सबको चौंका सकता है फूलपुर का परिणाम, भाजपा की साख का बना सवाल
इलाहाबाद। देश की सबसे हॉट सीट बन चुकी फूलपुर लोकसभा का चुनाव परिणाम क्या होगा? इस पर अब पूरे देश की नजर है। उपचुनाव में बाजी किसके हाथ लगेगी? इसका कयास अब लगाया जा रहा है। गांव की चौपालों से लेकर चौराहे की दुकानों पर राजनीतिक चर्चा शुरू हो चुकी है। कम मतदान से यह साफ है कि रिजल्ट चौंकाने वाला हो सकता है जीत हार नजदीकी होगी। फिलहाल मठाधीश अपनी गणित से हार जीत समीकरण बता रहे हैं। किसे कितना वोट पड़ा और किसे नुकसान हुआ इस इस पर लोग अपने राजनैतिक ज्ञान का प्रदर्शन करने लगे हैं, लेकिन फूलपुर लोकसभा के इतिहास में पहली बार सबसे कम वोटिंग प्रतिशत में सभी राजनैतिक धुरंधरों की गणित को एक नजर में फेल कर दिया है। 50 या उससे अधिक वोटिंग परसेंटेज होने पर सत्तारूढ़ दल भाजपा के प्रत्याशी को यहां बढ़त मिलने की पूरी संभावना थी, लेकिन 38 परसेंट से भी कम मतदान होने के बाद बढ़त का सवाल ही खारिज हो गया है। अब असल मुद्दा हार और जीत का है और भाजपा और सपा के बीच मुख्य लड़ाई नजर आ रही है । रिजल्ट में दोनों के बीच हार जीत का अंतर बेहद ही कम होने की संभावना है।

शहर उत्तरी ने दिया झटका
दरअसल इलाहाबाद के शहर उत्तरी में जहां भाजपा के सर्वाधिक वोटर थे वहां उसे बढ़त नहीं मिल सकी और वहां वोटिंग परसेंट सिर्फ 21% ही हो सका। जबकि बैकवर्ड इलाकों में खासकर फूलपुर व सोरांव विधानसभा में जमकर वोटिंग हुई है और यहां हमेशा से सपा आगे रहती रही है। बसपा के प्रत्याशी रहे कपिल मुनि करवरिया ने जब जीत हासिल की थी तब उन्हें भी शहर उत्तरी की बढ़त ने ही जीत दिलाई थी, लेकिन इस बार कम वोटिंग परसेंटेज ने यह तो साफ कर दिया है कि ब्राम्हण और कायस्थ मतदाताओं ने उपचुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं ली जिससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

दावे और हकीकत में अंतर
भाजपा के तमाम बड़े नेता यह दावा कर रहे हैं कि बसपा सपा के मिलन के बाद जो प्रभाव मतदान में देखना था वह नहीं दिखा। इस मिलन को नकार दिया गया और इससे लोग नाराज रहे। पोलिंग बूथ पर इनके लोग नहीं गए जो वोट पड़े हैं वह BJP के लिए ही पड़े हैं, लेकिन विपक्षी दलों का कहना है कि सिर्फ सपा और बसपा के समर्थक और मतदाताओं ने वोट किया है। BJP के मतदाताओं में घोर निराशा थी और परिणाम में यह नजर आएगा। इन दोनों दावों में भले ही हकीकत न हो, लेकिन इन दोनों बातों में दम इसलिए नजर आता है क्योंकि यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। क्योंकि फूलपुर उपचुनाव में पहले लड़ाई 4 कैंडिडेट के बीच मानी जा रही थी। सपा -बसपा व कांग्रेस और निर्दलीय अतीक अहमद के साथ बीजेपी को लेकर राजनैतिक गलियारा गर्म था, लेकिन अतीक अहमद के बिछड़ने के बाद मतदान के दिन कांग्रेस भी बैकफुट पर नजर आई। दर्जन भर ऐसे बूथ रहे जहां कांग्रेस के पोलिंग एजेंट तक दिखाई नहीं पड़े और जो दिखे वह बोले की कांग्रेस ने सपा को समर्थन कर दिया है।

निराश दिखे कांग्रेसी
राजापुर मल्हुआ के कांग्रेस समर्थक जेपी दुबे ने दावा किया कि कांग्रेस की मीटिंग हुई और उसमे सपा को समर्थन कर दिया गया है। इसलिये पोलिंग बूथ पर ना ऐजेंट है ना ही बस्ता दिया गया है। हालांकि फौरी तौर यह उनका अपना मत लगता है, लेकिन पोलिंग बूथ पर ऐजेंट की नामौजूदगी इसे पूरी तरह नकारती भी नहीं है। लगभग हर बूथ पर सबसे उत्साहित रूप में सपा के पोलिंग एजेंट नजर आए। हालांकि भाजपा के भी बूथ अध्यक्ष शाम तक जुटे रहें और घर-घर जाकर लोगों से मतदान करने की अपील करते रहे। ऐसे में इतना तो तय है कि यह लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही है, लेकिन दोनों दलों में किस दल ने कहां से बढ़त बनाई होगी अभी इसका अंदाजा लगाया जा रहा है।

बैकवर्ड इलाके में बढ़त
फूलपुर लोकसभा की सोरांव विधानसभा और फूलपुर विधानसभा में समाजवादी पार्टी की कई बूथों पर बढ़त साफ दिखी। यहां समाजवादी पार्टी को अधिक वोट मिलने की संभावना है। चुनाव के राजापुर मल्हुआ पोलिंग बूथ पर सपा समर्थकों की भारी भीड़ के साथ ही जातिगत आंकड़े कम से कम यही कहते हैं। जिस मतदान केंद्र पर यादव मतदाताओं की संख्या अधिक थी वहां तो पहले से ही सपा का पलड़ा भारी था, लेकिन दलित वोटों के समीकरण में अगर कुछ परसेंट भी सपा के लिए वोट किया होगा तो यह बढ़त और बढ़ जाएगी। फाफामऊ विधानसभा के कछारी इलाकों में सपा के लिए एक तरफा वोटिंग होना बताया जा रहा है। यह इलाका भी यादवों के गढ़ में से गिना जाता है और इस इलाके में मुस्लिम मतदाता भी काफी संख्या में है। अतीक अहमद को नकारे जाने के बाद यहां सपा के लिए खासी संख्या में मतदान हुआ है और इससे सपा मजबूत स्थिति में लौटी है।

भाजपा को हुआ है नुकसान
फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा को भारी संख्या में नुकसान हुआ है। पिछले चुनाव में भाजपा के पास 3 लाख से अधिक वोटों की बढ़त थी। वह वोटों की बढ़त भरपूर वोटिंग ना होने से पूरी तरह खत्म हो गई है। लड़ाई अब आमने-सामने की है और यह निश्चित है कि हार जीत कम अंतराल से होगी और परिणाम चौंकाने वाला हो सकता है। फिलहाल चिंता की लकीरें सभी पर है, लेकिन सपा के पास खोने को कुछ नहीं है, परन्तु भाजपा के लिए यह साख का विषय है। भले ही जीत के बाद सांसद कार्यकाल के नाम पर चंद महीने होंगे, लेकिन यह आम चुनाव से पहले का वह ट्रेलर होगा जिसे देखकर जनता उनकी ओर खिंची चली आएगी।
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