कोयले की कमी से उपजे बिजली संकट का यूपी की राजनीति पर कितना पड़ेगा असर, क्या इससे बढ़ेगी बीजेपी की मुश्किलें
लखनऊ, 18 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में कोयले की कमी का संकट गहराता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कुछ ही महीने बाद यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यूपी चुनाव में इस बिजली संकट का असर पड़ेगा या इससे बीजेपी सरकार को ज्यादा नुकसान नहीं होगा। हालांकि बिजली उत्पाद से जुड़े संगठनों की माने तो यह संकट बड़ा है और सरकार इसको इग्नोर नहीं कर सकती। यदि आने वाले दिनों में यह और गहराता है तो विपक्ष इसे भुनाने की कोशिश करेगा जिससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
बिजली विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि देश भर में कोयले की कमी से राज्य में बिजली उत्पादन प्रभावित होने से उत्तर प्रदेश में बिजली संकट गहराता जा रहा है। नतीजतन, केंद्रीय पूल से सत्ता में यूपी की हिस्सेदारी भी कम हो गई है, इस मुद्दे से निपटने वाले लोगों ने कहा। कोयले की कमी के कारण राज्य को पहले ही लगभग 8,000 मेगावाट बिजली का नुकसान हो रहा है। नतीजतन, राज्य में मांग-आपूर्ति का अंतर बढ़कर लगभग 4,000 मेगावाट हो गया है, जबकि मांग 20,000 मेगावाट से अधिक बनी हुई है।
ग्रामीण
और
अर्धशहरी
क्षेत्र
में
नहीं
मिल
रही
12
घंटे
से
अधिक
बिजली
यूपी
पावर
कॉरपोरेशन
लिमिटेड
(यूपीपीसीएल)
ग्रामीण
और
अर्ध-शहरी
क्षेत्रों
में
छह
घंटे
की
अतिरिक्त
बिजली
कटौती
का
सहारा
लेकर
चीजों
को
प्रबंधित
करने
की
कोशिश
कर
रहा
है,
जिन्हें
इन
दिनों
केवल
12
घंटे
बिजली
मिल
रही
है।
यूपीपीसीएल
के
एक
वरिष्ठ
अधिकारी
ने
नाम
न
छापने
की
शर्त
पर
बताया
कि,
"सरकारी
रोस्टर
के
अनुसार,
ग्रामीण
और
अर्ध-शहरी
क्षेत्रों
में
18
घंटे
बिजली
की
आपूर्ति
होनी
चाहिए,
लेकिन
हम
राज्य
में
बिजली
की
उपलब्धता
कम
होने
के
कारण
12
घंटे
से
अधिक
समय
तक
बिजली
नहीं
दे
पा
रहे
हैं।"
अधिकारी के मुताबिक,
'' जिला मुख्यालय सहित शहरों में कोई अतिरिक्त लोड शेडिंग नहीं की जा रही है। कोयले की कमी के कारण यूपी में कुल बिजली लगभग 8,000 मेगावाट तक पैदा हो रही है। यूपी राज्य विद्युत उत्पादन निगम के हरिदुआगंज और परीछा थर्मल प्लांट पहले ही कोयले के भंडार से बाहर हो चुके हैं, जबकि ओबरा और अनपा संयंत्रों में कुछ ही दिनों के लिए पर्याप्त स्टॉक बचा है। इसी तरह राज्य के आठ निजी थर्मल प्लांटों में भी कोयले की किल्ल्त बनी हुई है।''
कठिन
परिस्थितियों
में
भी
रोस्टर
के
अनुसार
देने
का
प्रयास
ऊर्जा
मंत्री
श्रीकांत
शर्मा
ने
कहा
कि
कोयले
की
दुनिया
भर
में
कमी
और
कमी
के
कारण
संकट
पैदा
हुआ
था,
उन्होंने
कहा
कि
स्वाभाविक
रूप
से
यूपी
में
भी
बिजली
उत्पादन
प्रभावित
हुआ
है।
कठिन
परिस्थिति
के
बावजूद
लोगों
को
रोस्टर
के
अनुसार
बिजली
उपलब्ध
कराने
के
लिए
सभी
प्रयास
किए
जा
रहे
हैं।
राज्य
के
ऊर्जा
विभाग
के
अधिकारी
कोई
रास्ता
निकालने
के
लिए
कोयला
और
बिजली
मंत्रालयों
में
अपने
समकक्षों
के
साथ
नियमित
संपर्क
में
हैं।
यूपीपीएलसी
को
राज्य
में
बिजली
की
मांग
को
पूरा
करने
के
लिए
ऊर्जा
विनिमय
सहित
सभी
उपलब्ध
स्रोतों
से
बिजली
खरीदने
के
लिए
कहा
गया
है।
बिजली
का
मूल्य
निर्धारत
करने
की
मांग
हालांकि
यूपी
राज्य
विद्युत
उपभोक्ता
परिषद
के
अध्यक्ष
अवधेश
कुमार
वर्मा
ने
स्थिति
पर
चिंता
व्यक्त
करते
हुए
मांग
की
कि
केंद्र
बिजली
का
अधिकतम
प्रति
यूनिट
मूल्य
तय
करे
जो
राज्यों
को
ऊर्जा
एक्सचेंजों
को
बेचा
जाता
है।
ऊर्जा
एक्सचेंज
10
रुपये
प्रति
यूनिट
तक
की
उच्च
दर
पर
बिजली
बेचकर
संकट
का
लाभ
उठाने
की
कोशिश
कर
रहे
हैं।
सरकार
को
मूल्य
सीमा
लगानी
चाहिए।
यदि
ये
सरकार
ने
बिजली
के
मूल्य
निर्धारित
नहीं
किए
तो
आने
वाले
समय
में
इसका
असर
चुनाव
में
भी
देखने
को
मिलेगा।
सरकार
की
अदूरदर्शिता
का
परिणाम
है
कोयला
संकट
कांग्रेस
के
प्रदेश
प्रवक्ता
एवं
डिजिटल
मीडिया
के
संयोजक
अंशु
अवस्थी
ने
बिजली
संकट
को
लेकर
सरकार
की
तीखी
आलोचना
की।
अंशु
अवस्थी
ने
योगी
सरकार
पर
निशाना
साधते
हुए
कहा
कि,
''भारतीय जनता पार्टी कि सरकार की अदूरदर्शिता से प्रदेश पिछड़ता चला गया, आज उसी दूरदर्शिता का परिणाम है उत्तर प्रदेश में भी कोयले की भारी कमी से बिजली का संकट पैदा हो गया है। यदि भाजपा सरकार ने कर लिया होता तो प्रदेश के लोगों की मेहनत की कमाई के टैक्स के पैसे को महंगी बिजली खरीदने में न लगाना पड़ता। वर्तमान में जो बिजली के संकट में कोयले की कमी हुई है उसकी सीधे तौर पर जिम्मेदार की भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। जब प्रदेश के लोगों की पानी बिजली सड़क का इंतजाम करना था तब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ होर्डिग-बैनर लगाकर झूठे विकास का प्रोपोगेंडा फैलाते रहे और जनता का पैसा प्रचार में दुरुपयोग कर पानी की तरह बहाते रहे।''
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