Interest Rate and Inflation: रिजर्व बैंक की ब्याज दर पर सबकी नजर
दिसंबर के प्रथम सप्ताह में मौद्रिक नीति पर रिजर्व बैंक की बैठक होनी है। रिजर्व बैंक इस साल के वित्त वर्ष में रेपो रेट 1.9 फीसदी बढ़ा चुका है। ऐसे में आम आदमी, बैंक और CII सबकी निगाह इस मौद्रिक नीति हेतु बैठक पर है।
Interest Rate and Inflation: अभी हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने रिजर्व बैंक से गुजारिश की है कि वह ब्याजदर बढ़ाने की गति धीमी करे। उसका कहना है कि अप्रैल से अब तक हुई ब्याज दर में 1.9 फीसदी की बढ़ोत्तरी उद्योग जगत को नुकसान पहुंचा रही है। रिजर्व बैंक को दिसंबर के पहले हफ्ते में प्रस्तावित मौद्रिक समीक्षा बैठक में इसकी गति धीमी करनी होगी।
दरअसल केंद्रीय बैंक बढ़ती महंगाई, गिरते रूपये और अमेरिका के फ़ेडरल बैंक द्वारा लगातार ब्याज दर बढ़ाये जाने की पृष्ठभूमि में ऐसा कर रहा है ताकि महंगाई और डॉलर के मुकाबले रूपये के मूल्य को गिरने से रोक सके।
जबकि इसके प्रयासों के उलट शहरी मध्य वर्ग से बात करने पर पता चल रहा है कि वह भी इस वृद्धि से परेशान है। सबसे अधिक परेशान बड़े शहरों का मध्यवर्ग है। बड़े शहरों के मध्य वर्ग पर होम लोन, कार लोन आदि का भार है। उनकी बढ़ी हुई ईएमआई महंगाई कम होने की बचत से कहीं ज्यादा है और वह अपने बढे हुए कैश फ्लो के बीच यही चाह रहा है कि अब उसकी किश्त ना बढ़े।
रियल एस्टेट ने भी जो रफ़्तार पकड़ी थी, इस बढ़ती ब्याज दर के कारण उसकी रफ़्तार मंद पड़ रही है। चूंकि रियल एस्टेट कई उद्योगों का पोषक है अतः उसका धीमा पड़ना, ग्लोबल मंदी की लड़ाई के पार्श्व में की जा रही तैयारियों के बीच उसे और मंद कर दे रहा है।
इन्हीं सब बिंदुओं को दृष्टिगत रखते हुए दिसंबर माह में प्रस्तावित मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठक से पहले भारतीय उद्योग परिसंघ अपने इन बिंदुओं को रिजर्व बैंक एवं सरकार के संज्ञान में लाना चाहता है। भारतीय उद्योग परिसंघ को मालूम है कि मौद्रिक समीक्षा नीति वह नीति है जो मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर के प्रबंधन के लिये रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति, विकास आदि व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये तय करती है। यदि समय रहते उसने यह आवाज नहीं उठाई और पुनः ब्याज दर बढ़ने की गति तेज हो गई तो रियल इस्टेट समेत कई क्षेत्रों पर इसका व्यापक असर पड़ेगा। वैश्विक कारणों से कम और इस कारण से भारत में आसन्न मंदी वास्तविक बन जायेगी।
अगर ऊपर बताई गई बातें और ब्याज दर बढ़ना एक समस्या बन रहा है तो यहां यह जानने की कोशिश करते हैं कि भारत समेत दुनिया दुनिया भर के देश ऐसा क्यों कर रहें हैं? महंगाई या मुद्रा स्फीति का ब्याजदर से क्या संबंध है? ब्याज दर और मुद्रास्फीति एक ही दिशा में बढ़ते हैं लेकिन कुछ आगे पीछे। पहले मुद्रास्फीति बढ़ती है पीछे से ब्याजदर बढ़ता है फिर मुद्रास्फीति घटती है तो फिर ब्याज दर घटना शुरू कर देता है। तब फिर मुद्रा स्फीति आ जाती है और इस प्रकार से यह चक्र चलता रहता है।
मुद्रास्फीति का प्रबंधन करने के लिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दर का इस्तेमाल प्राथमिक उपकरण के रूप में करते हैं। सामान्य तौर पर, उच्च ब्याज दरें बढ़ती मुद्रास्फीति के लिए एक नीतिगत प्रतिक्रिया होती हैं।
