योगी आदित्यनाथ ने क्यों नहीं लड़ा अयोध्या से चुनाव ?
लखनऊ, 15 जनवरी। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या से चुनाव क्यों नहीं लड़ा ? उनके गोरखपुर से चुनाव लड़ने की वजह क्या है ? माना जा रहा है कि हालात बदलने की वजह से भाजपा को चुनावी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ा। जिस तेजी से भाजपा के ओबीसी नेता पार्टी छोड़ रहे थे उससे उसकी चिंता बढ़ गयी थी। इसलिए उसने अपने एजेंडा पर दोबारा मंथन किया।
2017 में गैरयादव ओबीसी वोटर ही भाजपा की जीत का आधार थे। इसलिए तय हुआ कि 2022 में हिंदुत्व से अधिक ओबीसी समुदाय पर फोकस किया जाय। भाजपा की पहली सूची में 68 फीसदी टिकट ओबीसी, एससी और महिला नेताओं को दिया गया है। इसके जरिये भाजपा ने साफ कर दिया है कि 2022 के चुनाव में उसका एजेंडा क्या रहने वाला है।
तो योगी इस वजह से आये गोरखपुर
कुशवाहा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़ने की वजह से गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में पार्टी का शक्ति संतुलन प्रभावित हो रहा था। स्वामी कुशीनगर जिले की पडरौना सीट से विधायक चुने गये थे। वे 13 साल से कुशीनग की राजनीति का केन्द्र हैं। गोरखपुर से पडरौना की दूरी महज 70 किलोमीटर है। स्वामी प्रसाद मौर्य के विद्रोह की आंच गोरखपुर तक पहुंच रही थी। इस आंच को बेअसर करने के लिए योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर में रहना जरूरी था। अगर योगी, अयोध्या से लड़ते और गोरखपुर में भाजपा उम्मीदवार की हार हो जाती तो इससे उनकी छवि को बहुत नुकसान पहुंचता। ऐसे में भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को अयोध्या की बजाय गोरखपुर शहर की सीट से उम्मीदवार बनाना बेहतर समझा। अगर योगी, अयोध्या से चुनाव लड़ते तो हिंदुत्व की राजनीति को बल मिलता। लेकिन भाजपा के लिए उससे भी जरूरी था ओबीसी राजनीति पर पकड़ बनाये रखना। सो योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर भेज दिया गया।
ओबीसी राजनीति को जमाने की कोशिश
भाजपा की पहली सूची में 44 टिकट ओबीसी नेताओं को दिये गये हैं। इसकी वजह भी है। चुनाव से ऐन पहले, ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी ने योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे कर भाजपा छोड़ दी थी। कुल मिलाकर छह ओबीसी नेताओं ने भाजपा छोड़ी थी। इससे ऐसा माहौल बनने लगा कि भाजपा में पिछड़े वर्ग के नेताओं का गुजारा नहीं है। भारतीय प्रजातंत्र ने चाहे जितनी उन्नति कर ली हो लेकिन राजनीति की धुरी अभी भी जाति ही है। अयोध्या में राममंदिर बनने की शुरुआत के बाद भाजपा के पास अब हिंदुत्व की वह प्रेरणादायी शक्ति नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। कमंडल पर मंडल भारी पड़ने लगा। इसलिए योगी आदित्यनाथ को अपना गढ़ बचाने के लिए गोरखपुर आना पड़ा। गोरखपुर पर खतरा मंडरा रहा था। गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा एक बार झटका खा चुकी थी। अयोध्या वैसे भी भाजपा की सीट है। वहां से वेद प्रकाश गुप्ता भाजपा के विधायक हैं। भाजपा यहां फिर जीत के लिए आशवस्त है। इसलिए योगी के अयोध्या छोड़ने से भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जहां तक हिंदुत्व की बात है तो योगी गोरखपुर से भी इसके लिए अलख जगा सकते हैं। सबसे बड़ी बात ये कि योगी आदित्यनाथ ने चुनाव मैदान में उतर कर अपने प्रतिद्वंद्वी अखिलेश यादव और मायावती पर विधानसभा चुनाव लड़ने का दबाव बढ़ा दिया है।
कमी की भरपायी की कोशिश
भाजपा, सेफसाइड के लिए यादव वोटरों को भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। मुलायम सिंह यादव के समधी और सिरसागंज के सपा विधायक अब भाजपा में हैं। हरिओम यादव के भाई रामप्रकाश यादव की बेटी मृदुला की शादी मुलायम सिंह के भतीजे रणवीर सिंह यादव से हुई है। रणवीर सिंह यादव का देहांत हो चुका है। इसके अलवा पिछड़ी जाति से आने वाले नेता और कांग्रेस विधायक नरेश सैनी भी भाजपा में आ चुके हैं। डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा ने दूसरे दल के ओबीसी नेताओं को अपने पाले में जोड़ा है। इसके अलावा सिड्यूल्ड कास्ट राजनीति को साधने के लिए ही उत्तराखंड की राज्यापल बेबी रानी मौर्य को यूपी बुलाया गया था। उन्हें आगरा ग्रामीण से उम्मीदवार बनाया गया है। वे जाटव समाज से आने वाली मजबूत नेता हैं। पहली सूची में 19 उम्मीदवार अनुसूचित जाति के हैं।
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