यूपी में विकास की बात के बीच जातिगत समीकरण हैं दलों के लिए अहम
उत्तर प्रदेश में चुनाव में तमाम दल विकास की बातें तो कर रहे हैं, लेकिन जमीनी तौर पर सभी दल जाति विशेष वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश कर रहे
लखनऊ। उत्तर प्रदेश चुनाव में भले ही तमाम दल प्रदेश के विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहे हों लेकिन हकीकत में ये सभी दल जातीय समीकरण के जरिए सत्ता में वापस आने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस रेस में ना सिर्फ भाजपा, कांग्रेस बल्कि सपा, बसपा सहित तकरीबन सभी दल हैं। हल दल इस बात से वाकिफ है कि देश के सबसे बड़े प्रदेश में जीत उसके लिए कितनी अहम है और प्रदेश में धर्म और जाति क्या भूमिका निभाते हैं। आइए डालते हैं उन तमाम दलों पर नजर जो अलग-अलग जातियों के जरिए सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की प्रदेश में पुरजोर कोशश कर रहे हैं।
भाजपा
भारतीय जन पार्टी का सवर्ण वोटों का प्रदेश में सबसे बड़ा दल माना जाता है, पार्टी को व्यापारियों और बनियों का भी दल कहा जाता है। प्रदेश में भाजपा का 1989 में राम मंदिर के मुद्दे से उदय हुआ था और इसी के बाद पार्टी अगणे वोटों के दल के रूप में खुद को स्थापित करने में लग गई। समय के साथ भाजपा प्रदेश में गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को अपनी ओर करने की भी कोशिश शुरु कर दी है।
समाजवादी पार्टी
प्रदेश में मुस्लिम और यादव वोटों का प्रतिनिधित्व समाजवादी पार्टी को प्राप्त है, इसी समीकरण के दम पर अखिलेश यादव प्रदेश के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे। ओबीसी वोट बैंक में भी अखिलेश यादव और सपा की बड़ी पैठ है और सीएम अखिलेश ने खुद को ओबीसी वर्ग के बड़े नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की है। अपने काम और अच्छी छवि के चलते अखिलेस सवर्ण वोट को भी अपनी ओर करने में कुछ हद तक सफल हुए हैं।
बसपा
दलित वोटों का सबसे बड़ा अगुवा दल बसपा को माना जाता है। वर्ष 1990 में बहुजन समाज पार्टी ने खुद को दलितों के दल के रूप में स्थापित किया था, जिसके दम पर पार्टी तेजी से प्रदेश में उभरी। 2007 में मायावती ने ब्राम्हण व मुस्लिम वोटों की सोशल इंजीनियरिंग के दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनान में सफलता हासिल की।
कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में जाना जाता था और उसके बाद 1989 तक ब्राह्मण, मुस्लिम और दलितों का समर्थन प्राप्त था, लेकिन सपा और बसपा के उदय के बाद पार्टी प्रदेश में धीरे-धीरे कमजोर होने लगी। एक तरफ जहां बसपा ने कांग्रेस से दलितों का वोट छीना तो भाजपा ने सवर्ण वोट बैंक कांग्रेस से अलग कर दिया, वहीं मुस्लिम वोट बैंक पर सपा पूरी तरह से पैठ जमाने में सफल हुई। इन दलों के उदय के बाद से ही कांग्रेस आजतक प्रदेश उभरने के लिए जूझ रही है।
कैसे सधेगा उत्तर प्रदेश
सभी दलों अपने कथित वोट बैंक से इतर दूसरी जातियों में सेंधमारी की पूरी कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ जहां भाजपा हिंदु वोटों को अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है, लेकिन प्रदेश मे भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। 2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे के दम पर भाजपा प्रदेश में 71 सीटें जीतने में सफल हुई थी। सपा और बसपा भी अपने मूल वोट बैंक के अलावा दूसरी जातियों के नेताओं को टिकट देकर अन्य जातियों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।