क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Congress led Opposition: 2024 के लिए कांग्रेस किस तरह की खिचड़ी पका रही है?

भारत जोड़ो पद यात्रा के बाद अब राहुल गांधी कांग्रेस के सर्वमान्य नेता तो बन ही गए हैं, विपक्ष की धुरी के रूप में भी उभर सकते हैं।

Google Oneindia News

Congress

भारत जोड़ो यात्रा के बहाने राहुल गांधी खुद को पुनर्स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो कांग्रेस को भी पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले दो साल से हवा बन रही थी कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से भी पिछड़ गई है और क्षेत्रीय दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं। पंजाब में हार के बाद यह यह हवा कुछ ज्यादा ही तेजी से फ़ैली थी।

बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद ममता बनर्जी ने खुद को विपक्ष की धुरी बनाने की कोशिश की, तो बिहार में भाजपा से गठबंधन तोड़ कर नीतीश कुमार ने विपक्ष का नेता बनने की कोशिश की। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव टीआरएस को राष्ट्रीय पार्टी बना कर ऐसे दलों से गठबंधन बना कर राष्ट्रीय विकल्प बनाने की अलग से कोशिश कर रहे हैं, जो न अभी कांग्रेस के साथ हैं, न भाजपा के साथ।

Congress

राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो पदयात्रा के जरिए और कुछ किया हो या न किया हो, दो काम तो सफलतापूर्वक कर दिए हैं। पहला यह कि वह पप्पू वाली छवि से बाहर निकल आए हैं और खुद को पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ के तौर पर स्थापित किया है। दूसरा काम यह किया है कि उन्होंने इन महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय नेताओं को राजनीतिक तौर पर पीछे धकेल दिया है। कमलनाथ ने कह ही दिया है कि 2024 में राहुल गांधी विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा होंगे। इस पर नीतीश कुमार ने तो यह कह कर एक तरह से हथियार डाल दिए हैं कि राहुल गांधी को चेहरा बना कर चुनाव लड़ने पर उन्हें कोई एतराज नहीं। बाकी महत्वाकांक्षियों की अकड़ भी 2024 आते आते ढीली पड़ जाएगी।

अपनी पद यात्रा के दौरान शनिवार को दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने सभी क्षेत्रीय दलों को संदेश दिया है कि कांग्रेस फेडरलिज्म के आधार पर क्षेत्रीय दलों के साथ ऐसा गठबंधन करना चाहती है, जिसमें सब का सम्मान और बराबरी हो। कांग्रेस ने ऐसा पहली बार कहा है, जिसमें यह संदेश दिया गया है कि विपक्षी दलों का जो गठबंधन बनेगा, उसमें कोई बड़ा छोटा नहीं होगा। यानि जिस तरह पहले यूपीए चला या जिस तरह एनडीए चल रहा है, विपक्ष का नया गठबंधन वैसा नहीं होगा।

यह कुछ कुछ वैसी ही रणनीति है, जैसी सोनिया गांधी ने 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनाई थी। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा को एक समान बताने वाले अखिलेश यादव को करारा जवाब देने की बजाए यह कह कर उत्तर प्रदेश में उनका नेतृत्व स्वीकार करने का संदेश दिया कि यूपी में समाजवादी पार्टी भाजपा का विकल्प बन सकती है, लेकिन सारे देश में वह विकल्प नहीं बन सकती।

राहुल गांधी क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर संघीय मोर्चा बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन पुराने कांग्रेसियों की घर वापसी के प्रयास शुरू कर दिए हैं, जो भाजपा के साथ नहीं है। जिनमें ममता बनर्जी, जगनमोहन रेड्डी, केसीआर और कोनार्ड संगमा चार तो मुख्यमंत्री ही हैं। ये चारों अपनी क्षेत्रीय पार्टियां बना कर अपने बूते पर मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें से सिर्फ ममता बनर्जी ने ही सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले कांग्रेस छोड़ी थी, बाकी तीनों सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उन्हीं से मतभेदों के चलते कांग्रेस छोड़ कर गए।

अगर बदली हुई कांग्रेस इन नेताओं को उनके राज्यों में उन्हें ही क्षत्रप मानने को तैयार हो जाए, तो 2024 में भाजपा को चुनौती देने वाली सशक्त कांग्रेस पुनर्जीवित हो सकती है। गांधी परिवार को एहसास हो गया है कि उसे कांग्रेस के क्षत्रपों की अनदेखी करके दिल्ली से पार्टी और राज्यों की कांग्रेसी सरकारें चलाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है।

कांग्रेस आलाकमान तानाशाहीपूर्ण व्यवहार नहीं करता और ममता बनर्जी, जगनमोहन रेड्डी, केसीआर और कोनार्ड संगमा के हाथों में उनके राज्यों की बागडोर दी होती, तो न वे कांग्रेस छोड़कर जाते, न कांग्रेस देश में इतनी कमजोर होती। इस मंथन के बाद गांधी परिवार और कांग्रेस के बाकी नेताओं के रूख में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कोशिश यह हो रही है कि जो छोड़कर गए हैं, उन्हीं की शर्तों पर उन सबकी घर वापसी करवाई जाए।

