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यूपी की एक टीचर ने बदली 650 बच्चों की जिंदगी

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Provided by Deutsche Welle

नई दिल्ली, 17 जनवरी। भारत में सरकारें दिव्यांग बच्चों को शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही हैं. जैसे कि उत्तर प्रदेश, जहां सबसे अधिक दिव्यांग हैं, वहां सरकारी प्राथमिक स्कूलों में विशेष शिक्षक रखे गए हैं जो दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं. लेकिन पढ़ाई शुरू करने से पहले ही एक चुनौती होती है, जिस कारण हजारों दिव्यांग स्कूल नहीं पहुंच पाते. वह है इन दिव्यांग छात्रों को चिन्हित करके उन्हें स्कूल में प्रवेश दिलवाना.

बरेली की एक शिक्षिका दीपमाला पांडेय ने इस चुनौती से पार पाना अपना ध्येय बना रखा है. वह बरेली जनपद के भुता विकास खंड के गांव डभौरा गंगापुर प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं. उनके स्कूल में तीन साल पहले एक दिव्यांग बच्चे अनमोल ने प्रवेश लिया. इस बच्चे ने इनको काफी कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया.

दीपमाला बताती हैं कि अनमोल मानसिक रूप से दिव्यांग था और बोलने में उसे काफी कठिनाई थी. वह आम बच्चों की तरह पढ़ नहीं सकता था. मैंने उसके ऊपर विशेष ध्यान देना शुरू किया. ये तो नहीं कह सकते कि वो अन्य बच्चों के बराबर पहुंच गया लेकिन मेहनत करने से उसे कुछ मदद मिली.

सबको साथ जोड़ा

दीपमाला के अनुसार अनमोल जैसे दूसरे बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने पर उन्होंने काफी सोच-विचार किया और अपने साथी शिक्षकों से भी बात की. अनमोल के कारण ही उन्होंने एक कार्यक्रम ëवन टीचर वन कॉल' शुरू किया. इसके अंतर्गत उन्होंने अपने साथी शिक्षकों को जोड़ना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप से सब लोग आपस में जुड़े. इनमें बरेली के अलावा निकट के अन्य जनपदों के भी शिक्षक जुड़ गए. देखते-देखते यह संख्या 350 हो गई.

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इस मॉडल में सब शिक्षकों को कम से कम एक दिव्यांग बच्चे की जिम्मेदारी लेनी थी और उसका स्कूल में प्रवेश करवाना था. उनके इस प्रयास से 650 दिव्यांग बच्चों को स्कूल में प्रवेश करवाया गया. उनकी इस पहल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितम्बर के अपने मन की बात उद्बोधन में भी सराहा और इस मॉडल की प्रशंसा की.

धीरे-धीरे दीपमाला का 'वन टीचर वन कॉल' मॉडल अब कई जगह पहुंच गया है. उनका मानना है कि ऐसे विशेष बच्चों के प्रति समाज की जिम्मेदारी है और वह उसे निभा रही हैं. दीपमाला यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने अन्य शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए प्रेरित करना भी शुरू कर दिया. पिछली 9 जनवरी को नेत्रहीन विद्यार्थियों को उचित प्रकार से शिक्षित करने के लिए शिक्षकों को मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु ब्रेल लिपि सिखाने की वर्कशॉप का आयोजन किया गया.

दीपमाला ने अपने प्रयास से दिव्यांग बच्चों को विभिन्न प्रतियोगिताओं में जाने के लिए प्रेरित किया और उनके लिए अलग श्रेणी में मूल्यांकन करने का कार्य किया. दीपमाला बताती हैं कि शुरुआत में झिझक होती थी कि पता नहीं ये बच्चे हमसे जुड़ पाएंगे या नहीं लेकिन जब आप बच्चों से बात करेंगे और उनको समझने की कोशिश करेंगे तो धीरे-धीरे एक रिश्ता बन जाता है, जो बच्चे के लिए जरूरी होता है.

कितनी बड़ी है चुनौती?

भारत में वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार कुल 121 करोड़ लोगो में से 2 .68 करोड़ लोग दिव्यांग है. इनमें से 56प्रतिशत पुरुष हैं जबकि 44प्रतिशत महिलाएं हैं. देश में सर्वाधिक दिव्यांग उत्तर प्रदेश में रहते हैं जिनकी संख्या लगभग 41 लाख 57 हजार है. इनमें 0-14 वर्ष के बच्चों की संख्या 10 लाख 91 हजार से ज्यादा है.

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक दिव्यांग बच्चे (0 -6 वर्ष) के लगभग 20.31प्रतिशत हैं, जिनकी संख्या चार लाख 14 हजार 824 है.

अगर उत्तर प्रदेश में रहने वाले दिव्यांगजनों की शैक्षिक योग्यता पर नजर डाली जाए तो लगभग 21 लाख 66 हजार साक्षर और 19 लाख 90 हजार से ज्यादा निरक्षर हैं. इनमें से तीन लाख 42 हजार दिव्यांग प्राइमरी से नीचे तक पढ़े हैं, पांच लाख 30 हजार 368 दिव्यांग प्राइमरी से अधिक लेकिन मिडिल से कम शिक्षित हैं, वहीँ चार लाख 40 हजार 333 दिव्यांग मिडिल से अधिक लेकिन मैट्रिक से कम पढ़े है.

चार लाख 92 हजार 552 मैट्रिक से अधिक लेकिन ग्रैजुएट से कम है. दो लाख से कम दिव्यांग ही ग्रैजुएट या उससे अधिक पढ़े हैं. अगर उत्तर प्रदेश में 5-19 वर्ष के दिव्यांगजनों के आंकड़ों को देखा जाए तो कुल 12 लाख 88 हजार 308 संख्या है जिसमें से सात लाख 62 हजार 506 स्कूल जा रहे हैं जबकि तीन लाख 74 हजार से ज्यादा दिव्यांगों ने कभी स्कूल में शिक्षा नहीं ली है.

Source: DW

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English summary
up district bareilly is trying to bring handicapped children to schoopls
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