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G20 Summit: वैश्विक संगठनों के कमजोर होने से बढी जी20 की अहमियत

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G20 Summit: 2023 में भारत जी-20 की अध्यक्षता करेगा। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी फिलहाल बाली, इंडोनेशिया में है। जी 20 एक अंतरराष्ट्रीय समूह है जो 19 देश तथा यूरोपियन यूनियन को मिलकर बना है।

यह समूह 1999 में बना था लेकिन 2008 से सम्मेलनों में मिलना जुलना शुरू हुआ। यह समूह आपसी व्यापार, आरोग्य, जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर सहमति से कुछ सामूहिक काम करने की कोशिश करता है।

importance of g20 summit and India G20 Presidency For 2023

भारत को अध्यक्षता मिलना एक प्रक्रिया का हिस्सा कहा जाएगा क्योंकि गुट का न कोई स्थायी कार्यालय है न कोई स्थायी अध्यक्ष। हर साल सदस्यों को बारी-बारी अध्यक्षता मिलती है। अध्यक्षता का कुछ विशेष लाभ होता है ऐसा भी नहीं है।

हाँ, यह जरूर है कि जी20 का कार्यालय एक वर्ष के लिए भारत में रहेगा और सदस्य देशों के अधिकारी एवं नेताओं का भी आना-जाना होता रहेगा। भारत चाहे तो महत्त्वपूर्ण विषयों पर कुछ नई बात या नया दृष्टिकोण रख सकता है।

वैसे जी20 की कोई खास कामयाबी रही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। गुट कभी विकास, कभी भ्रष्टाचार या फिर 'कर व्यवस्था' और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर बातें करता रहा है। कोरोना संकट काल में भी सहयोग की बात हुई थी। इन चर्चाओं का कुछ खास नतीजा निकला है ऐसा भी नहीं कह सकते। इसलिए ऐसे सम्मेलन शादी समारोह से ज्यादा कुछ नहीं होते। नेताओं का मिलना जुलना ही है जो विशेष चर्चा में रहता है। कोरोना संकट के बाद समूह के नेतागण एक दूसरे को प्रत्यक्ष मिल रहे है और यही एक बात अहमियत रखती है।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों का घटता महत्व

वैसे देखा जाए तो ऐसे छोटे-छोटे गुट होना अंतरराष्ट्रीय सहयोग से बने बड़े गुट जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, आईएमएफ़, वर्ल्ड बैंक, डब्लूटीओ, डब्लूएचओ वगैरह की अहमियत कम करता है। या यूँ कहिए की जब यह बड़े संगठन दुनिया के सभी देशों के हितों की बात करने में और उनको न्याय देने में असफल हो जाते है तो दुनिया में क्षेत्रीय गुटों का उदय होता है जो आपसी संबंध बढ़ाने एवं आपसी प्रश्न सुलझाने का प्रयास करते हैं।

यूरोपीयन यूनियन, अरब लीग, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन, कॉमन वेल्थ देशों का संगठन, सार्क, अफ्रीकी देशों का समूह ऐसे संगठन हैं जिनके जरिए विभिन्न देश अपने क्षेत्रीय हित, व्यापार और सुरक्षा तथा अपने एक जैसे प्रश्नों को सुलझाने की बात करते हैं। इसी तरह कुछ ताकतवर या विकसित देशों के भी संगठन हैं, जैसे जी7। नाटो जैसे संगठन भी बने जो एक दूसरे की सुरक्षा का जिम्मा लेते है। जी 20 भी ऐसा ही एक संगठन कहा जाएगा जो थोड़ा बड़ा है क्योंकि यह दुनिया का 80 % जीडीपी, 75% अंतरराष्ट्रीय व्यापार तथा 60% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।

बड़े संगठनों की गिरती साख

यह सच है कि बड़े संगठन जैसे कि संयुक्त राष्ट्र संघ, डबल्यूटीओ, वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ़, डबल्यूएचओ अपना काम निष्पक्षता से नहीं कर पा रहे है। संयुक्त राष्ट्र संघ यूक्रेन-रूस युद्ध रोक नहीं पाया या शस्त्र स्पर्धा में भी कमी नहीं ला सका। बड़े देश आतंकवाद के संदर्भ में स्वार्थी भूमिका लेते दिखाई देते है। चीन का पाकिस्तानी आतंकवादियों के बारे में रुख इसका उदाहरण है।

