गोरखपुर कांड: इस मजबूर पिता की आपबीती योगी सरकार के माथे पर कलंक है
अपनी आंखों के सामने बच्चों की मौत को देखा, महज मूकदर्शक के अलावा कोई विकल्प नहीं, पिता चाहते हैं कि इस मौत का सच सामने आए
गोरखपुर। ऑक्सीजन की कमी से जिस तरह से 33 बच्चों की गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत हो गई उसके बाद इस अस्पताल की एक के बाद एक परतें खुलती जा रही हैं। जिन लोगों ने बच्चों को खोया है उन्होंने यहां अपनी आपबीती बताई है। अस्पताल में अव्यवस्था का यह आलम है कि बच्चों के मां-बाप दवां, कॉटन, सीरिंज, ग्लूकोज, ब्लड तक के लिए यहां से वहां भटक रहे थे। इस अस्पताल के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बच्चों की मौत के बाद उनके पोस्पमार्टम के लिए भी परिजनों को तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था।
दो बच्चों को हमेशा के लिए खो दिया
जब
7
अगस्त
को
गोरखपुर
के
बग्गाड़ा
गांव
के
ब्रम्हदेव
को
पचा
चला
कि
एनआईसीयू
मे
ऑक्सीजन
की
कमी
है,
उन्होंने
बताया
कि
वहां
तीन
लेवल
थे,
नॉर्मल,
हाई
और
लो,
इंडीगेटर
यह
दिखा
रहा
था
कि
ऑक्सीजन
लो
पर
है।
अपने
जुड़वा
बच्चों
को
चार
दिन
पहले
यहां
तेज
बुखार
के
चलते
लेकर
आए
थे,
लेकिन
10
अगस्त
को
ब्रम्हदेव
की
10
साल
की
लड़की
और
एक
एक
बेटा
हमेशा
के
लिए
दुनिया
से
जा
चुके
थे।
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बाहर खड़े होकर मौत को देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं था
ब्रम्हदेव
बताते
हैं
कि
8
अगस्त
तक
उन्हें
इस
बात
का
अंदाजा
लग
चुका
था
कि
कुछ
गड़बड़
है,
नर्सिंग
स्टॉफ
एंबु
बैग
को
लेकर
चर्चा
करने
लगे
थे,
साथ
ही
हैंड
हेल्ड
वेंटिलेशन
के
जरिए
उन
मरीजों
के
पास
जाने
लगे
जो
सांस
नहीं
ले
पा
रहे
थे।
लेकिन
अगले
दिन
तक
चार
लोगों
की
मौत
हो
चुकी
थी,
मैंने
चार
बच्चों
की
मौत
देखी
थी,
लेकिन
कोई
भी
मां-बाप
सवाल
नहीं
पूछ
सके,
हम
एनआईसीयू
के
भीतर
नहीं
जा
सकते
थे
और
लाचार
बाहर
खड़े
होकर
देखने
के
अलावा
हमारे
पास
कोई
विकल्प
नहीं
था।
मुझे पता था कि कुछ गलत हुआ है
ब्रम्हदेव
बताते
हैं
कि
जब
मैंने
नर्सिंग
स्टॉफ
से
पूछा
कि
इंडिगेटर
लो
लेवल
दिखा
रहा
है
तो
किसी
ने
जवाब
नहीं
दिया,
कुछ
बच्चों
को
ग्लूकोज
पर
रखा
गया
था।
8
अगस्त
को
अस्पताल
ने
मुझसे
कहा
कि
30
एमएल
और
40
एमएल
ब्लड
ले
आइए।
जब
मैं
ब्लड
बैंक
गया
और
मैंने
अपना
ब्लड
डोनेट
किया,
बाद
में
मैंने
जब
पूछा
कि
क्या
हुआ,
तो
रात
को
8
बजे
मुझे
पता
चला
कि
मेरा
बेटा
नहीं
रहा।
उन
लोगों
ने
मुझे
मेरे
बेटे
का
शव
दे
दिया
और
मुझसे
इसे
ले
जाने
को
कहा,
किसी
डॉक्टर
ने
मुझे
यह
नहीं
बताया
कि
उसकी
क्यों
मौत
हुई,
मुझे
पता
था
कि
कुछ
गलत
हुआ
है।
प्राइवेट अस्पताल में देने को 7000 रुपए नहीं थे
इस
दिन
अस्पताल
में
9
बच्चों
की
मौत
हुई
थी,
जिसमे
अकेले
6
बच्चों
की
मौत
एनआईसीयू
में
हुई
थी।
लेकिन
अपना
बेटा
खोने
तक
ही
ब्रम्हदेव
की
पीड़ा
खत्म
होने
वाली
नहीं
थी,
एक
तरफ
जहां
उनके
हाथ
में
उनके
बेटे
का
शव
था
तो
दूसरी
तरफ
वह
अपनी
बेटी
को
एनआईसीयू
में
जिंदगी
से
जूझते
हुए
देख
रहे
थे।
वह
बताते
हैं
कि
यहां
