
Jawaharlal Nehru Jayanti: यह देश जवाहरलाल नेहरू के महान गुणों का जीवंत स्मारक है
Jawaharlal Nehru Jayanti: मोतीलाल नेहरू और स्वरूपरानी के घर 14 नवंबर 1889 को जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ। जवाहर लाल नेहरू सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए थे, क्योकि उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने वकालत में खूब पैसा और प्रतिष्ठा अर्जित की थी। अकूत संपत्ति और धनार्जन के साथ राजसी ठाठ बाट, अभिजात्य दावतें, पश्चिमी रहन सहन और अंग्रेजियत मोतीलाल नेहरू के जीवन का यथार्थ था।
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इस कारण जवाहल लाल नेहरू को बचपन से विशेष देखभाल, लाड़ प्यार के साथ नौकर चाकर, रईसी, गाड़ी और आनंद भवन जैसे महलरूपी घर में मौजूद नाना प्रकार की सुख सुविधाएं उपलब्ध थीं। जवाहरलाल की मां स्वरूपरानी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं, जिनके सानिध्य में जवाहरलाल को हिंदू संस्कारों का अबाध परिवेश मिला।
घर का माहौल खुला खुला था। न किसी तरह की परदेदारी थी, न किसी तरह की रोक टोक। हर विषय पर खुल कर बात होती थी। धर्म, परंपरा, इतिहास और लोक कथाओं के साथ अंग्रेजों की शासन पद्धति पर भी बातचीत का खुला माहौल था।
जवाहरलाल की प्रारभिक शिक्षा घर पर ही हुई। अंग्रेज नौकरानी और निजी शिक्षकों को नियुक्त किया गया, ताकि उन्हे अंग्रेजी तौर तरीकों के अनुरूप ढाला जा सके। इसके बाद 1905 में इंग्लैड के एक नामी स्कूल हैरो में जवाहर का दाखिला करा दिया गया। वहां उनका सामना पाश्चात विचारको से पड़ा और वे दुनिया भर की क्रांतिकारी गतिविधियों के मध्य में भारत के स्वर्णिम भविष्य का सपना संजोने लगे।1907 के अक्टूबर में वे कैब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज मे चले गए और वहां प्राकृतिक विज्ञान विषय में स्नातक उपाधि के साथ उतीर्ण हुए।
यह बौद्धिक रूप से जवाहरलाल का निर्माण काल था। इस दौरान उन्होने राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास और साहित्य का प्रचुर अध्ययन किया। कैब्रिज के बाद वह लंदन गए और स्कूल आफ लॉ, जो इनर टेम्पल के नाम से विख्यात था, में दो वर्षो तक कानून की विधिवत् शिक्षा ली। 1912 में उन्होंने वकालत की परीक्षा पास की और बैरिस्टर एट लॉ की डिग्री के साथ इलाहबाद लौट आए।
पिता की अकूत संपत्ति के इकलौते वारिस, विदेश में हुई शिक्षा दीक्षा और वकालत की डिग्री से अपने पिता के समान अकूत पैसा कमाने की संपूर्ण योग्यता होने के बाद भी जवाहरलाल ने ऐशो आराम की जिंदगी को ठोकर मारकर महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतत्रंता आंदोलन में अपना सर्वस्व होम करने का निर्णय लिया। देश की गुलामी जवाहरलाल को परेशान करती थी।
1920 में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में युवा जवाहरलाल को गांधीजी ने यूनाइटेड प्रोविंस की कमान सौपी। इस अभियान का नेतृत्व करते करते एक आम अभिजात्य व्यक्ति से बदलकर वह ऐसे नायक बने, जिसे इतिहास युगद्रष्टा पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम से जानता हैं।
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने सिर्फ देश की ही नहीं, जवाहरलाल के जीवन की दिशा भी बदल दी थी। इस दौरान उन्होंने खूब यात्राएं की। पैदल, रेल से, बैलगाड़ी और साइकिल से गांवों का चप्पा चप्पा छाना। देश की असल तस्वीर वह पहली बार देख रहे थे जिसमें गरीबी थी, लोग नंगे, भूखे होने के साथ साथ सामाजिक रूप से परेशान थे।
उन्हे अब तक मालूम न था कि कारखानों में किस कदर मजदूरों का शोषण होता आया हैं और अब तक वह जमीदारों की किसानों पर होने वाली ज्यादतियों से भी नावाफिक थें। इस आंदोलन ने जवाहर लाल नेहरू में समग्र सामाजिक राजनीतिक दृष्टि विकसित करने का काम किया। भावनाओं के आधार पर ही नहीं, अब वह वास्तविकताओं के आधार पर भारतीय अवाम से जुड़ने लगे थे और जनता के बीच जवाहर का जादुई आकर्षण उत्पन्न होने लगा था और इसी कारण आगे चलकर जवाहर लाल नेहरू देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने।
बीसवी सदी में गांधी के बाद यदि किसी एक हिन्दुस्तानी का इस देश की जनता में चुबंकीय आकर्षण और दिल पर राज करने वाली लोकप्रियता रही तो वह शख्स जवाहरलाल नेहरू थे। देश की आजादी बंटवारें के साथ मिली थी। दो सौ वर्षो में अंग्रेजों ने इस देश के आर्थिक संसाधनों को निचोड़ लिया था।
