Lok Sabha Election Results 2019: जातिवाद से आजाद होता देश का लोकतंत्र
नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक रहे। इस बार के चुनावों की खास बात यह थी कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव परिणामों पर देर ही नहीं दुनिया भर की नज़रें टिकी थीं। और इन चुनावों के परिणामों ने विश्व में जो आधुनिक भारत की नई छवि बन रही थी उस पर अपनी ठोस मोहर लगा दी है कि ये वो भारत है जिसका केवल नेतृत्व ही नहीं बदला बल्कि यहां का जनमानस भी बदला है उसकी सोच भी बदल रही है। ये वो भारत है जो केवल बाहर से ही नहीं भीतर से भी बदल रहा है। इस भारत का लोकतंत्र भी बदल रहा है। जो लोकतंत्र जातिवाद मजहब समुदाय की बेड़ियों में कैद था उसे विकास ने आज़ाद करा लिया है। इसकी बानगी दिखी नतीज़ों के बाद जब सेंसेक्स ने भी मोदी सरकार की वापसी पर रिकॉर्ड 40000 की उछाल दर्ज की।
बदल रहा है भारत
आज़ाद भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि किसी गैर कांग्रेस सरकार को दोबारा जनता ने सत्ता की बागडोर सौंप दी हो वो भी पिछली बार से ज्यादा बहुमत के साथ। और आज़ाद भारत के इतिहास में कांग्रेस के साथ लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ है कि वो संसद में विपक्ष का प्रतिनिधित्व करने लायक संख्याबल भी नहीं जुटा पाई हो। कांग्रेस के लिए यह आत्ममंथन का विषय होना चाहिए कि उसका यह प्रदर्शन तो आपातकाल के बाद हुए चुनावों में भी नहीं था।1977 के अपने उस सबसे बुरे दौर में भी कांग्रेस ने 152 सीटें जीती थीं। दरअसल इन पांच सालों में और खास तौर पर चुनावों के दौरान देश को अगर किसी ने निराश किया है तो कांग्रेस ने। क्योंकि इन पांच सालों में उसने अपने किसी भी काम से ना तो भाजपा को चुनौती दी और ना ही खुद को लोगों के सामने भाजपा अथवा मोदी के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए। वो अपनी परफॉर्मेंस सुधारने की कोशिश करने के बजाए भाजपा की खराब परफॉर्मेंस का इंतजार करती रही। शायद कांग्रेस ने राजनैतिक पंडितों के इस गणित पर भरोसा कर लिया था कि भाजपा 2014 में अपना सर्वश्रेष्ठ दे चुकी है और उसने हर राज्य में इतना अच्छा परफॉर्म कर लिया है कि वो अपने इस प्रदर्शन को किसी भी हालत में दोहरा नहीं सकती।
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ममता को बंगाल की जनता ने जवाब दे दिया
और सत्ताविरोधी लहर के चलते उसकी सीटें हर राज्य में निश्चित ही कम होंगी। इसके अलावा उत्तरप्रदेश में सपा बसपा का गठजोड़ उसे 15 - 20 सीटों तक समेट देगा। यह वाकई निराशाजनक है कि भाजपा की हार में से ही कांग्रेस अपनी जीत के रास्ते खोजती रही। लेकिन वो भूल गई कि शॉर्टकटस से लंबे रास्ते तय नहीं होते और ना ही किसी की असफलता किसी की सफलता की वजह बन सकती है। सफलता तो नेक नियत और कठोर परिश्रम से हासिल होती है। इसलिए देश की जनता खास तौर पर उत्तर प्रदेश की जनता को सलाम है कि उसने वोटबैंक की राजनीति करने वाले सभी राजनैतिक दलों को एक सकारात्मक संदेश दे दिया है। उत्तरप्रदेश की जनता वाकई बधाई की पात्र है कि जिस राज्य में राजनैतिक दल दलितों यादवों मुसलमानों आदि के वोट प्रतिशत के हिसाब से अपना अपना वोट शेयर आंक कर अपनी सीटों का गणित लगाते थे उस प्रदेश में विकास और अपने काम के बल पर अकेले भाजपा को 50% और कहीं कहीं तो 60% तक का वोट शेयर मिला। जबकि वोटबैंक की राजनीति करने वाले