राज्यसभा चुनाव के बाद ही पड़ गई थी अखिलेश-राजभर के बीच दरार ?, क्या बड़े मौके की थी तलाश
लखनऊ, 09 जुलाई : महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल पुथल के बाद अब यूपी में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं। एक तरफ अखिलेश मिशन 2024 के आम चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं वहीं दूसरी ओर एक एक कर उनके सहयोगी उनसे छिटकते जा रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही उनके एक सहयोगी केशव देव मौर्य ने उनका साथ छोड़ दिया था। उन्होंने अखिलेश को पिछड़ा विरोधी करार दिया था। अब विधानसभा चुनाव के सहयोगी उनके चाचा शिवपाल और एसबीएसपी के चीफ अखिलेश राजभर ने भी अपनी सियासी चाल चल दी है जिससे गठबंधन का भविष्य अधर में लटका हुआ है। दरअसल जयंत को राज्यसभा भेजे जाने से नाराज राजभर ने तभी गठबंधन से किनारा करने का मन बना लिया था बस वो एक अवसर की तलाश में थे।
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ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश को दिया अल्टीमेटम
सहयोगी दलों सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच संबंध टूटने के कगार पर पहुंच गए हैं। एसबीएसपी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर शुक्रवार को एनडीए के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा आयोजित रात्रिभोज में शामिल हुए। एसबीएसपी ने कहा कि उन्होंने अखिलेश को 12 जुलाई तक का अल्टीमेटम दिया है। यदि वो संपर्क नहीं करेंगे तो आगे एसबीएसपी गठबंधन पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।
राजभर के लिए खुले हैं बीजेपी के दरवाजे ?
विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन करने वाली दोनों पार्टियों के बीच संबंध चुनाव खत्म होने के बाद से ही किनारे पर हैं। दोनों पक्षों के शीर्ष नेताओं के बीच बैठकें मुद्दों को हल करने में विफल रही हैं। राजभर अतीत में भाजपा के सहयोगी रहे हैं, इसलिए उनके लिए एनडीए के दरवाजे बंद नहीं हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों के अलावा, इस साल के अंत में होने वाले शहरी स्थानीय निकाय चुनावों से पहले एसबीएसपी के इस तरह के किसी भी कदम से गैर-यादव ओबीसी तक पहुंचने के सपा के प्रयासों को नुकसान होगा।
अखिलेश ने जयंत को तवज्जो दिया तभी पड़ गई थी गठबंधन में दरार
सपा और एसबीएसपी के बीच तनाव ने सबसे पहले राज्यसभा चुनाव के दौरान और भी बदतर मोड़ लिया, जब सपा ने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को अपने संयुक्त उम्मीदवार के रूप में समर्थन दिया। तब से ही एसबीएसपी चीफ ओम प्रकाश राजभर नाराज चल रहे थे।
एसबीएसपी के महासचिव अरूण राजभर कहते हैं कि, "रालोद ने विधानसभा चुनाव में 33 सीटों पर चुनाव लड़ा और आठ पर जीत हासिल की। दूसरी ओर, एसबीएसपी ने जिन 19 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से छह पर जीत मिली। SBSP की सफलता दर बेहतर थी। लेकिन, सपा ने एसबीएसपी नेता के बजाय चौधरी को गठबंधन का उम्मीदवार बनाना पसंद किया।''
SBSP का दावा- हमने गठबंधन धर्म का पालन किया
अरुण राजभर कहते हैं कि राजभर और उनकी पार्टी के नेताओं और विधायकों ने आजमगढ़ में सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव के लिए प्रचार किया था। हमने गठबंधन धर्म का पालन किया और धर्मेंद्र यादव के लिए प्रचार किया। उसके बावजूद, अखिलेश यादव ने हमसे संपर्क करने की जहमत नहीं उठाई।
एसबीएसपी के एक नेता के अनुसार, पार्टी को जानबूझकर दूर रखा गया था। 6 जुलाई को, हमें बैठक के बारे में एसपी कार्यालय से औपचारिक सूचना मिली। लेकिन कुछ घंटों बाद हमें सूचित किया गया कि बैठक रद्द कर दी गई है। बाद में अगले दिन बैठक हुई लेकिन एसबीएसपी विधायकों को आमंत्रित नहीं किया गया था।
बीजेपी से कोई कमिटमेंट नहीं ?
मुर्मू के लिए आदित्यनाथ के रात्रिभोज में राजभर की उपस्थिति पर, अरुण ने कहा कि एसबीएसपी प्रमुख के रूप में सीएम कार्यालय ने एक संदेश भेजा कि वह उनसे मिलना चाहती हैं। लेकिन पार्टी अध्यक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव में एसबीएसपी विधायकों के वोटों के बारे में कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है।
दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी रही थी। राजभर को पिछली आदित्यनाथ सरकार में मंत्री बनाया गया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले रास्ते अलग होने से पहले, सीएम के साथ उनके संबंध खराब थे और अक्सर उन पर हमला करते थे। इसके बाद उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा के साथ गठबंधन किया था।
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