UP election 2022: चंद्रशेखर रावण ने क्यों चुनी गोरखपुर सदर सीट?
लखनऊ, 20 जनवरी: आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण गोरखपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरेंगे। पिछले दिनों अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं होने पर अपनी भड़ास निकाल चुके चंद्रशेखर ने आखिर गोरखपुर सदर सीट ही क्यों चुनी है ? दरअसल, इस सीट से चुनाव लड़कर वह अपनी राजनीति के लिए लंबी सियासी बिसात बिछाना चाहते हैं। उन्हें पूरा यकीन है कि इस सीट पर मुख्यमंत्री योगी के खिलाफ उम्मीदवारी आसान नहीं होगी, लेकिन उन्हें इसके जरिए अपनी राजनीति की धार को तेज करने का मौका जरूर मिल सकता है।
सीएम योगी के खिलाफ लड़ेंगे तो मीडिया में फोकस मिलेगा
गोरखपुर सदर सीट से भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टिकट दिया है। यह सीट 1989 से ही बीजेपी के पास है और 2002 में यहां से हिंदू महासभा का प्रत्याशी जीता था तो भी उसे गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ का समर्थन मिला हुआ था। बाद में उस विधायक ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली थी। यानी जो सीट 33 साल बीजेपी के पास है, सीएम योगी आदित्यनाथ उस संसदीय सीट से लगातार पांच पर चुनाव जीत चुके हैं, वहां उन्हें टक्कर देने के लिए चंद्रशेखर आजाद रावण के जाने का मतलब है मीडिया में उन्हें फोकस मिलने की उम्मीद बनी रहेगी। मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र होने की वजह से इस सीट पर यूं भी मीडिया की नजर होनी स्वाभाविक है।
पीएम मोदी के खिलाफ भी चुनाव लड़ने का कर चुके हैं ऐलान
2019 के लोकसभा चुनाव में भी चंद्रशेखर ने वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। लेकिन, इस घोषणा के एक महीने बाद ही उन्होंने अपने फैसले से यू-टर्न ले लिया था। ऐसा करने के पीछे उस समय उन्होंने सफाई दी थी कि 'मैं नहीं चाहता कि किसी भी रूप में बीजेपी या पीएम मोदी को फायदा मिले।' वाराणसी से चुनाव लड़ने की चर्चा की वजह से कुछ दिनों तक उन्हें मीडिया में सुर्खियां जरूर मिली थी। लेकिन, जब अपने फैसले से पीछे हटे तो कहने लगे कि वो चाहते हैं कि दलित वोट न बंटे और उन्होंने तब बसपा-सपा गठबंधन के उम्मीदवार को समर्थन करने की बात की थी।
बसपा संस्थापक कांशीराम वाली कोशिश
1989 के लोकसभा चुनाव की बात है। बोफोर्स की वजह से कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा था। बसपा उस समय कुछ उसी तरह से सियासी जमीन की तलाश में थी, जैसे कि अभी भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर तलाशने में जुटे हुए हैं। हालांकि, कांशीराम का सियासी संघर्ष तब चंद्रशेखर के मुकाबले ज्यादा लंबा हो चुका था। कांशीराम ने तब सीधे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ही अमेठी लोकसभा सीट पर चुनौती देने का फैसला किया। जहां, कांग्रेस के टिकट पर राजीव को 67.43% मिले, वहीं बीएसपी संस्थापक महज 6.31% वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। भले ही कांशीराम हार गए, लेकिन आगे के चुनावों में बीएसपी अपनी जमीन जरूर मजबूत करती चली गई।
जीतकर नहीं, हारकर ज्यादा माइलेज लेने की कोशिश!
चंद्रशेखर जानते हैं कि गोरखपुर नगर विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी को चुनौती देना उनके लिए सिर्फ प्रतीकात्मक चुनाव लड़ने जैसा है। लेकिन ऐसा करके वह खुद को प्रदेश में अगली पीढ़ी के एकमात्र दलित नेता के रूप में पेश करना चाहते हैं। इस समय उनके साथ दलितों में युवाओं के एक वर्ग का साथ है और वह इस चुनाव में हार कर भी खुद इस वर्ग के लिए संघर्ष करने वाले जुझारू नेता के तौर पर पेश कर सकते हैं।
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बसपा और मायावती के जनाधार पर नजर
आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर की नजर बसपा सुप्रीमो मायावती के वोट बैंक पर है। उन्हें लगता है कि बीएसपी अध्यक्ष अब ज्यादा दिनों तक सक्रिय राजनीति में नहीं रह पाएंगी। उनके बाद उन्हें बीएसपी में कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं दिख रहा, जो उनकी जगह ले सके। चंद्रशेखर उसी करीब 21% दलित वोट बैंक पर कब्जा करना चाहते हैं। खासकर मायावती के साथ जो लगभग 11% जाटव वोट बताया जाता है, भीम आर्मी चीफ खुद को उसका उत्तराधिकारी मानते हैं। वह बीएसपी के बने-बनाए संगठन की बुनियाद पर अपनी राजनीति की इमारत खड़ी करना चाहते हैं।