‘जंगलराज’ वाली राजनीति में होगी नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ की अग्निपरीक्षा
जुलाई के अंतिम सप्ताह में बिहार के जिला, प्रखंड, पंचायत स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न मोर्चों से संबंध रखने वाले कार्यकर्ता प्रवास कर रहे थे। वे पंचायत, प्रखंड, नगर के कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे। पार्टी की योजनाओं और कार्यक्रमों को लेकर उनका अनुभव सुन रहे थे और पार्टी के काम काज के दौरान उनके सामने आने वाली कठिनाइयों का आंकलन कर रहे थे, तो पार्टी के कार्यकर्ता इसे सामान्य बैठक का हिस्सा ही मान रहे थे।
बिहार में इस अभियान को 2024 और 2025 में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर चल रही गतिविधि का नाम दिया गया। विभिन्न मोर्चों से आए भाजपा के पदाधिकारियों ने पूरे बिहार के जिला स्तर से लेकर पंचायत में बैठे अंतिम कार्यकर्ता तक की आवाज को सुनने का प्रयास किया और उनके पार्टी से जुड़े अनुभव इकट्ठे किए।
उसके बाद पटना में बीजेपी के सात मोर्चो की दो दिवसीय बैठक 30 और 31 जुलाई को हुई। बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और देश के गृह मंत्री अमित शाह शमिल हुए। बिहार में विभिन्न जिलों के कार्यकर्ताओं से मिलकर बातचीत के आधार पर इन सात मोर्चों के पदाधिकारियों ने जो निष्कर्ष निकाला था, उसे केन्द्रीय नेतृत्व के साथ साझा किया।
पटना
में
हुई
यह
बैठक
इतनी
महत्वपूर्ण
थी
कि
बिहार
भाजपा
के
सभी
बड़े-छोटे
पदाधिकारी
बैठक
में
मौजूद
थे।
इस
बैठक
के
एक
सप्ताह
के
बाद
ही
नीतीश
कुमार
भाजपा
से
अलग
हो
जाते
हैं।
राजद
के
साथ
सरकार
बना
लेते
हैं।
इस
पृष्ठभूमि
में
समझते
हैं
कि
बिहार
में
जदयू
और
भाजपा
के
रिश्ते
कैसे
थे?
कहने
के
लिए
बिहार
में
डबल
इंजन
की
सरकार
चल
रही
थी
लेकिन
बिहार
के
भाजपा
कार्यकर्ता
और
पदाधिकारी
जानते
हैं
कि
यह
सरकार
डबल
इंजन
होते
हुए
भी
चलती
सिंगल
इंजन
से
ही
थी।
बिहार
में
सरकार
होने
के
बावजूद
भाजपा
नेताओं
की
शासन
प्रशासन
में
सुनवाई
नहीं
थी।
नेता
से
लेकर
सामान्य
कार्यकर्ता
तक
बिहार
सरकार
में
हाशिये
पर
ही
थे।
पिछले साल बिहार सरकार में भाजपा कोटे से श्रम, सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्री और जाले (दरभंगा) से विधायक जीवेश मिश्रा की गाड़ी विधानसभा जाते हुए बिहार पुलिस के एक कांस्टेबल ने यह कह कर रोक दी कि पहले यहां डीएम और एसपी की गाड़ी जाएगी। डीएम और एसपी के लिए सरकार में किसी मंत्री की गाड़ी रोकने की घटना क्या कोई साधारण बात थी। जीवेश मिश्रा ने इस घटना की जानकारी विधानसभा के अध्यक्ष को दी। मंत्रीजी डीएम और एसपी के निलंबन पर अड़ गये। उनका कहना था कि यह जब तक नहीं हो जाता, वे सदन में नहीं जाएंगे। बाद मे यह बात आई गई हो गई।
बिहार में प्रशासन पर नीतीश की सख्त पकड़ किसी से छुपी हुई बात नहीं है। ऐसे में यदि बिहार सरकार में जदयू की राजनीति करने वाले लोग जदयू के नाम पर थाना, प्रखंड, अंचल, एसडीएम कार्यालय से लेकर जिलाधिकारी कार्यालयों के बाहर चक्कर काट रहे हैं, दलाली कर रहे हैं और अपने लोगों का काम करा ले जा रहे हैं, तो क्या यह सारी बातें बिहार के मुख्यमंत्री के संज्ञान में नहीं होगी?
नीतीश कुमार खूब जानते हैं कि उनकी पार्टी कैडर आधारित पार्टी नहीं है। अपने साथ लोगों को जोड़े रखने के लिए उन्हें कुछ प्रलोभन देना होगा। उसके बिना कार्यकर्ता अधिक समय तक उनके साथ नहीं रुकेगा। वे सिर्फ कुर्मी मतों के सहारे बिहार पर राज नहीं कर सकते हैं। नीतीश कुमार के आलोचक भी इस बात को मानते हैं कि वे सत्ता को साधना खूब अच्छे से जानते हैं। किसी से अपने रिश्ते इतने खराब नहीं करते कि कल को उससे मिलने पर दो बातें ना कर सकें।
प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक समय क्या कुछ नहीं कहा, नीतीश कुमार ने। फिर हाल में उनकी मोदी के सम्मान में झुकने वाली तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई। जब तक लोग उस तस्वीर को डीकोड करते, नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल के खेमे में चले गए और पीछे इतनी गुंजाइश छोड़ गए कि जब वे चाहें वापस लौट आएं।
बहरहाल, नीतीश के सहारे जब राजद की सरकार एक बार फिर बिहार में वापस आ रही है तब राजद की उन सरकारों को याद करना बहुत जरूरी होगा, जिनको आज भी 'जंगलराज' नाम से याद किया जाता है। राजद के शासन के अंदर बिहार में रोजगार नहीं था और अपहरण सबसे बड़ा कारोबार था।
किसी भी व्यावसायी की कभी भी हत्या हो सकती थी। उस दौर में बिहार के अंदर ना शिक्षा थी, ना रोजगार, ना सड़क, ना बिजली, ना राजद की सरकार से यह सब मांगने की किसी में हिम्मत थी।
पिछले विधानसभा चुनाव में लंबे समय तक सत्ता से दूर रहने के बाद राजद ने अपने चुनाव प्रचार से पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे लालू प्रसाद की तस्वीर हटा दी थी। क्योंकि इस बात को तजस्वी और तेज प्रताप दोनों अच्छे से जानते थे कि लालूजी का चेहरा पार्टी के पोस्टर पर रहेगा तो लोगों को वह जंगल राज याद दिलाता रहेगा।
ऐसे में नीतीश कुमार के लिए आने वाले समय में राजद और जदयू के कार्यकर्ताओं के बीच टकराव को रोक पाना एक बड़ी चुनौती बनने वाला है, क्योंकि राजद के कार्यकर्ता बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं जैसे तो बिल्कुल नहीं हैं जो सरकार में होने के बाद भी सरकार में न होने जैसा व्यवहार करें।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि अब तक जदयू के लोगों ने बिहार में जो 'सुशासन' अकेले चलाया है, अचानक उसमें हिस्सेदारों के आ जाने से क्या पुराने मठाधीश आसानी से अपनी जगह छोड़ेंगे? अगर ऐसा नहीं होता है तो आनेवाले दिनों में जदयू और राजद के नेता और कार्यकर्ता सत्ता की बंदरबांट करने के लिए जगह जगह लड़ते हुए ही दिखाई देंगे।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)