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6 दिसंबर: बाबरी विध्वंस और श्रीराम ने कैसे बदल दिए यूपी चुनाव के सियासी समीकरण, भाजपा ने ढहा दिए सारे किले

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लखनऊ, 4 दिसंबर। उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आ रहा है, वैसे-वैसे भारतीय जनता पार्टी मथुरा की बात करने लगी है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जब ट्वीट किया कि अयोध्या और काशी के बाद अब मथुरा की तैयारी है तो इसके बाद बवाल उठ खड़ा हुआ। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि आने वाले चुनाव में रथ यात्रा से भी भाजपा को कोई फायदा नहीं होगा। वहीं बसपा सुप्रीमो ने कहा कि भाजपा का आखिरी हथकंडा हिंदू-मुस्लिम राजनीति ही है। मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मस्थान से सटी है। 6 दिसंबर को अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने मथुरा में शाही मस्जिद ईदगाह परिसर में लड्डू गोपाल का जलाभिषेक करने का ऐलान कर दिया जिसको लेकर प्रशासन ने इलाके में धारा 144 लगा दी थी। हलांकि पुलिस की कार्रवाई के बाद 6 दिसंबर का यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है। हिंदू संगठन 6 दिसंबर को ही मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद में लड्डू गोपाल का जलाभिषेक इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि यही वह तारीख है जिस दिन साल 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को हिंदू संगठनों और भाजपा के हजारों कार्यकर्ताओं ने मिट्टी में मिला दिया था। 1992 की घटना के 27 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन पर राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाया। 2014 से केंद्र में और 2017 से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है जिसको चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला है। भाजपा सरकार अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण कर रही है। केशव प्रसाद मौर्य के 'मथुरा की तैयारी' वाले बयान पर अखिलेश ने जिस रथ यात्रा का जिक्र किया है वह सितंबर 1990 में राम मंदिर आंदोलन के लिए निकाली गई लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा है। 1991 में भी भाजपा को उत्तर प्रदेश में बहुमत मिला था और कल्याण सिंह की सरकार बनी थी। इसी सरकार के कार्यकाल में बाबरी विध्वंस की वो घटना हुई जिसने देश ही नहीं, यूपी की राजनीति पर बड़ा असर डाला।

यूपी चुनाव में बिना मुस्लिम वोट के भी पाया जा सकता है बहुमत

यूपी चुनाव में बिना मुस्लिम वोट के भी पाया जा सकता है बहुमत

शाह बानो केस और राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत, दोनों एक ही समय की घटनाएं हैं। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक केस में मुस्लिम महिला शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसके पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। मुस्लिमों के विरोध को देखते हुए 1986 में केंद्र में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम वोटबैंक खोने के डर से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ संसद के जरिए नया कानून बना दिया जिसमें मुस्लिम तलाकशुदा महिला को इस्लामिक कानून के मुताबिक ही भरण-पोषण मिलने का प्रावधान किया गया। 1986 ही वह साल था जब विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन शुरू किया था। इसका सूत्रधार भी कांग्रेस को ही माना जाता है। शाह बानो प्रकरण के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों से घिरी राजीव गांधी सरकार ने हिंदुओं को खुश करने के लिए 1986 में ही बाबरी मस्जिद परिसर के ताले को खुलवा दिया। उस समय यूपी में कांग्रेस मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे। हलांकि कोर्ट के फैसले से ताला खोला गया था लेकिन इसके पीछे सरकार की सहमति थी। 1989 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूपी में कांग्रेस मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भाजपा और हिंदू संगठनों को विवादित मस्जिद परिसर के अंदर शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दे दी। राम मंदिर निर्माण को लेकर देशभर में चले आंदोलन का असर 1989 के लोकसभा चुनाव पर पड़ा और भारतीय जनता पार्टी संसद में 2 से सीधे 85 सीटों पर पहुंच गई। इसके बाद सितंबर 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकल पड़े। उस समय यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। नवंबर 1990 में अयोध्या में जमा हुए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश तत्कालीन सीएम मुलायम ने दिया था। 1991 विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में हिंदुओं का वोट हासिल कर भारतीय जनता पार्टी बहुमत पा गई थी। 1991 के यूपी चुनाव ने यह बता दिया कि बिना मुस्लिम वोट के भी प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाई जा सकती है।