नेहरू को टूटा हुआ, बंटा हुआ, दीमक की तरह खाया हुआ, खोखला किया हुआ और सांप्रदायिक हिंसा की आग में धधकता हुआ देश मिला था। भुखमरी से मरते गरीब थे तो दंगों में जल रहा समाज था।
एक गरीब देश अधूरी आजादी के साथ विखंडित और हतप्रभ लाखों लाशों के श्मशान में खड़ा था। देश के बंटवारे के बाद की सांप्रदायिक स्थिति भयावह थी। पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थियों का पुर्नवास एक चुनौती थी। भंयकर सामाजिक आर्थिक विषमता सामने थी। इन सबके साथ ही नेहरू के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक सार्थक लोकतंत्र की बहाली और उसे गतिशील बनाने की थी।
ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत छोड़ते वक्त घोषणा की थी कि भारत स्वराज संभाल नहीं सकेगा और टुकड़े टुकड़े हो जाएगा। पर यह मुल्क न सिर्फ बचा रहा बल्कि नेहरू की नेकनीयती, दूरदर्शिता, राष्ट्रप्रेम, आधुनिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति वचनबद्धता और निर्भीक साहस के साथ प्रभावशाली प्रशासन से मजबूती के साथ आगे बढ़ा और हर चुनौती का सामना करके एक रहा।
यह देश नेहरू के महान गुणों का जीवंत स्मारक है। वह नेहरू ही थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक सोच से युक्त समाज निर्माण के लिए प्रेरक तत्व की भूमिका निभाई और लोकतांत्रिक संस्थाओं को गरिमा देना और उन्हे सशक्त बनाने के लिए अपना पूरा सहयोग दिया।
आज हम विश्व में जिस गरिमा से खड़े हैं, उसकी जड़ें जवाहरलाल के समय से जुड़ी हैं। यह भारत यूं ही नहीं बन गया। इसके पीछे बहुत सारे मूल्यों और संघर्षो और उनके लिए किए गए अथक परिश्रम की कथा है। आजादी के बाद के विकट संकट और दंगाग्रस्त समय में जिस अडिग निश्चय और दूरदर्शिता के साथ नेहरू भारत निर्माण की योजना में जुटे थे, आज का भारत उसी योजना का परिणाम है। नेहरू की ऐतिहासिक सफलताएं इस देश के आधुनिक इतिहास का सबसे उज्ज्वल पहलू हैं।
नेहरू ने कारखानों को आजाद भारत का तीर्थ कहा था। देश में विशाल इस्पात के कारखाने, पनबिजली परियोजनाएं, परमाणु बिजली के संयत्र नेहरू सरकार की देन थी। अपनी लोकतांत्रिक सरकार की सारी शक्ति उन्होंने विकास के एक मॉडल पर अमल करने के लिए झोक दी।
बड़े बांध, सिचाई योजनाएं, अधिक अन्न उपजाओ, वन महोत्सव, सामुदायिक विकास, राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम, पंचवर्षीय योजना, भारी उद्योग, लोहे, बिजली और खाद के कारखाने, नए स्कूल और कॉलेज, प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र, लाखों नई सरकारी नौकरियां, यह सारा सिलसिला देश में जवाहरलाल नेहरू की अदम्य उर्जा और इच्छाशक्ति से शुरू हुआ।
'भारत एक खोज' में नेहरू ने भारतीय इतिहास की राह चलकर अपना भारत खोजा है और यह बताया है कि हर आदमी का अपना भारत हो सकता है, पर सबका भी एक भारत हो सकता है, भारतीयों का ही नहीं सारी दुनिया का। उस भारत से भारतीय ही नहीं, दूसरे भी उसकी लाक्षणिकताओं के कारण उससे प्रेम करते हैं। इस पुस्तक में भारत अपनी समग्रता में मौजूद हैं। पूरी किताब में नेहरू का भारत के प्रति लगाव झलकता हैं।
नेहरू से किसी विदेशी पत्रकार ने उनके जीवन और कार्यकाल के अंत के समय में एक साक्षात्कार में पूछा था कि आप अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं? नेहरू का जवाब था "एक अत्याधिक धार्मिक मानसिकता वाले देश में एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था के निर्माण की दिशा में कोशिश करना।"
नेहरू इतिहास का बीता हुआ एक यादगार और शानदार दस्तावेज हैं। लेकिन देश का यह दुर्भाग्य है कि अफवाहों, दुष्प्रचार, गढ़ी हुई कहानियों के जरिए नेहरू के व्यक्तित्व पर कालिख पोतने और उनको सिरे से नकारनें की कोशिशें की जा रही हैं।
सोशल मीडिया ने इस सब को एक सामूहिक राय, एक स्थापित सत्य बनाने की कवायद शुरू कर दी है। असंख्य झूठी कहानियां सोशल मीडिया में यात्राएं कर रही है और देश की युवा पीढ़ी उसे सच मान रही हैं। यह बहुत पीड़ा की बात है और इतिहास का विरूपीकरण भी है।
भारत के भविष्य निर्माण के लिए एक अथक और निश्चल सेनानी द्वारा किये गये प्रयास के प्रति हमारा दुराग्रह, दुष्प्रचार और कलुषित भावनाएं नेहरू की छवि को धूमिल करने के साथ स्वतत्रंता आंदोलन के संघर्ष को भी धूमिल कर रही हैं।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)