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यूपी चुनाव और गठबंधन की राजनीति में 'वजूद' खो रहे है, मांझी और पासवान!

ये दोनों नेता दलित अस्तित्व की राजनीति को छोड़कर अपनी राजनीतिक पहचान बनाने में व्यस्त हैं। कई बार इन दोनों नेताओं ने दलित मुद्दों को लेकर बयानबाजी की पर मुद्दे को अंजाम तक ले जाने में असफल दिखे।

By मुकुंद सिंह
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पटना। दुनिया को परमाणु के बारे में बताने वाले अल्बर्ट आइंसटीन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत सापेक्षवाद भी है। इसके अनुसार विश्व में निरपेक्षता नामक कोई भी परिकल्पना संभव नहीं है। यह सिद्धांत केवल विज्ञान में लागू नहीं होता है बल्कि राजनीति में भी इसका उपयोग किया जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि राजनीति और विज्ञान दोनों एक सिद्धांत पर कैसे चल सकती है। तो कंफ्यूज मत होइए ,हम आपको आज बताने जा रहे हैं इसका ताजा तरीन उदाहरण लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बारे में। सबसे पहले आपको बताते चलें कि ये दोनों नेता दलित समुदाय के नेता है।

यूपी चुनाव और गठबंधन की राजनीति में 'वजूद' खो रहे है, मांझी और पासवान!

लेकिन ये दोनों नेता दलित अस्तित्व की राजनीति को छोड़कर अपनी राजनीतिक पहचान बनाने में व्यस्त हैं। कई बार इन दोनों नेताओं ने दलित मुद्दों को लेकर बयानबाजी की पर मुद्दे को अंजाम तक ले जाने में असफल दिखे। अब अगर बात करें केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बारे में तो कभी बिहार के युवाओं की शान रहे रामविलास पासवान ,युवा विधायक ,रिकॉर्ड तोड़ वोट से जीत कर सुनहरे अक्षरो मे गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड में नाम दर्ज करवाया था। वही पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के वक्त रामविलास पासवान ने भाजपा से गठबंधन कर गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के नक्शे कदम पर चलते हुए एक ओर जहां अपने गठबंधन धर्म का पालन किया वही दूसरी तरफ लोजपा पूना पैक्ट को रद्द करने जैसी मांग करते हुए सूबे में दलित आंदोलन की धार को तेज करने की कोशिश की।
जिसके वजह से लोजपा ने राज्य के सभी प्रखंडों में अपने नए पदाधिकारियों का पुनर्गठन भी किया।लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव डा. सत्यानंद शर्मा की अगर माने तो इस वर्ष पार्टी के सामने 5 लाख सदस्य जोड़ने का लक्ष्य था। लेकिन अब तक मात्र 60 हजार नये सदस्य ही बनाये गये है। डॉक्टर शर्मा का कहना है कि एनडीए में शामिल रहने के कारण कई सारे मुद्दे गठबंधन की राजनीति की भेंट चढ़ गये है। फिर भी उनकी पार्टी इस से हार नहीं मानी है। पार्टी ने सूबे में दलित-पिछड़ों के अधिकार को लेकर एक व्यापक आंदोलन को अंजाम दिया है।अब अगर बात करें लोक जनशक्ति पार्टी की तो लोजपा का परिवारवाद बीते वर्ष भी खूब जोर शोर से जारी रहा। सांगठनिक ढांचे की तरह शीर्ष पर भी पासवान ने अपने पुत्र चिराग पासवान को संसदीय बोर्ड का चेयरमैन तो अपने भाई पशुपति कुमार पारस को बिहार प्रदेश का अध्यक्ष बनाया है। तो पारस के मुताबिक सभी जिलों में सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है जिसके कारण बड़ी संख्या में युवा लोजपा के साथ जो रहे हैं।अब अगर बात करें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बारे में तो उनकी भी कहानी वहीं से शुरु होती है जहां से लोजपा की । जीतन राम माझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्यूलर ने भी लोक जनशक्ति पार्टी के नक्शे कदम पर चलते हुए भाजपा से गठबंधन कर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा। पर जीतन राम मांझी की पार्टी ने जो राजनीतिक संघर्ष किए हैं उसके हिसाब से यह बात किसी से छुपी नहीं है कि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा केबल जीतन राम माझी के दम पर ही अपनी राजनीति राज्य मे चमकाती आ रही है। लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान की अगर मानें तो उनकी पार्टी इस वर्ष कुछ भी खोया नहीं है।
खो भी कैसे सकता है क्योंकि पार्टी के पास खोने के लिए कुछ है भी तो नहीं। आपको बताते चलें कि पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव के परिणाम ने जीतन राम माझी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। अपनी पार्टी के तरफ से जीतन राम मांझी एकमात्र विजेता घोषित हुए। संख्या बल कम रहने के कारण एनडीए में उनकी साख भी कम रही। कई बार यह देखा जा चुका है कि जीतन राम मांझी ने दलितों के सवाल को उठाने की कोशिश की है लेकिन एनडीए के सहयोग के बिना उनकी आवाज नक्कारखाने में दबकर रह गयी।वही पार्टी के प्रवक्ता की माने तो उनकी पार्टी है इस वर्ष बड़ी कामयाबी हासिल की है।जहा पार्टी ने झारखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और दिल्ली आदि राज्यों में अपना विस्तार किया।वही बड़ी संख्या में सूबे बिहार में भी लोग पार्टी से जुड़े है। फिलहाल अगर यह देखा जाए तो रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी दोनों एक ही नाव की सवारी कर रहे हैं। तो दोनों नेता अपनी अपनी राजनीतिक हैसियत से एनडीए में यह साबित करने के उद्देश्य से यूपी में चुनाव लड़ने को तैयारी कर रहे है कि भाजपा यूपी विधानसभा चुनाव में उन्हें अपना साझेदार बनायेगी। यदि नहीं बनाई तब क्या होगा। इस सवाल पर दोनों दलों के नेता फिलहाल खामोश है। ये भी पढ़ें: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास सिर्फ 45 हजार, उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी 28 लाख के कर्जदार

English summary
Role of jeetan ram manjhi and ram vilas paswan in up assembly election 2017
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