डब्लूटीओ की बात अब कोई सुन नहीं रहा है। सभी देश अपने-अपने हित को ध्यान में रख कर आपसी व्यापार बढ़ाने में लगे हुए है और आपसी व्यापार समझौते में ज्यादा विश्वास कर रहे है। आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक श्रीलंका की स्थिति संभालने में सहायक साबित नहीं हुए। डबल्यूएचओ का कोरोना संकट में जो रुख था इस पर ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है। सभी देशों के सहयोग से बने अंतरराष्ट्रीय संगठनों की गिरती साख ही छोटे-छोटे गुटों का महत्व बढ़ा रही है जिसमें जी 20 भी शामिल है।

अमीर देशों का प्रभाव कम हो

अंतरराष्ट्रीय संगठनों की साख गिरने का मुख्य कारण यही है कि ये अमीर देशों के दबाव में काम करते हैं। दूसरे महायुद्ध के बाद बहुत सारे देश स्वतंत्र जरूर हुए लेकिन किसी न किसी गुट का हिस्सा रहे और यह बात अंतरराष्ट्रीय संगठनों के व्यवहार में साफ दिखाई देती है। आज भी रूस-चीन दुनिया के देशों को एक तरफ खींचते है तो अमरीका और यूरोप के ताकतवर देश दूसरी ओर।

संयुक्त राष्ट्र संघ, वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ़, वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन और डब्लूटीओ जैसे संगठन कमजोर हो रहे हैं और छोटे देशों की सहायता नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण वो देश क्षेत्रीय समूहों का सहारा ले रहे हैं तथा सामूहिक प्रयत्न की जगह एक दूसरे से सीधे संबंध बनाने के प्रयास कर रहे है, जो बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। समय की जरूरत है कि वैश्विक संगठन अपनी कमजोरी को दूर करें।

भारत को एक अच्छा मौका

ऐसे समय में भारत को जी 20 की अध्यक्षता मिलना उपयुक्त हो सकता है। कोरोना संकट ने यह बता दिया है कि सैन्य शक्ति ही सब कुछ नहीं है। भारत जैसे विकासशील कहे जाने वाले देश ने अपने आर्थिक संकटों के बावजूद कोरोना के संकट को अपने बलबूते पर संभाला और अपना वेक्सिन विकसित किया। यह बात दुनिया भर में एक मिसाल बनकर उभरी। उसी के चलते दुनिया भर में भारत की साख बढ़ी है और बड़े देशों ने भी भारत को सराहा है।

अब भारत की बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनी जा रही है। भारत को भी चाहिए कि जी 20 गुट के विचारों की दिशा आर्थिक विकास और विश्व शांति की ओर ले जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ वगैरह अंतरराष्ट्रीय बड़े संगठनों की साख बढ़े, ऐसे प्रयास भी आवश्यक हैं जिसके लिए जी 20 गुट महत्वपूर्ण है। वैसे इस गुट में विकसित और विकासशील ऐसे दोनों देश शामिल हैं लेकिन उनके प्रश्न और सोच अलग-अलग है। इनमें समन्वय होना एक बड़ी चुनौती है।

भारत इस समन्वय की दिशा में प्रयत्न कर सकता है। सभी देशों का दृष्टिकोण और भूमिका समझने का प्रयास इस गुट में हो सकता है जो सयुंक्त राष्ट्र संघ और उससे संलग्न संगठनों का रुख बदलने में मददगार होगा। पिछले कुछ वर्षों में भारत की अंतरराष्ट्रीय नीति में बदलाव आया है और भारत समर्थ बनने का भी प्रयास कर रहा है। शायद इसलिए नीति और भूमिका में स्पष्टता आ रही है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले शांति प्रयासों में सहयोगी होने के बावजूद भारत आत्मनिर्भरता की बात कर रहा है, यह सराहनीय है। यह सही है कि आपसी व्यवहार से की हुई शांति की पहल ही युद्ध से मुक्ति दिलाने और दुनिया को खुशहाल बनाने में कारगर साबित होगी तथा कोरोना जैसे संकट का सामना भी कर सकेगी। जी 20 गुट की और भारत के अध्यक्ष काल की अहमियत भी इसी विचारधारा पर अमल करने से बढेगी।

यह भी पढ़ें: विश्वशक्ति बनने के सफर पर निकला भारत, इंडोनेशिया में सौंपी गई G20 की अध्यक्षता, ऐतिहासिक दिन

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
importance of g20 summit and India G20 Presidency For 2023
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