बाबरी विध्वंस के बाद यूपी में बना ओबीसी-दलित-मुस्लिम समीकरण

बाबरी विध्वंस के बाद यूपी में बना ओबीसी-दलित-मुस्लिम समीकरण

1990 में ही मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू हुई थी जिसके जरिए देशभर में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला था। कांग्रेस को मंडल और कमंडल दोनों ने बहुत नुकसान पहुंचाया। यूपी में तो 1991 के बाद कांग्रेस फिर से कभी उठ नहीं पाई। 1991 में भाजपा की कल्याण सिंह सरकार बनी थी। उनके कार्यकाल में राम मंदिर निर्माण का आंदोलन चलता रहा। कल्याण सिंह सरकार ने विवादित परिसर के अंदर जमीन अधिग्रहण किया था जिस पर हिंदू संगठनों ने वहां चबूतरा भी बना दिया था। 6 दिसंबर 1990 को आरएसएस, वीएचपी समेत अन्य हिंदू संगठनों और भाजपा ने अयोध्या में रैली का आयोजन किया था। कल्याण सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि बाबरी मस्जिद को कुछ नहीं होगा। हजारों लोग रैली में जमा थे। नेताओं के भाषणों के बीच ही रैली में लोग उग्र हुए और उन्होंने बाबरी मस्जिद के ढांचे को तोड़कर गिरा दिया। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों में 2000 से ज्यादा लोग मारे गए। कल्याण सिंह सरकार को केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने बर्खास्त कर दिया था। 1993 में फिर उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराया गया। भाजपा के बढ़ते असर को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी साथ मिलकर लड़ी। कारसेवकों पर गोली चलवाने की घटना के बाद मुलायम के पक्ष में मुस्लिम आ गए थे। कांशीराम के साथ दलित वोटबैंक था। मुलायम ने ओबीसी वोटबैंक को भी अपने पक्ष में मोबिलाइज किया। ओबीसी-दलित-मुस्लिम समीकरण ने सपा-बसपा गठबंधन दोनों को फायदा पहुंचाया। भाजपा को 177 और सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीट मिली। सपा और बसपा ने मिलकर मुलायम सरकार बनाई थी। 1995 में गेस्ट हाउस कांड के बाद यह सियासी समीकरण टूट गया। सपा और बसपा के राह अलग हो गए। ऐसे में बसपा को भाजपा का साथ मिला। (यूपी चुनाव में 1991-2012 तक कैसे हुआ भाजपा की सीटों का पतन, क्यों नहीं चल पाया राम मंदिर और हिंदुत्व कार्ड)

मंडल की राजनीति कमजोर होने पर फिर से मजबूत हुआ कमंडल

मंडल की राजनीति कमजोर होने पर फिर से मजबूत हुआ कमंडल

बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना के बाद राम मंदिर मामला कोर्ट में चलने की वजह से ठंडा पड़ गया था और भाजपा को चुनावी फायदा देने में इसका असर धीरे-धीरे कम होने लगा था। 1993 से लेकर 2007 के बीच यूपी के चुनावी इतिहास का दौर अस्थिरता वाला रहा। इस दौरान किसी को बहुमत नहीं मिला और मिली-जुली सरकार बनती रही, बिखरती रही। इसी अवधि में यूपी, विधायकों के दल-बदल और खरीद-बिक्री की वजह से भी बदनाम हुआ। पार्टियों में माफियाओं और बाहुबलियों की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ गई। भाजपा की सीटें भी कम होती चली गईं। 2007 में बसपा को पूर्ण बहुमत मिला और 2012 में सपा को जनता ने बहुमत का जनादेश दिया। 2013 में मुजफ्फरनगर में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए। 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत से भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। फिर से भाजपा ने हिंदुओं के ध्रुवीकरण की वही राजनीति शुरू की जिसने 1991 में उसको यूपी में पूर्ण बहुमत दिलाया था। तीन तलाक जैसे मुद्दों पर कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं को भी भाजपा ने अपने पक्ष में करने की कोशिश की। घोषणापत्र में संवैधानिक तरीके से राम मंदिर बनाने की बात भाजपा ने की थी। वहीं चुनावी भाषणों में कब्रिस्तान, श्मशान और कसाब जैसे मुद्दों को उठाकर भाजपा नेताओं ने हिंदुओं को अपने पक्ष में एकजुट किया। सपा और बसपा के शासनकाल में असंतुष्ट रही ओबीसी जातियों को भाजपा ने गोलबंद किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पिछड़ी जाति का चेहरा बनकर चुनाव प्रचार में उतरे। मोदी लहर पर सवार होकर 2017 में फिर से भाजपा ने 300 सीटों का आंकड़ा पार कर यह साबित कर दिया कि अगर मुस्लिम वोट न भी मिले तो भी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई जा सकती है।