स्टॉफ
एंबु
बैग
का
इस्तेमाल
कर
रहा
था
इस
वक्त
तक
सिलेंडर
खत्म
हो
गए
थे,
मैं
देख
रहा
था
कि
मेरी
बेटी
के
मुंह
से
खून
आ
रहा
है,
वहां
सिर्फ
एक
नर्स
और
एक
डॉक्टर
था
जो
पूरे
एनआईसीयू
को
देख
रहा
था।
10
अगस्त
को
सुबह
6.30
बजे
इन
लोगों
ने
मेरी
बेटी
को
मृत
घोषित
कर
दिया।
ब्रम्हदेव
अपने
बच्चों
को
बीआरडी
अस्पताल
इसलिए
लेकर
आए
थे
क्योंकि
उनके
पास
प्राइवेट
अस्पताल
में
इलाज
कराने
के
लिए
7000
रुपए
नहीं
थे।
वह
बताते
हैं
कि
अस्पताल
के
डॉक्टर
राजेश
गुप्ता
ने
बताया
था
कि
अगर
हम
अपने
बच्चों
को
3
से
7
अगस्त
तक
अपने
यहां
रखते
हैं
तो
वह
ठीक
हो
जाएंगे।
अस्पताल में मूलभूत चींजे भी नहीं थीं
ब्रम्हदेव अस्पताल पर अपना गुस्सा निकालते हुए कहते हैं कि अस्पताल में हमें मुफ्त में दवा नहीं मिली, उनके पास रूई, सीरिंज जैसी साधारण चीजें भी नहीं थी, उन्होंने मुझसे कैल्शियम, ग्लूकोज तक लाने को कहा। वह बताते हैं कि जब मेरी बेटी की मृत्यु हुई उससे आधे घंटे पहले इन लोगों ने मुझे बताया कि आपका चार साल का बेटा सांस नहीं ले पा रहा है। ब्रम्हदेव की पत्नी नंदिनी कहती हैं कि उन्होंने अपने बेटे दीपक को मरते हुए देखा है, यह डॉक्टरों की लापरवाही और ऑक्सीजन की कमी से हुआ है।
बेटे का पेट सूज गया और नर्स चीखने लगी
अपने
बच्चों
के
आखिरी
समय
के
बारे
में
बताते
हुए
ब्रम्हदेव
कहते
हैं
कि
ये
लोग
गुब्बारे
जैसी
कोई
चीज
का
इस्तेमाल
कर
रहे
थे
और
हवां
अंदर
डालने
की
कोशिश
कर
रहे
थे,
तभी
अचानक
मेरे
बेटे
का
पेट
सूज
गया
और
नर्स
अचानक
चिल्लाने
लगी
और
वह
तेजी
से
यहां
वहां
दौड़ने
लगी,
तभी
डॉक्टर
ने
मेरे
बेटे
के
सीने
को
दबाना
शुरू
किया
और
दो
घंटों
के
भीतर
मेरे
बेटा
मर
गया।
नंदिनी
बताती
हैं
कि
9
अगस्त
को
जब
वह
अपने
बेटे
दीपक
को
लेकर
पहुंची
तो
उसे
देखने
के
लिए
एक
भी
डॉक्टर
नहीं
था
क्योंकि
पूरा
स्टॉफ
मुख्यमंत्री
योगी
आदित्यनाथ
की
आवभगत
में
लगा
था
वह
कहती
हैं
कि
मैं
दोपहर
में
एक
बजे
आई
थी
और
शाम
को
6
बजे
तक
कोई
मेरे
बच्चे
को
देखने
नहीं
आया।
उन्होंने
कहा
कि
सिक्योरिटी
गार्ड
ने
मुझसे
कहा
कि
लोग
मुख्यमंत्री
कि
विजिट
में
व्यस्त
हैं।
नंदिनी
कहती
हैं
कि
मेरे
बच्चे
को
डॉक्टरों
ने
देखने
में
देरी
की
जिसकी
वजह
से
मेरे
बेटे
की
हालत
और
बिगड़
गई।
अपने बच्चों को दफनाया है, लेकिन उन्हें आसानी से निकाला जा सकता है
अपने
बच्चों
की
मौत
के
बाद
ब्रम्हदेव
ने
अस्पताल
से
बच्चों
की
मौत
की
वजह
बताने
को
कहा
और
इस
बाबत
दस्तावेज
मांगे,
लेकिन
मृत्यु
प्रमाण
पत्र
बेटे
का
दिया
गया
उसमे
लिखा
था
कि
उसकी
मौत
कॉर्डियो
रेस्पिरेटरी
फेल
होने
की
वजह
से
हुई
है।
इस
स्थिति
में
एकदम
से
हृदय
काम
करना
बंद
कर
देता
है,
जिसकी
वजह
से
श्वसन
प्रणाली
थम
जाती
है
और
मरीज
की
मौत
हो
जाती
है।
ब्रह्मदेव
ने
बताया
कि
उन्हें
अभी
तक
उनकी
बेटी
का
मृत्यु
प्रमाण
पत्र
नहीं
मिला
है,
जबकि
अस्पातल
ने
बच्चों
के
शव
को
बिना
पोस्टमार्टम
के
ही
हमें
दे
दिया
है।
वह
बताते
हैं
कि
मैंने
अपने
बच्चों
को
इस
तरह
से
दफनाया
है
कि
ताकि
उन्हें
आसानी
से
निकाला
जा
सके
और
उनका
पोस्टमार्टम
किया
जा
सके,
मैं
चाहता
हूं
कि
सच
सामने
आए।