जो बात असंभव सी लगती है, उसकी बड़ी शुरुआत 29 दिसंबर को हो गई है, जब कांग्रेस छोड़ने के 23 साल बाद कांग्रेस स्थापना दिवस पर शरद पवार पुणे में कांग्रेस के दफ्तर पहुंचे। हालांकि यह भी बड़ी घटना है, लेकिन इससे बड़ी घटना यह है कि उन्होंने वहां अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया, जिन्होंने 2014 से भारत को कांग्रेस मुक्त करने का बीड़ा उठाया हुआ है। शरद पवार ने कहा कि कांग्रेस इस देश की रग रग में है, वह कभी खत्म नहीं होगी।

शरद पवार ने 1999 में विदेशी मूल के मुद्दे पर तब कांग्रेस छोड़ दी थी, जब वाजपेयी सरकार गिराने के बाद सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं। शरद पवार के साथ पी.ए. संगमा और तारिक अनवर ने भी विदेशी मूल के मुद्दे पर ही कांग्रेस छोड़ी थी, तारिक अनवर कांग्रेस में लौट चुके हैं। शरद पवार अब उन्हीं सोनिया गांधी की रहनुमाई वाले यूपीए में शामिल हैं और यूपीए सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।

शरद पवार के अलावा गुलामनबी आज़ाद बड़े नेता हैं, जिन्होंने हाल ही में राहुल गांधी से मतभेदों के चलते पार्टी छोड़ी थी। अभी यह तो नहीं कहा जा सकता कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने किस से बात की है, और किस से नहीं की है, लेकिन सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है।

गुलामनबी आज़ाद ने इन खबरों का खंडन किया है कि वह कांग्रेस में वापस लौट रहे हैं, उन्होंने किसी बातचीत से भी इनकार किया है। उनकी रणनीति दूसरी है, वह जम्मू कश्मीर में चुनाव बाद भाजपा से गठबंधन कर वहां राष्ट्रवादी सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस कभी मुफ्ती परिवार, तो कभी अब्दुल्ला परिवार से गठबंधन कर उन्हीं की सरकार बनवाने की रणनीति पर चलती रही है। एक बार जरुर तीन साल के लिए गुलामनबी आज़ाद मुख्यमंत्री बने थे।

राहुल गांधी ने कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए तीन बड़े कदम उठाए हैं। उनका पहला कदम यह था कि उन्होंने खुद कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इनकार कर कांग्रेस संगठन को गांधी परिवार से बाहर लाने में प्रमुख भूमिका निभाई। नए अध्यक्ष का चुनाव बाकायदा गुप्त मतदान के जरिए करवाया गया, जिसने एक बार फिर साबित किया कि कांग्रेस दूसरे दलों से अलग है और उसमें अंदरूनी लोकतंत्र की बेहद गुंजाईश है। इसका श्रेय अगर किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है तो वह राहुल गांधी हैं।

यह प्रयोग अन्य राजनीतिक दलों के लिए चुनौती है, जहां बंद कमरों में सर्वोच्च नेतृत्व ही अध्यक्ष चुन लेता है। दूसरा कदम उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा का उठाया, जिसने अखबारी सुर्ख़ियों से गायब हुई कांग्रेस को एक बार फिर घर घर में पहुंचा दिया। प्रेस कांफ्रेंसों, बयानों और ट्विटर से बाहर निकल कर कांग्रेस जमीन पर दिखाई दे रही है।

राहुल गांधी का तीसरा कदम अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक पर जाना है। इस एक कदम के जरिए उन्होंने भाजपा और अन्य दलों के ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश की है। ब्राह्मण भारतीय राजनीति की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। 1952 के पहले चुनावों के बाद भारत के 22 राज्यों में से 13 में ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने थे। पहली लोकसभा में हर चौथा सांसद ब्राह्मण था। 1989 में मंडल कमंडल की राजनीति ने ब्राह्मणों को हाशिए पर ला दिया है। इस समय देश में सिर्फ ममता बनर्जी और हेमंत बिस्व सरमा ही ब्राह्मण मुख्यमंत्री हैं।

Rajasthan में 10 मंत्रियों के टिकट काट सकती है कांग्रेस, जानिए किन मंत्रियों के टिकट कटेंगेRajasthan में 10 मंत्रियों के टिकट काट सकती है कांग्रेस, जानिए किन मंत्रियों के टिकट कटेंगे

सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में लगातार दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद, जब राहुल गांधी खुद अमेठी में हार गए, तो ऐसा लगता था कि राहुल गांधी राजनीति में पिट चुके हैं। लेकिन अपनी 3500 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए उन्होंने खुद को पुनर्स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया। उनकी इस यात्रा से पहली बार उनके पूर्णकालिक राजनेता होने की छवि बनी है। वरना उन्हें पार्ट टाइम पोलिटिशियन ही माना जाता था, जो अपने विदेश दौरों के बीच जब जब भारत में होते थे, राजनीति में सक्रियता दिखाते थे। भारत जोड़ो पद यात्रा के बाद अब वह कांग्रेस के सर्वमान्य नेता तो बन ही गए हैं, विपक्ष की धुरी के रूप में भी उभर सकते हैं। अगर वह विपक्ष की धुरी बनते हैं, जैसा की लग रहा है, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और विपक्ष पिछले दो चुनावों से बेहतर करेगी।

Recommended Video

Rahul Gandhi की सुरक्षा को लेकर Congress ने Amit Shah को फिर लिखा पत्र | वनइंडिया हिंदी | *Politics

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

English summary
Congress led Opposition rahul gandhi sonia equation in 2024 election
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X