बुआ बबुआ का गठबंधन जो भाजपा को 20 सीटों के अंदरसमेट रहा था वो खुद 15 पर सिमट गया। यह पहली बार हुआ कि वोटबैंक की राजनीति करने वाले हर दल को पूरे देश ने एक ही जवाब दिया। जो कांग्रेस एनआरसी के मुद्दे पर भाजपा को घेर रही थी उसे असम की जनता ने जवाब दे दिया। जो महबूबा मुफ्ती 370 हटाने पर कश्मीर में भारत के झंडे का अपमान करने की बात करती थीं उन्हें जम्मूकश्मीर की जनता ने जवाब दे दिया। जो ममता प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री बनने से ही इंकार कर रही थीं और उन्हें जेल में डालने की बात करती थीं उन्हें बंगाल की जनता ने जवाब दे दिया है।
बदले भारत की तस्वीर है लोकसभा चुनाव 2019 का परिणाम
नोटबन्दी और जीएसटी पर सरकार को लगातार घेरने वाले विपक्ष को देश ने जवाब दिया विश्व के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जीएसटी लागू करने वाली किसी सरकार की सत्ता में वापसी हुई हो। इसलिए भाजपा की इस अभूतपूर्व विजय में मध्यम वर्ग का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। खुद प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि देश के इतिहास में इतना मतदान पहली बार हुआ है और आंकड़े बताते है कि जब जब मध्यम वर्ग ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है मतदान का प्रतिशत बढ़ा है।
मजहब से ऊपर उठकर भाजपा के पक्ष में मतदान हुआ
दरअसल जो मध्यम वर्ग पहले वोटिंग के प्रति उदासीन रहता था उसने भी इस बार मतदान में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। जो राजनैतिक पंडित उज्ज्वला योजना आयुष्मान योजना प्रधानमंत्री आवास योजना शौचालय निर्माण जैसी योजनाओं के कारण केवल दलितों शोषित वंचितों का जात और मजहब से ऊपर उठकर भाजपा के पक्ष में मतदान करने को ही भाजपा की जीत का एकमात्र कारण मान रहे हैं वो या तो नादानी वश कर रहे हैं या फिर स्वार्थवश ऐसा कह रहे है।
बहुत से पुराने मिथक टूट गए
लेकिन इस सब से परे इन नतीजों ने बहुत से पुराने मिथक तोड़े हैं तो कई नई उम्मीदें भी जगाई हैं। ये वो नतीजे हैं जिन्होंने चुनावों की परिभाषा ही बदल दी। इन नतीजों ने बता दिया कि चुनाव सीटों के अंकगणित का खेल नहीं बल्कि मतदाता का अपने नेता के ऊपर विश्वास के रसायन से उपजे समीकरण हैं। इसलिए चुनावो में गणित की तर्ज पर दो और दो मिल चार कभी नहीं होते बल्कि दो और दो मिलकर बाईस होंगे या बैक फायर होकर शून्य बन जाएंगे यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जैसे जिस पिछले चुनावों में विपक्ष के लिए मोदी को चाय वाला और नीच कहना भारी पड़ गया तो इस बार चौकीदार चोर है के नारे लगवाना। झूठे नैरेटिव बना कर जो चोर न हो उसे चोर कहना जो भ्रष्ट ना हो उसे भ्रष्ट कहना जो ईमानदार है उसे बेईमान कहना विपक्ष को किस कदर भारी पड़ने वाला है इसका अंदाज़ा शायद उन्हें भी नहीं था।
वंशवाद अवसरवाद की राजनीति को जनता ने नकार दिया
दरसअल स्वार्थ वंशवाद अवसरवाद की राजनीति को जनता अब समझने लगी है। इन चुनाव परिणामों से जनता ने जवाब दे दिया है कि जो काम करेगा वो ही राज करेगा। लेकिन विपक्ष की परेशानी यह है कि मोदी ने एक बहुत बड़ी रेखा खींच ली है और अफसोस की बात यह है कि उस रेखा की बराबरी करने की ताकत विपक्ष में हो ना हो लेकिन जज्बा नहीं है। शायद इसलिए वो लगातार मोदी की बनाई लकीर को छोटी करने में लगा है।
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