क्या पश्चिम बंगाल में इस बार बदलेगा राजनीतिक मौसम?
कोलकाता। “क्या कभी मौसम एक रहता है ? मौसम का बदलना प्रकृति का नियम है। राजनीति में भी मौसम एक जैसा नहीं होता। तय मियाद के बाद इसमें भी बदलाव होता है। पश्चिम बंगाल में भी इस बार मौसम बदलेगा। इंतजार कीजिए।” ये शब्द हैं पश्चिम बंगाल के एक वोटर के। वे उत्तर 24 परगना जिले के पेट्रापोल में रहते हैं। विधानसभा चुनाव के मुत्तिलक यह उनकी निजी राय है लेकिन इसमें भावी मौसम का एक पूर्वानुमान भी है। चार चरणों के चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति को एक दिशा मिलती दिख रही है।
मतदाता का मन
पश्चिम बंगाल का उत्तर 24 परगना जिला। इस जिले के पेट्रापोल कस्बे से बांग्लादेश की सीमा लगती है। बोर्डर के इस पार भारत का पेट्रापोल और उस पार बांग्लादेश का बेनापोल। पेट्रापोल कोलकाता से 95 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित है। उत्तर 24 परगना जिले में कुल 33 विधानसभा क्षेत्र हैं। 16 सीटों पर 17 अप्रैल को और 17 सीटों पर 22 अप्रैल को चुनाव है। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने इस इलाके में एकतरफा जीत हासिल की थी। तृणमूल को 33 में से 27 सीटों पर जीत मिली थी। तीन सीटें सीपीएम को और कांग्रेस को दो सीटें मिलीं थीं। लेकिन 2021 में हालात बिल्कुल बदले हुए हैं। अब भाजपा की चुनौती से तृणमूल और अन्य दलों में बेचैनी बढ़ गयी है। यह वह इलाका है जहां मुतुआ वोटर निर्णायक माने जाते हैं। पिछले चुनाव में तृणमूल ने इस जिले में इसलिए अच्छा प्रदर्शन किया था क्यों कि तब उसे मतुआ समुदाय का भरपूर समर्थन मिला था। लेकिन इसबार मतुआ भाजपा की तरफ झुके हुए हैं।
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क्यों बदल गया मन ?
मतुआ एक धार्मिक पंथ है जिसकी स्थापना पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) के हरिचंद ठाकुर ने 1860 के आसपास की थी। इस पंथ में दलित समुदाय के लोग हैं। इसकी शुरुआत ब्राह्मणवाद के खिलाफ हुई थी। 1947 में देश के विभाजन और 1971 में बांग्लादेश निर्माण के बाद लाखों मतुआ पेट्रापोल बॉर्डर क्रॉस कर भारत आये और पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में बस गये। धर्मगुरू के परिजन भी भारत आ गये। इनमें कुछ ही लोगों को भारत की नागरिकता मिल पायी। मतुआ लोगों की एक बड़ी आबादी को आज भी भारत की नागरिकता का इंतजार है। भाजपा ने वायदा किया है कि अगर उसकी सरकार बनी तो नागरिकता संशोधन कानून के तहत इन मतुआ शरणर्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। जाहिर है यह एक बहुत बड़ा वायदा। इसकी वजह से मतुआ वोटर तृणमूल से विमुख हो कर भाजपा की तरफ मुड़ गये हैं। मतुआ समुदाय के धर्मगुरू के वशंज शांतनु ठाकुर बनगांव से भाजपा के सांसद हैं। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेश की यात्रा के दौरान हरिचंद ठाकुर की पवित्र जन्मभूमि का दर्शन किया था। हरिचंद ठाकुर को मतुआ लोग भगवान की तरह पूजते हैं। नरेन्द्र मोदी की इस पहल ने मतुआ लोगों को भाजपा के और करीब कर दिया है।
तृणमूल की सीटें कम होंगी ?
पेट्रापोल बॉर्डर के आसपास कुछ दुकानें हैं। चाय की एक दुकान पर एक बुजुर्ग से बांग्ला मिश्रित हिंदी में कहते हैं, इस बार पद्मोफूल। यानी इस बार कमल का फूल। पास में ही कुछ और दुकानें हैं। पूछने पर वे कुछ साफ-साफ नहीं कहना चाहते। इन सभी दुकानदारों के दादा, परदादा बांग्लादेश से यहां आये थे। अब इनका पेट्रापोल में अपना घर है। ये भारत के नागरिक हैं। उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार की योजनाओं का लाभ भी मिलता है। एक दो-लोग जोड़ा फूल (तृणमूल) की भी बात करते हैं। एक पढ़े लिखे सज्जन कहते हैं, जिसकी भी जीत होगी, बहुत कम वोटों से जीत होगी। लोगों का जो मिजाज है उसके देख कर लगता है इस बार उत्तर 24 परगना जिले में दीदी की सीटें बहुत कम रह जाएंगी। वे साफ साफ कहते हैं, दीदी ने मतुआ लोगों से किया वायदा पूरा नहीं किया। हम ऐसे लोग हैं जिनका कोई वतन नहीं।
उलझन सुलझे ना
बनगांव, उत्तर 24 परगना जिले का एक शहर है। यहा रेलवे जंक्शन भी है। बनगांव, पेट्रापोल से चार किलोमीटर पहले है। बॉर्डर पर जाने का यह सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। बनगांव एक लोकसभा क्षेत्र भी है जहां के सांसद भाजपाई हैं। यहां एक कामकाजी महिला कहती हैं, दीदी ने 10 साल तक बंगाल को चलाया। अब दूसरे को भी मौका मिलना चाहिए। नयी शक्ति (भाजपा) को आजमाने में हर्ज क्या है ? लोग अपने स्थानीय हितों के आधार पर सरकार के बारे में राय बनाते हैं। ऐसा नहीं है कि बंगाल की सभी महिलाएं दीदी का समर्थन कर रही हैं। लेकिन उनके साथ मौजूद एक युवा लड़की कहती है, दीदी ने हम पढ़ने वाली लड़कियों को बहुत सी सुविधाएं दीं। वे एक जुझारू महिला नेता हैं। मेरी राय में तो दीदी फिर आ रही हैं। पश्चिम बंगाल में अब तक हुए चुनाव में अधितर लोग यही मानते हैं कि इस बार मुकाबला बहुत कठिन है। नेता लोग भले जीत-हार का दावा कर लें। लेकिन हकीकत में उन्हें भी नहीं मालूम कि किसकी गोटी लाल होगी।
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