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इंडिया गेट से: राष्ट्रवादी मुसलमानों और उदारवादी हिन्दुओं की पार्टी बनाएंगे गुलाम नबी आज़ाद

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अभी भले कांग्रेस को दिखाई न दे रहा हो, आने वाले दिनों में गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित होगा ।उसे यह झटका सिर्फ जम्मू कश्मीर में नहीं, बल्कि सारे देश में लगता दिखाई दे रहा है। उनके इस्तीफे के बाद से आनंद शर्मा, पृथ्वीराज चव्हाण, भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उनके घर पर बैठक की है। वहीं मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेताओं ने कांग्रेस की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। साफ है कि ये घटनाएं कांग्रेस में आने वाले तूफान का संकेत है।

Ghulam Nabi Azad will form party of nationalist Muslims

फिलहाल बड़ा भूचाल जम्मू और कश्मीर में आता दिखाई दे रहा है, जहां पर थोक के भाव कांग्रेस के नेता आजाद के समर्थन में कांग्रेस से इस्तीफा दे रहे हैं। इस लिस्ट में पूर्व उप मुख्यमंत्री से लेकर कई वरिष्ठ नेता शामिल है। जिस तरह जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस के नेता इस्तीफा दे रहे है, उससे साफ है कि आजाद ने जम्मू और कश्मीर में आगामी चुनावों को देखते हुए अपनी तैयारी बहुत पहले शुरू कर दी थी। पार्टी अभी तक जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद पर ही निर्भर थी, लेकिन अब आजाद उनसे अलग हो चुके हैं। अब वह 4 सितंबर को जम्मू-कश्मीर में रैली करने जा रहे हैं, जिसमें वह नई पार्टी का एलान करेंगे।

संकेत आ रहे हैं कि अभी तो आजाद का सारा फोकस जम्मू कश्मीर पर होगा, लेकिन अगर जम्मू कश्मीर में वह भाजपा की मदद से खुद मुख्यमंत्री बनते हैं या भाजपा का मुख्यमंत्री बनवाने के लिए किंग मेकर की भूमिका में आते हैं, तो अगले साल नई पार्टी को अखिल भारतीय स्वरूप दिया जाएगा। तब उनके पार्टी छोड़ने का असर राष्ट्रीय स्तर पर दिखेगा। क्योंकि आजाद का लक्ष्य उदारवादी हिन्दुओं और राष्ट्रवादी मुसलमानों को साथ लेकर ऐसी पार्टी बनाना है, जो कांग्रेस के रिक्त स्थान को भर सके।

आज़ादी के आन्दोलन में और आज़ादी के बाद यही दोनों वर्ग कांग्रेस का मुख्य समर्थक था। इंदिरा गांधी के जमाने में जब कम्युनिस्टों ने कांग्रेस में प्रवेश शुरू किया तो कांग्रेस की तासीर बदल गई। कांग्रेस का कम्युनिस्ट विचारधारा और कट्टरवादी मुसलमानों की और झुकाव बढ़ा और कांग्रेस में बैठे हिन्दुओं की अनदेखी शुरू हो गई। जबकि आज़ादी से पहले और 1970 तक कांग्रेस को हिन्दुओं के साथ साथ राष्ट्रवादी मुसलमानों की पार्टी माना जाता था, जो राष्ट्रगान और कांग्रेस की ओर से निर्धारित संक्षिप्त वन्देमातरम में कोई परहेज नहीं करते थे। कांग्रेस में आए इस बदलाव के कारण कांग्रेस से जुड़े रहे हिन्दुओं और राष्ट्रवादी मुसलमानों के ये दोनों वर्ग खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।

गुलामनबी आज़ाद उसी कांग्रेस को वापस खड़ा करना चाहते हैं। लेकिन यह उनकी दीर्घकालीन रणनीति है, फिलहाल वह जम्मू कश्मीर पर फोकस करेंगे। जम्मू कश्मीर से जैसे संकेत मिल रहे हैं, गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस ही नहीं, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और आम आदमी पार्टी में भी भगदड़ मचा दी है। अभी उन्होंने पार्टी बनाई नहीं है कि इन सभी पार्टियों से इस्तीफों की खबरें आ रही हैं।

