिसंबर को चुनाव कराया। आठ दिसंबर के नतीजे में एमसीडी चुनाव में पराजय के बावजूद भाजपा येन केन प्रकारेण अपना मेयर बनाने में लगी रही।

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आगे भी शायद ही इस प्रयास पर विराम लगे। एमसीडी अधिनियम धारा दो (67) के अनुसार वित्तीय साल का आरंभ अप्रैल माह की पहली तारीख से शुरू होता है, जो अगले साल 31 मार्च को समाप्त होगा। हर वित्तीय वर्ष के लिए नया महापौर और उप महापौर के निर्वाचन का प्रावधान है। मेयर पद पर ताक लगाए बैठी भाजपा के लिए यह मौका चालीस दिनों के अंदर फिर से आने वाला है।

दरअसल दिल्ली में सात लोकसभा सीटें हैं । आम आदमी पार्टी के आवेग के बावजूद सभी सात सीटों पर भाजपा दो बार से लगातार जीत रही है। लोकसभा सीटों को अपनी झोली में करने में एमसीडी पर भाजपा के शासन ने योगदान किया। इस जानते हुए कांग्रेस की शीला दीक्षित के दिनों से ही भाजपा एडी चोटी के जोर से दिल्ली एमसीडी पर काबिज रही। भाजपा को एमसीडी की कुर्सी से उतारने के लिए मुख्यमंत्री दीक्षित ने 2012 में केंद्र की मनमोहन सरकार की मदद से दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटने का काम किया। लेकिन दांव सटीक नहीं बैठा। तीनों एमसीडी पर भाजपा ने महापौर बना लिये।

संयोग है कि 2011 में जब एमसीडी एक थी तो भाजपा की रजनी अब्बी आखिरी महिला महापौर थीं। अब 2023 में फिर एकीकृत एमसीडी को डॉ. ओबेरॉय के तौर पर महिला महापौर मिली हैं।
एमसीडी को बांटने के पीछे दिल्ली महापौर की तुलना में दिल्ली मुख्यमंत्री की ताकत और अहमियत बरकरार रखना था। दिसंबर चुनाव से पहले केंद्र ने एमसीडी का एकीकरण कर कहीं न कहीं दिल्ली में महापौर महत्वपूर्ण या मुख्यमंत्री की बहस को केंद्र में फिर ला दिया। आगे अगर महापौर और मुख्यमंत्री के बीच दिल्ली के विकास को लेकर कोई टकराव होता है, तो मामला राजनीतिक तौर पर दिलचस्प बन जायेगा।

लेकिन पंद्रह सालों तक जिस एमसीडी में भाजपा अपना अक्षुण्ण राज मानती रही, उसमें डॉ.शैली ओबेरॉय को महापौर और आले इकबाल को उपमहापौर बनवाकर आम आदमी पार्टी ने फिलहाल बड़ी लकीर खींच दी है। यह लकीर तब ही छोटी की जा सकती है जब राजनीतिक दावपेंच से महापौर की कुर्सी को ही भाजपा अपने हक में कर ले। मुस्लिम उप महापौर बनवाकर 'आप' ने कांग्रेस पार्टी को भी अपने अंदाज़ में टक्कर दी है। मुस्लिम वोटर्स के बीच अपनी पैठ जमाने के लिए एमसीडी में सभी नौ कांग्रेस पार्षदों ने मतदान में हिस्सा नहीं लेने का फैसला लिया था।

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आगे अप्रैल में एमसीडी महापौर का फिर चुनाव होना है। जाहिर है उसमें भाजपा अपना महापौर बनवाने का फिर भरसक प्रयास करेगी। विधानसभा के विधायकों की तुलना में एमसीडी पार्षदों को विशेषाधिकार हासिल है कि पार्षद दलगत भावना से ऊपर उठकर मतदान कर सकते हैं। अर्थात् पार्षदों पर मतदान के लिए विधायिका का बहुचर्चित दल बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता। इसकी मिसाल केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ नगर निगम है। वहां आप का बहुमत है फिर भी बीते दो मौकों से भाजपा अपना महापौर बनवाने में सफल रही है। अब देखना यह है कि क्या केजरीवाल दिल्ली में मेयर का पद अपनी पार्टी के पास बचाकर रख पाते हैं या नहीं।

यह भी पढ़ें: Delhi New Mayor: जानिए, कितनी संपत्ति की मालकिन हैं दिल्ली की नई मेयर शैली ओबेरॉय

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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