आजादी स्पेशल: दून की इस जेल में नेहरू को 4 बार रखा गया कैद, डिस्कवरी ऑफ इंडिया को लिखने की मिली प्रेरणा
देहरादून, 12 अगस्त। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश की आजादी के लिए हमारे महापुरूषों ने किस तरह संघर्ष किया और कहां-कहां इनसे जुड़ी यादें जुड़ी है। इन विषयों को लेकर हर कोई अपनी जानकारी साझा कर विरासत को तलाश रहे हैं। आज हम आपको देहरादून की एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत और विरासत से रूबरू करा रहे हैं। देहरादून की पुरानी जेल से भी आजादी का गहरा नाता रहा है। यहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 4 बार कैद रखे गए थे।

जिस सेल में रखा गया था, उसे नेहरू वॉर्ड कहा जाता है
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू देहरादून की पुरानी जेल में चार बार कैद रखे गए थे। जिस सेल में उन्हें रखा गया था, उसे नेहरू वॉर्ड कहा जाता है। इसे नेहरू हेरिटेज सेंटर नाम से भी जाना जाता है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान पहली बार साल 1932 में पंडित नेहरु को इस जेल में भेजा गया था। जिसके बाद 1934, 1935 और 1941 में भी उन्हें यहां कैद किया गया था।

पेड़ के नीचे बैठकर किताब के अधिकांश हिस्से लिखे
पंडित नेहरू को उनकी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखने की प्रेरणा भी यहीं से मिली थी। पूर्व पीएम ने इस जेल में स्थित पेड़ के नीचे बैठकर ही इस किताब के अधिकांश हिस्से लिखे थे। अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी पंडित नेहरू ने इस पेड़ का जिक्र किया है। वॉर्ड में पंडित जवाहरलाल नेहरू का शयनकक्ष, पाठशाला,भंडार घर, शौचालय व स्नानघर आज भी ,है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत एनडी तिवारी ने नेहरू वॉर्ड को हेरिटेज सेंटर बनाने की कवायद शुरू की थी। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने नेहरू हेरिटेज सेंटर का लोकार्पण किया था।

नेहरू को उनकी पुत्री इन्दिरा गांधी इसी वार्ड में मिलने आती थी
नेहरू को उनकी पुत्री इन्दिरा गांधी इसी वार्ड में मिलने आती थी। देहरादून की पुरानी जेल के एक वार्ड में स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पण्डित नेहरू को 4 बार कैद कर रखा गया था। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान नेहरू को सबसे पहले 1932 में देहरादून जेल के इस वार्ड में रखा गया था। उसके बाद 1933, 1934 और फिर 1941 में उन्हें यहां रखा गया था।

नेहरू का उत्तराखंड से काफी जुड़ाव था
नेहरू का उत्तराखंड से काफी जुड़ाव था। जेल के अलावा भी उनका यहां निरन्तर आना.जाना रहा है। उन्हें पहाड़ों की रानी मसूरी भी काफी पसन्द थी। वह अपने पिता मोतीलाल नेहरू और माता स्वरूप रानी के साथ सबसे पहले 16 वर्ष की उम्र में 1906 में मसूरी आए थे। उसके बाद वह अपने माता पिता के अलावा बहन विजय लक्ष्मी पंडित, बेटी इंदिरा गांधी और नातियों के साथ आते जाते रहे। 27 मई 1964 को मृत्यु से एक दिन पहले नेहरू देहरादून से वापस दिल्ली लौटे थे। दरअसल वह कांग्रेस के भुवनेश्वर अधिवेशन में हल्का दौरा पड़ने के बाद स्वास्थ्य लाभ के लिए 23 मई 1964 को देहरादून पहुंच गए थे। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने मसूरी और सहस्रधारा की सैर भी की। तत्कालीन विधायक गुलाबसिंह के आमंत्रण पर नेहरू चकराता भी गए थे जहां उन्होंने प्रकृतिपुत्रों की जनजातीय संस्कृति का करीब से आनन्द उठाया।

एतिहासिक इमारतों और विरासतों के संवर्धन पर जोर
भारत ज्ञान विज्ञान समिति की ओर से आजादी की 75वीं वर्षगांठ के उत्सव को वैज्ञानिक चेतना संपन्न आत्मनिर्भर भारत संकल्प अभियान के रूप में मनाया जा रहा है। इसके तहत देश की एतिहासिक इमारतों और विरासतों को महत्व को समझने के साथ उनके संवर्धन पर जोर दिया जा रहा है। देहरादून की पुरानी जेल के ऐतिहासिक स्थल नेहरू कक्ष में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। समिति के अध्यक्ष विजय भट्ट ने बताया कि पुरानी जेल परिसर में नेहरू वार्ड एतिहासिक स्थल है। इस जेल में जवाहर लाल नेहरू के अलावा एमएल राय, गोविंद बल्लभ पंत भी रहे। आज नेहरू वार्ड खंडहर स्थिति में है। झाड़.झंक्कड़ उग आए हैं। धरोहर को सुरक्षित नहीं है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी के समय इस जगह को ठीक कराया गया, लेकिन इसके बाद सरकारों ने इसकी सुध नहीं ली। उन्होंने बताया कि 14 नवंबर को बाल दिवस पर जेल परिसर में बच्चों के साथ कार्यक्रम किया जाएगा। नेहरू आजादी के आंदोलन के दौरान चार बार देहरादून जेल में रहे। देहरादून उनकी प्रिय जगह थी। वह जेल से बेटी इंदिरा गांधी को पत्र लिखा करते थे। वह अपने एक पत्र में लिखते हैं कि जेल से बर्फ से ढका हिमालय दिखता है। बाद में अंग्रेजों ने बड़ी दीवार देकर उस हिस्से को ढक दिया।