गुलामनबी आज़ाद का किंग मेकर की भूमिका में आना सुनिश्चित लग रहा है, क्योंकि उनके नेतृत्व में जब कांग्रेस ने 2002 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, तो कांग्रेस को विधानसभा में 20 सीटें मिलीं थी। इसलिए वह पीडीपी के साथ साझा सरकार में तीन साल के लिए मुख्यमंत्री भी बने। लेकिन बाद में वह राष्ट्रीय राजनीति में लौट आए तो कांग्रेस कभी भी उतनी सीटें हासिल नहीं कर सकी।2018 में भंग विधानसभा में तो कांग्रेस के सिर्फ 12 विधायक थे, जबकि भाजपा के 25 विधायक थे।

गुलाम नबी आजाद ने ऐसे समय में कांग्रेस छोड़कर पार्टी बनाने का ऐलान किया है, जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की आहट है। चुनावों में करीब 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है, जो कश्मीर की अब तक की राजनीति को बदल कर रख देंगे। क्योंकि जम्मू कश्मीर की दोनों मुस्लिम पार्टियों ने इन नए वोटरों को अब तक वोट के अधिकार से वंचित रखा था। ऐसी परिस्थिति में उसका खामियाजा कांग्रेस के साथ साथ नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को भी उठाना पड़ सकता है।

जम्मू में भाजपा का पलड़ा भारी है, और सीटों का संतुलन हिन्दू बहुल जम्मू के पक्ष में है। इससे पहले जम्मू क्षेत्र की सिर्फ 36 सीटें थीं, जिनमें से पिछली बार भाजपा 25 जीती थी, कुछ सीटें कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने जीती थीं। अब जम्मू की सीटें बढ़ कर 43 और कश्मीर की सीटें 46 से बढ़कर 47 हो गई हैं। यानी जम्मू से भाजपा की ज्यादा सीटें बढने की संभावना बन गई है।

लेकिन इस के बावजूद भाजपा को अपना मुख्यमंत्री बनवाने के लिए कश्मीर घाटी की कुछ सीटें चाहिए होंगी। गुलामनबी आज़ाद इसमें भाजपा के सबसे बड़े मददगार साबित हो सकते हैं। यह कांग्रेस ही नहीं नेशनल कांग्रेस और पीडीपी को भी दिखने लगा है।जम्मू की मुस्लिम सीटों और घाटी की सभी 47 सीटों पर गुलामनबी आज़ाद निश्चित ही बड़ा प्रभाव डालेंगे।

गुलामनबी नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को दोनों को नुकसान पहुंचाएंगे और कुछ सीटें जीतने में कामयाब हो सकते हैं। जम्मू में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस का वोटर गुलामनबी आज़ाद को शिफ्ट हो सकता है, क्योंकि जम्मू कश्मीर का अलगाववाद विरोधी मुसलमान उनके समर्थन में आ सकता है।

गुलाम नबी आजाद की खासियत यह है कि वह जम्मू-कश्मीर के उन गिने-चुने नेताओं में हैं, जिनकी घाटी से लेकर दिल्ली तक स्वीकार्यता है। कांग्रेस का भी यही आकलन है कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू कश्मीर में होने वाले चुनाव में भाजपा के गेम प्लान में आजाद और उनकी नई पार्टी की अहम भूमिका हो सकती है।

चुनाव बाद आजाद किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं। खास तौर पर उस समय जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिले, और होगा ऐसा ही। इसलिए कांग्रेस ने गुलामनबी आज़ाद पर हमले तेज किए हैं। जम्मू में चार सितंबर को होने वाली आजाद की पहली रैली के रंग-ढंग देखने के बाद कांग्रेस के हमले और तेज होंगे। कांग्रेस यह साबित करने की कोशिश करेगी कि आजाद भाजपा के साथ गठजोड़ कर आगे बढ़ रहे हैं।

वैसे इस की शुरुआत जयराम रमेश ने गुलामनबी आज़ाद के दिल्ली के सरकारी आवास को लेकर कर दी है। गुलामनबी आज़ाद को राज्यसभा से रिटायर हुए दो साल से ज्यादा हो गए, लेकिन मोदी सरकार ने अभी उनसे सरकारी आवास खाली नहीं करवाया है। जयराम रमेश ने इसी को लेकर उनकी नरेंद्र मोदी से मिलीभगत पर ट्विट किया है।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Ghulam Nabi Azad will form party of nationalist Muslims
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