BRD में मौत का तांडव: 9 बातें, जो बताती हैं कि योगी के अफसरों ने किस हद तक लापरवाही की
गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने के चलते 33 बच्चों की मौत के मामले में सरकार भले अपना बचाव करने के लिए तमाम तर्क दे रही हो लेकिन कुछ ऐसी बड़ी बातें सामने आईं है जो यह साबित करने के लिए काफी है कि अस्पताल प्रशासन ने इस मामले में लापरवाही बरतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
बंद कर दिया मोबाइल
जैसे ही मासूमों की मौत की खबर आना शुरू हुई उसके थोड़ी देर बाद ही BRD मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर राजीव मिश्रा ने अपना फोन ही ऑफ कर लिया। घटना की खबर होते ही एक ओर जहां मंडलायुक्त,जिलाधिकारी, एडी हेल्थ, सीएमओ समेत कई अफसर बीआरडी में मौजूद थे। पूरा प्रशासन अस्पताल में ही मौजूद रहा लेकिन प्रिंसिपल मिश्रा का फोन ऑफ करना बता रहा है कि किस तरह से लापरवाही बरती गई।
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झूठ से उठा पर्दा
एक ओर तो गोरखपुर के जिलाधिकारी राजीव रौतेला यह बता रहे थे कि 10 और 11 अगस्त को अस्पाल में सिर्फ 30 मौतें हुई हैं लेकिन BRD के आंकड़ों की माने तो वहां 48 मौतें हुई थीं। सारे आंकड़े कॉलेज में मौजूद हैं फिर भी प्रशासन मामले पर लीपा पोती करने में लगा हुआ है। इतना ही जितने भी बच्चों की मौतें हुई किसी भी बच्चे के शव का पोस्टमार्टम नहीं किया गया था।
कमीशनखोरी भी है वजह?
सवाल उठ रहे हैं कि तमाम चिट्ठियां लिखे जाने के बाद भी ऑक्सीजन लिक्विड सप्लाई करने वाली फर्म का भुगतान क्यों नहीं किया गया? सूत्रों की मानें तो कमीशनखोरी के चलते ही पेमेंट हीं किया गया। कमीशनखोरी के चलते ही ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के बकाए की फाइल लटकाई जाती रही।
गुरुवार से शुरू हुआ संकट
बताया जा रहा है कि BRD में गुरुवार से ही ऑक्सीजन का संकट शुरु हो गया था लेकिन जुगाड़ से काम चलाया गया। जब गैस खत्म हुआ तो 90 जंबो सिलिंडर लगाए गए ताकि सप्लाई चलती रहे लेकिन रात 1 बजे यह भी खत्म हो गया। 100 बेड वाले वार्ड में भर्ती इंसेफेलाइटिस के 73 मे से 54 मरीज वेंटिलेटर पर थे। रात में 1 बजे ऑक्सीजन खत्म होने के बाद 3.30 बजे 50 अन्य सिलिंडरों के जरिए हालात संभालने की कोशिश की गई लेकिन वो भी सुबह 7.30 बजे तक ही चल सका।
ICU का गेट कर लिया बंद
अपनी करतूत छिपाने के लिए BRD मेडिकल कॉलेज ने ऑक्सीजन खत्म होने के बाद बीमार बच्चों के परिजनों को वार्ड से बाहर कर ICU का गेट बंद कर दिया। बीमार बच्चों के परिजनों ने कहा हमने दवा और जांच बाहर से कराई लेकिन अस्पाल ऑक्सीजन तक का इंतजाम नहीं कर पाया।
अपनों को बचाने के लिए....
ऑक्सीजन खत्म होने के बाद अपनों को बचाने के लिए परिजनों के हाथ में जो भी था उन्होंने सब कुछ किया। कोई एंबुबैग पंप करता रहा तो कोई लगातार हाथ के पंखे से ही हवा देने की कोशिश कर रहा था। अस्पताल की ओर से जिन मरीजों की हालत गंभीर थी उन्हें एंबुबैग दिया गया था उसे पंप करने में भी परिजनों को काफी दिक्कत हुई।
नहीं मिल रहे थे शव
जैसे ही जिलाधिकारी राजीव रौतेला ने मामले की जांच के आदेश दिए तुरंत अस्पताल प्रशासन ने मृतकों के शव परिजनों को देने से मना कर दिया। वो मिन्नतें करते रहे लेकिन प्रशासन ने एक ना सुनी और परिजनों के हाथ निराशा ही लगी।
उम्रदराज लोग भी हुए शिकार
ऑक्सीजन की कमी के चलते उम्रदराज लोगों को भी जान से हाथ धोना पड़ा। करीब 18 उम्रदराज लोगों की मौत भी हुई जो क्रमशः एकेडमिक वार्ड और महिला वार्ड के नंबर 4 में भर्ती थे।
देर शाम हुआ भुगतान
जैसे ही मौतें शुरु हुईं तुरंत पुष्पा सेल्स को बकाया भुगतान राशइ में से 20 लाख 84 हडार रुपए पेमेंट किया गया। फोन पर इस बात का आश्वासन भी दिया गया था कि 30 लाख और दिए जाएंगे हालांकि इस संबंध में कोई सूचना नहीं मिल सकी थी।