भारत का 'पॉकेट डायनमो' जो GS की किताबों से निकलकर गूगल के डूडल पर पहुंच गया
आज 15 जनवरी के मौके पर Google डूडल उस पहलवान को सम्मान दे रहा है, जिसे प्यार से 'पॉकेट डायनमो' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने ओलंपिक में देश के लिए जो किया वह आज भी याद किया जाता है।
भारत में आज 15 जनवरी को खशाबा दादासाहेब जाधव (केडी जाधव) की 97वीं जन्म जयंती मनाई जा रही है। केडी जाधव भारतीय खेल इतिहास में इतने बड़े दिग्गज रहे जितना आज के समय में हम आसानी से कल्पना नहीं कर सकते। भारत क्रिकेट में झंडे गाड़ रहा था पर ओलंपिक में मेडल जीतन का मतलब केवल हॉकी ही था। सच ये है जब हॉकी का देश में पतन होना शुरू हुआ तब क्रिकेट का उभार हुआ और फिर ये उठान होता चला गया। इस दौरान कई ओलंपिक आए लेकिन व्यक्तिगत मेडल के तौर पर भारत की झोली खाली रही।
स्वतंत्र भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले व्यक्तिगत एथलीट
80 और 90 के दशक में ये सूखा कायम रहा। ऐसे में जब लिएंडर पेस ने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में कांस्य पदक जीता तो वो बहुत बड़ी उपलब्धि थी। बाद में कुश्ती ने भारतीय खेलों में अपना परचम लहराया जो आज भी लगातार जारी है। हरियाणा के पहलवानों ने जैसे इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। इस समय ओलंपिक में हम कुश्ती में एक ताकत के तौर पर उभर चुके हैं। इससे पहले हम जानते थे केडी जाधव ने 1952 के ओलंपिक में भारत को व्यक्तिगत लेवल पर कांस्य पदक दिलाया था। ये पदक लंबे समय तक भारत के सामान्य अध्य्यन की किताबों में दर्ज बड़ी जानकारी के तौर पर भी सम्मानित रहा। आज जब भारत कई मेडल जीत चुका है और नीरज चोपड़ा के तौर पर एथलेटिक्स में पहला गोल्ड भी आ चुका है तो भी जाधव की वह उपलब्धि बड़ी महान है क्योंकि वे स्वतंत्र भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले व्यक्तिगत एथलीट हैं।
Google डूडल उस पहलवान को याद करता है
आज 15 जनवरी के मौके पर Google डूडल उस पहलवान को याद करता है, जिसे प्यार से 'पॉकेट डायनमो' के नाम से जाना जाता है। जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में जर्मनी, मैक्सिको और कनाडा के खिलाड़ियों को हराकर कांस्य पदक हासिल किया। आज भारत पहलवानी में कई पदक जीत चुका है। गोल्ड मेडल की तलाश अभी भी जारी है। अधिकतर पदक हरियाणा से आए हैं। लेकिन जाधव का ताल्लुक उत्तर भारत से नहीं था। वे महाराष्ट्र के एक गांव सतारा में जन्मे थे।
कोल्हापुर के महाराज ने शुरुआती मदद की
1952 से पहले ही कोल्हापुर के महाराज की नजर इस पहलवान की प्रतिभा पर पड़ चुकी थी। उन्होंने लंदन में 1948 के ओलंपिक खेलों में जाधव की भागीदारी के लिए फंड देने का फैसला किया। जाधव इतने प्रतिभाशाली थे कि वे इंटरनेशनल कुश्ती नियमों के आदी नहीं थे और अत्यधिक अनुभवी पहलवानों के साथ मुकाबला करना था। तब भी वे छठे स्थान पर रहे, जो उस समय के दौरान एक भारतीय पहलवान के लिए सर्वोच्च स्थान था।
जाधव का शरीर गठीला लेकिन हल्का था जिसमें फुर्ती बहुत थी। उनके पैर खासतौर पर हल्के थे और उनका कौशल बहुत अच्छा थे जिसने उन्हें अपने करियर की शुरुआत में सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में से एक बना दिया। जाधव के पिता भी पहलवान थे और उनकी पहली ट्रेनिंग घर में ही हुई थी फिर अन्य पेशेवर पहलवानों से प्रशिक्षण लेकर कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खिताब जीते।
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महाराष्ट्र सरकार ने मरणोपरांत छत्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया
जाधव की सबसे बड़ी उपलब्धि हेलसिंकी ओलंपिक में जीत थी। इसके बाद भी वे करियर को जारी रख सकते और कुछ बड़े मुकाम और भी देख सकते थे लेकिन तब भी चोटें खिलाड़ी के करियर को तबाह करती थी और आज भी करती हैं। हेलसिंकी ओलंपिक के बाद जाधव के घुटने में ऐसी चोट लगी कि वे अपने कुश्ती करियर को जारी नहीं रख सके लेकिन भारत में उन्होंने एक पुलिस अधिकारी के रूप में काम किया। 1984 में उनकी मृत्यु हो गई जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने मरणोपरांत छत्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया। 2010 में दिल्ली कॉमनेल्थ गेम्स में भी कुश्ती स्थल का नाम उनके ऊपर रखा गया।
(Photo Credit- Google/Twitter)
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