यूपी विधानसभा चुनाव 2017: कांग्रेस को गले लगाकर भी बीजेपी का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी सपा, देखिए आंकड़े
2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े देखें तो बीजेपी ने प्रदेश की 80 में से 71 सीटों पर कब्जा जमाया था। उस समय प्रदेश में पार्टी का वोट शेयर 42.3 फीसदी था।
नई दिल्ली। यूपी चुनाव को लेकर सियासी गणित साधने के दौर जारी है। बीजेपी को रोकने के लिए और यूपी की सत्ता पर कब्जे के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन को लेकर माथापच्ची में जुटी हुई हैं। दोनों ही दलों की ओर से साफ किया जा चुका है कि गठबंधन होगा, हालांकि अभी मामला सीटों के बंटवारे को लेकर रुका हुआ है। भले ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी प्रदेश में बीजेपी को आने से रोकने के लिए गठबंधन की रणनीति पर काम कर रही हैं लेकिन अगर यूपी विधानसभा चुनाव में 2014 के लोकसभा चुनाव जैसा समीकरण बनकर सामने आया तो बीजेपी से मुकाबले की सोच रहे सभी विपक्षी दलों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
2014 में बीजेपी ने 71 लोकसभा सीटों पर किया था कब्जा
2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े देखें तो बीजेपी ने प्रदेश की 80 में से 71 सीटों पर कब्जा जमाया था। उस समय प्रदेश में पार्टी का वोट शेयर 42.3 फीसदी था। अगर विधानसभा चुनाव में इस वोट शेयर की पड़ताल करें तो बीजेपी प्रदेश में करीब 328 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं समाजवादी पार्टी का वोट शेयर लोकसभा चुनाव में महज 22.2 फीसदी था, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 7.5 फीसदी था। इन वोट शेयर के जरिए यूपी में सपा ने लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीती थी वहीं कांग्रेस को दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
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यूपी में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
2014 का आम चुनाव हुए करीब ढाई साल से ज्यादा बीत चुका है। ऐसे में सियासी तौर पर यूपी में कई बदलाव आ चुके हैं। विधानसभा चुनाव में मुद्दे और हालात 2014 के चुनाव से काफी अलग नजर आ रहे हैं। इस बीच सपा-कांग्रेस में गठबंधन की रणनीति भी चुनावों के मद्देनजर काफी अहम हो जाता है। अगर ये गठबंधन हो जाता है कि यूपी में त्रिकोणीय मुकाबला दिखेगा। जिसमें एक तरफ कांग्रेस-सपा का गठबंधन होगा, दूसरी ओर बीजेपी है, वहीं तीसरी ताकत मायावती की बहुजन समाज पार्टी की है। तीन ओर से मुकाबले के बीच राष्ट्रीय लोकदल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। संभावना उसके भी महागठबंधन में शामिल होने की है, हालांकि मामला सीट शेयरिंग पर टिका हुआ है। सपा की नजरें 2012 का इतिहास दोहराने पर है। इसी के मद्देनजर पार्टी अपनी चाल चल रही है।
यूपी में जीत के लिए जातीय गणित साधने में जुटे सभी दल
सपा-कांग्रेस के गठबंधन की खबरों से अलग बसपा सुप्रीमो मायावती की नजरें भी चुनावी गणित को साधने पर टिकी हुई है, यही वजह है कि उन्होंने यूपी चुनाव में टिकटों का बंटवारा जातीय हिसाब बिठाने की जुगत से किया है। बसपा की नजर मुस्लिम वोटबैंक को अपनी ओर खींचने पर है। इसके लिए पार्टी ने प्रदेश में 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसकी वजह भी है क्योंकि यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं अगर उन्होंने बसपा का समर्थन किया तो ये मायावती के लिए बेहद खास होगा। वहीं दूसरी जातियों को भी साधने के लिए मायावती ने चुनावी रणनीति बनाई है।
क्या यूपी चुनाव में कमाल करेगी मोदी-शाह की जोड़ी?
बीजेपी की बात करें तो उन्हें एक बार फिर से मोदी-शाह की जोड़ी से करामात की उम्मीद है। पार्टी की ओर से सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही पार्टी के स्टार प्रचारक रहेंगे। बीजेपी की ओर से अभी केवल एक ही उम्मीदवारों की लिस्ट आई है। जिसमें साफ पता चलता है कि पार्टी एक बार फिर से ध्रुवीकरण की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके साथ ही पार्टी ने ओबीसी उम्मीदवारों पर खास भरोसा जताया है। फिलहाल यूपी चुनाव में किस पार्टी का असर होगा, कौन सा दल आगे रहेगा ये वोटरों को तय करना है।
सपा-कांग्रेस में गठबंधन का दांव कितना होगा कामयाब?
चुनावी जानकारों की मानें सपा-कांग्रेस का गठबंधन तभी कामयाब होगा जब समाजवादी पार्टी के वोटर फिर से एकजुट रहें। सपा के वोट बैंक में खासतौर से यादव, मुस्लिम और कुछ पिछड़ी जातियां शामिल हैं। कांग्रेस भी मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने में कामयाब हों, साथ ही दलित और सवर्ण वोटरों, खासकर ब्राह्मण पर भी उनका असर दिखे, तभी ये गठबंधन बड़ी शक्ति बनकर उभर सकता है।