कैराना उपचुनाव में पीएम मोदी-अमित शाह को परेशान कर सकता है अखिलेश का ये समीकरण
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कैराना उपचुनाव कितना अहम है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद अभी तक किसी भी पार्टी ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं।
नई दिल्ली। यूपी की कैराना सीट पर होने वाले उपचुनाव में नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही सियासी पारा चढ़ने लगा है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कैराना उपचुनाव कितना अहम है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद अभी तक किसी भी पार्टी ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं। इस बीच सियासी गलियारों से एक ऐसी खबर आ रही है जो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी को परेशान कर सकती है।
कैराना में सपा-आरएलडी का संयुक्त उम्मीदवार
सूत्रों के हवाले से खबर है कि कैराना सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) संयुक्त प्रत्याशी को मैदान में उतार सकते हैं। यूपी की कैराना लोकसभा और बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा को लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी की आज लखनऊ में अहम बैठक है। इस बैठक में कैराना और नूरपुर में भाजपा के खिलाफ एक मजबूत संयुक्त उम्मीदवार को लेकर रणनीति बनाए जाने की चर्चा है। गौरतलब है कि इससे पहले जयंत चौधरी कैराना उपचुनाव को लेकर मायावती से भी बात कर चुके हैं।
बसपा-सपा-आरएलडी की चुनौती
कैराना सीट पर अगर सपा और आरएलडी का संयुक्त उम्मीदवार उतरता तो ये ना केवल कैराना उपचुनाव बल्कि 2019 के लिए भी एक बड़ा सियासी समीकरण होगा। 2019 के लिए बसपा और सपा में पहले ही गठबंधन हो चुका है। मायावती ऐलान कर चुकी हैं कि वो लोकसभा के आम चुनाव से पहले किसी भी उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेंगी। ऐसे में अगर कैराना सीट पर विपक्ष का संयुक्त प्रत्याशी उतरा तो बसपा-सपा-आरएलडी के सामने भाजपा उम्मीदवार के लिए जीत हासिल करना काफी मुश्किल होगा।
कांग्रेस ने भी रखी अपनी शर्त
आपको यह भी बता दें कि कैराना में कांग्रेस के स्थानीय नेता पहले ही हाईकमान से कह चुके हैं कि वो समाजवादी पार्टी के साथ जाने के बजाए जयंत चौधरी को सपोर्ट करना चाहते हैं। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष इमरान मसूद का कहना है कि कैराना की 5 विधानसभाओं में से तीन विधानसभा शामली, गंगोह और नकुर में पार्टी मजबूत स्थिति में है। सूत्रों का कहना है कि इस हालत में कांग्रेस के सामने मजबूरी होगी कि वह या तो बसपा, सपा और आरएलडी के गठबंधन का हिस्सा बने या फिर भाजपा को हराने के लिए कोई कमजोर उम्मीदवार मैदान में उतारे।
क्या है कैराना का गणित
आरएलडी से जब पूछा गया कि अगर भाजपा के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाने के लिए इस सीट पर बलिदान देने की जरूरत पड़ी तो क्या वह इसके भी तैयार है तो पार्टी के प्रवक्ता अनिल दूबे ने बताया कि अगले एक-दो दिन आरएलडी इस बारे में फैसला ले लेगी। आपको बता दें कि कैराना लोकसभा में करीब 17 लाख वोट हैं। इनमें 5 लाख मुस्लिम, 4 लाख ओबीसी (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति व अन्य) और लगभग 1.5 लाख जाटव वोट हैं। कैराना में आगामी 28 मई को वोटिंग है और 31 मई को वोटों की गिनती होगी।
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