संत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने आगे बढ़ाया हिंदुत्व का एजेंडा

संत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने आगे बढ़ाया हिंदुत्व का एजेंडा

2017 में प्रचंड बहुमत के बाद भाजपा ने भगवा वेशधारी संत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया। नवंबर 2019 में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे माफियाओं की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई की गई। अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया। योगी सरकार ने कई जगहों के नाम भी बदल दिए- जैसे इलाहाबाद को प्रयागराज, फैजाबाद को अयोध्या किया गया। अब अलीगढ़ को हरिगढ़, आजमगढ़ को आर्यमगढ़ समेत अन्य जगहों के मुस्लिम नामाकरण को हिंदू नामाकरण में बदलने की तैयारी चल रही है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने हाल में कहा कि व्यापारियों को लुंगी और जाली टोपीधारी गुंडे 2017 से पहले आतंकित करते थे। इससे पहले अयोध्या, काशी के बाद मथुरा की तैयारी वाला बयान भी केशव ने दे दिया था। यूपी में चुनाव में एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी मैदान में हैं। मुस्लिमों को अपने पक्ष में करने के लिए अखिलेश ने जिन्ना को स्वाधीनता सेनानी वाला बयान दिया था। ये सभी बातें इस ओर इशारा कर रही हैं कि 2022 के चुनावी दंगल में भी भाजपा हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के एजेंडे पर चलेगी। इसका फायदा अन्य पार्टियां भी उठाने की कोशिश करेगी।

श्रीराम बने उत्तर प्रदेश की राजनीति के भगवान, अब कृष्ण की बारी

श्रीराम बने उत्तर प्रदेश की राजनीति के भगवान, अब कृष्ण की बारी

80 के दशक की राजनीति में भगवान श्रीराम का मजबूती से प्रवेश हुआ था और 2021 तक आते-आते सभी पार्टियों के नेता की जुबान पर एक ही नाम है- जय श्रीराम। 2022 चुनाव की तैयारी कर रहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी मंदिरों में पूजा-पाठ करती नजर आ रही हैं। यूपी चुनाव में उतरे अरविंद केजरीवाल अयोध्या में आरती कर आए और रामनगरी तक जाने के लिए दिल्ली सरकार की तरफ से फ्री तीर्थयात्रा भी शुरू कर दिया है। निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने कहा कि श्रीराम उनकी ही जाति के थे। राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्व का अंतर भी समझा दिया। उन्होंने कहा कि मैं हिंदू हूं और हिदुत्व भाजपा-संघ की विचारधारा है जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए नफरत है। हिंदुत्व और धर्म के एजेंडे को लेकर मजबूत हो रही भाजपा की देखादेखी अन्य पार्टियों के नेता भी धार्मिक कर्मकांड करते नजर आ रहे हैं ताकि धर्म में आस्था रखने वाले उनके वोटर हाथ से न निकल जाएं, साथ ही ऐसे वोटर जो साथ आना चाहते हैं, वो दूर न जाएं। राम जन्मभूमि आंदोलन और बाबरी विध्वंस की घटना के बाद ही अयोध्या में मंदिर निर्माण संभव हो सका है। राम मंदिर मुद्दे के समाधान के बाद भाजपा नए मुद्दों की तलाश में है और 2022 के चुनाव में अब उसकी नजर कृष्ण जन्मभूमि मथुरा पर है।

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English summary
How Six December impacted on Uttar Pradesh assembly elections
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