इसके विपरीत, जब मुद्रास्फीति गिर रही होती है और आर्थिक विकास धीमा हो रहा होता है, तो केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दरों को कम कर देते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह बढ़ जाता है, ऋण का ब्याज सस्ता हो जाता है। लोग ऋण लेना शुरू कर देते हैं। जमा पर ब्याज कम हो जाता है तो लोग बैंक में जमा करने की जगह अन्य जगह निवेश करने लगते हैं। इससे बाजार में मुद्रा की मात्रा और चलन बढ़ जाती है।
इसी कारण जब मुद्रास्फीति बढ़ती है तो बाजार से मुद्रा को बाहर कर वापस बैंक में लाने के लिये केंद्रीय बैंक ब्याज दर बढ़ा देते हैं और यदि मुद्रा स्फीति घटती है तो उसका पीछा करते हुए ब्याज दर घटा देते हैं।
केंद्रीय बैंक सबसे पहले नियंत्रित मुद्रास्फीति को आवश्यक मानते हुए मुद्रास्फीति की एक सकारात्मक दर का लक्ष्य बनाता है, जिसे वस्तुओं और सेवाओं के समग्र मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि के रूप में आप समझ सकते हैं। केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति की एक सकारात्मक दर इसलिए निर्धारित करता है क्योंकि कीमतों में निरंतर गिरावट (अपस्फीति) अर्थव्यवस्था के लिए और भी अधिक हानिकारक हो सकता है। मुद्रास्फीति और ब्याज दरों का सकारात्मक स्तर भी केंद्रीय बैंक को भविष्य में आर्थिक मंदी होने पर ब्याज दरों को कम करने के लिये एक सीमा तक स्पेस प्रदान करता है।
जब केंद्रीय बैंक बढ़ती मुद्रास्फीति के जवाब में ब्याज दर बढ़ाते हैं तो यह वित्तीय प्रणाली में जोखिम मुक्त रिज़र्व के स्तर को प्रभावी ढंग से बढ़ाता है तथा जोखिम वाली संपत्तियों की खरीद के लिए उपलब्ध धन आपूर्ति को सीमित करता है। इसके विपरीत, जब एक केंद्रीय बैंक अपनी लक्षित ब्याज दर को कम करता है तो यह जोखिम वाली संपत्तियों को खरीदने के लिए उपलब्ध मुद्रा आपूर्ति को प्रभावी ढंग से बढ़ाता है।
ऋण लेने की लागत में वृद्धि करके, बढ़ती ब्याज दरें उपभोक्ता और व्यावसायिक खर्च को हतोत्साहित करती हैं। विशेष रूप से लोग आवास, गाड़ी और बड़ी-टिकट वाली वस्तुओं को खरीदने से परहेज करने लगते हैं। बढ़ती ब्याज दरें भी संपत्ति की कीमतों पर भार डालती हैं और बैंकों को ऋण देने के निर्णयों में अधिक सतर्क बनाती हैं। लगातार बढ़ती ब्याज दरें इस संभावना का भी संकेत देती हैं कि केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति को और कड़ा करना जारी रख रहा है क्योंकि मुद्रास्फीति से लड़ाई अभी जारी है।
ऐसा देखा गया है कि मुद्रा स्फीति के जवाब में नीति नियंता देर से जागते हैं। ऐसा कह सकते हैं कि यदि मौद्रिक नीति बनाना एक कार चलाने जैसा है, तो कार वह है जिसमें एक अविश्वसनीय स्पीडोमीटर, एक धुंधला विंडशील्ड, और अप्रत्याशित रूप से और एक्सीलेटर या ब्रेक में देरी के साथ प्रतिक्रिया करने की प्रवृत्ति है। यदि यह होता गया तो आर्थिक दुर्घटना की सम्भावना रहती है।
इसलिए अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए एक कुशल चालक की जरुरत होती है जो आर्थिक कारकों के अन्तर्सम्बन्धों को समझ सके और जैसी भी परिस्थितियां आये, अर्थव्यवस्था की ड्राइविंग कुशलता से करते रहे।
यह भी पढ़ें: आरबीआई 1 दिसंबर को लॉन्च करेगा डिजिटल रुपया, जानें कैसे कर सकेंगे लेन-देन
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)