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चीफ जस्टिस: मानवाधिकारों को थानों में सबसे ज्यादा खतरा

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नई दिल्ली, 09 अगस्त। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने मानवाधिकारों और उससे जुड़े खतरों को लेकर भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के 'विजन ऐंड मिशन स्टेटमेंट' और एनएएलएसए के लिए मोबाइल ऐप लॉन्च के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में यह बातें कहीं.

Provided by Deutsche Welle

मानवाधिकारों और गरिमा को पवित्र बताते हुए, सीजेआई रमना ने कहा, "मानवाधिकारों और शारीरिक अखंडता के लिए खतरा पुलिस स्टेशनों में सबसे अधिक है. हिरासत में यातना और अन्य पुलिस अत्याचार ऐसी समस्याएं हैं जो अभी भी हमारे समाज में व्याप्त हैं. हाल की रिपोर्टों के मुताबिक यहां तक कि विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट से नहीं बख्शा जाता है."

उन्होंने जोर देकर कहा, "संवैधानिक घोषणाओं और गारंटियों के बावजूद पुलिस थानों में प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व की कमी गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के लिए एक बड़ा नुकसान है. इन शुरुआती घंटों में लिए गए फैसले बाद में आरोपी की खुद का बचाव करने की क्षमता को निर्धारित करेंगे."

उन्होंने कहा, "पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार आवश्यक है. प्रत्येक पुलिस स्टेशन या जेल में डिस्प्ले बोर्ड और आउटडोर होर्डिंग की स्थापना इस दिशा में एक कदम है."

कमजोर आबादी को न्याय

सीजेआई रमना का कहना है कि लोगों का भरोसा जीतना होगा. उन्होंने कहा, "अगर न्यायपालिका को नागरिकों का विश्वास हासिल करना है, तो हमें सभी को आश्वस्त करना होगा कि हम उनके लिए मौजूद हैं. सबसे लंबे समय तक कमजोर आबादी न्याय प्रणाली से बाहर रही है."

उनका मानना है कि अदालतों द्वारा अपनाई जाने वाली लंबी, महंगी औपचारिक प्रक्रियाएं गरीबों और कमजोरों को हतोत्साहित करती हैं. सीजेआई रमना ने कहा कि आज न्यायपालिका की सबसे कठिन चुनौती इन बाधाओं को तोड़ना है.

एक समाज के लिए कानून के शासन द्वारा शासित रहने के लिए सीजेआई ने कहा कि अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त और सबसे कमजोर लोगों के बीच न्याय तक पहुंच के अंतर को पाटना अनिवार्य है.

ग्रामीण इलाकों में न्याय

चीफ जस्टिस ने कहा, "जिन लोगों के पास न्याय तक पहुंच नहीं है, उनमें से अधिकांश ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों से हैं, जो कनेक्टिविटी की कमी से पीड़ित हैं."

भारत में थानों में यातनाओं के मामले आम हैं. कई बार औपचारिक गिरफ्तारी के पहले ही आरोपी के साथ पुलिसकर्मी मारपीट करते हैं और आरोप तो यह भी लगते हैं कि आरोपियों को कोर्ट में पेश करने में भी देर की जाती है. चीफ जस्टिस रमना कहते हैं कि आजादी के 75 साल बाद भी हिरासत में टॉर्चर और पुलिस अत्याचार के मामले बंद नहीं हुए हैं.

Source: DW

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English summary
threat to human rights highest in police stations chief justice of india
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