Rajasthan: महापुरूषों की मूर्तियों पर पोता जला हुआ तेल, सीसीटीवी में कैद हुई शर्मनाक हरकत
भारत में अक्सर आपने लगभग हर कसबे, शहर, महानगर या चौराहे पर किसी न किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ती लगे तो जरूर देखा होगा। इस तरह की मूर्ती लगाने के कई उद्देश्य होते हैं जैसे लोगों को प्रेरणा देना, उन महान व्यक्तियों के त्याग और बलिदान को अमर रखने के उद्देश्य से या सीधी भाषा में कहे तो महान लोगों का सम्मान करने के लिए भी यह मूर्ती स्थापित की जाती हैं। मगर हाल ही में राजस्थान के सुजानगढ़ विधानसभा क्षेत्र से एक शर्मनाक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमे एक अज्ञात व्यक्ति चौराहे पर लगी अमर शहीदों व महापुरूषों की मूर्तियों पर जला हुआ ऑयल लगाता नजर आ रहा है।
शहीदों व महापुरूषों की मूर्तियों पर जला हुआ ऑयल
दरअसल, बीती रात राजस्थान के सुजानगढ़ विधानसभा क्षेत्र के लुहारा गांव के चौक पर स्थित अमर शहीदों व महापुरूषों की मूर्तियों पर जला हुआ ऑयल लगाकर मूर्तियों का चेहरा काला कर दिया गया। घटना का सीसीटीवी विडियो वायरल हुआ है। जिसमें एक वृद्ध व्यक्ति मूर्तियों को काला करता नजर आ रहा है। वहीं मामले में लुहारा गांव के निवासी संजय बेनीवाल ने बीदासर थाने में अज्ञात व्यक्ति के विरूद्ध मुकदमा दर्ज करवाकर पुलिस से कानूनी कार्यवाही करने की मांग की है। बीदासर थानाधिकारी जगदीशसिंह ने बताया कि मामले को लेकर पुलिस ने गंभीरता के साथ कार्यवाही करते हुए एक संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में ले लिया है और मामले की जांच जारी है। वहीं भाजपा नेता गंगाधर लाखन ने मामले में पुलिस प्रशासन से मांग की है कि घटना का षड़यंत्र रचने वाले लोगों का पता लगाया जाएगा और उनके विरूद्ध सख्त कानूनी कार्यवाही की जाएगी। बता दें कि चौराहे पर जिन मूर्तियों पर कलिक पोतने का शर्मनाक काम किया गया है उनमे शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव की मूर्तियों के साथ-साथ बाबा साहेब की मूर्ति के चेहरे को भी काला कर दिया गया।
"दुर्व्यवहार क्षमा योग्य नहीं"
स्वतंत्रता के लिए कई लोगों ने अपने जीवन का त्याग किया,और उन नामों की यदि सूची बनाई जाए तो बहुत से नाम ऐसे होंगे जिनके बारे में आज भी कोई नहीं जानता,लेकिन इन सभी नामो में जो नाम सर्वाधिक विख्यात हैं वो हैं- सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु. इन सभी को एक साथ 23 मार्च 1931 को फांसी दी गयी, बाद मे इनके मृत शरीर को सतलुज नदी तट पर जला दिया गया था। उस समय इस बात से देश में एक क्रान्ति की लहर दौड़ पड़ी, और ब्रिटिश राज से स्वतंत्र होने के लिए चल रहे संघर्ष को एक नयी दिशा मिली थी। क्या ऐसे महान लोगों की मूर्ती के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्षमा योग्य है?
बाबा साहब खुद मूर्तिपूजा के विरोधी रहे
वैसे
हिंदुस्तान
में
मूर्तियों
को
लेकर
हमेशा
से
राजनीति
होती
रही
है।
कुछ
साल
पहले
तक
बाबा
साहब
भीमराव
अंबेडकर
की
मूर्तियां
तोड़े
जाने
की
खबरे
आती
रही
थीं।
वैसे
हैरानी
की
बात
है
कि
संविधान
निर्माता
बाबा
साहब
खुद
मूर्तिपूजा
के
विरोधी
रहे
थे
और
उन्होंने
संविधान
सभा
में
एक
बार
बहस
के
दौरान
कहा
था
कि
भारत
अभी
भी
भक्तिकाल
में
ही
जी
रहा
है
लेकिन
उनके
निधन
के
बाद
उनकी
मूर्तियां
राजनीतिक
इस्तेमाल
करने
का
जरिया
बनीं।
सवाल
उठता
है
कि
आखिर
नेताओं,
महापुरूषों
की
मूर्तियां
आखिर
लगायी
क्यों
जाती
है।
इसलिए
कि
आम
लोग
चौराहे
से
गुजरते
हुए
उस
महापुरुष
को
नमन
करें,
उनके
दिखाए
रास्ते
पर
चलने
की
कोशिश
करें
और
प्रेरित
हों।
लेकिन
ऐसा
होता
ही
नहीं
है।
ऐसा
होता
होता
तो
कम
से
कम
न
तो
मूर्तियां
तोड़ी
जा
रही
होतीं,
न
मुंह
पर
कालिख
पोती
जा
रही
होती
और
न
ही
सियासत
हो
रही
होती।
मूर्ति की सारसंभाल करने वाला कोई नहीं
आमतौर
पर
देखा
गया
है
कि
चौराहे
पर
खड़ी
मूर्ति
चिड़ियों
की
बीट
का
शिकार
होती
रहती
हैं,
आसपास
भी
कोई
सफाई
नहीं
करता
है।
साल
में
एक
बार
मूर्ति
का
दिन
आने
पर
जरूर
सफाई
हो
जाती
है।
फूलमालाओं
से
लाद
दिया
जाता
है
लेकिन
उसके
कुछ
दिन
बाद
सूखे
हुये
फूल
ही
गंदगी
फैलाने
लगते
हैं।
हमारे
देश
में
तो
शहीदों
की
मूर्तियों
को
लेकर
भी
सियासत
होती
रही
है।
करगिल
की
लड़ाई
में
शहीद
हुए
सैनिकों
के
घरवाले
उनकी
याद
में
मूर्ति
बनाते
रहे
हैं।
राजस्थान
में
तो
देखा
गया
कि
मूर्ति
की
जगह
को
लेकर
कभी
राजनीति
हुई
तो
कभी
मूर्ति
के
अनावरण
में
किसी
बड़े
नेता
को
बुलाने
के
नाम
पर
बीच
के
लोग
पैसा
खा
गये।
कुछ
जगह
शहीद
की
विधवा
का
शहीद
पैकेज
का
आधे
से
ज्यादा
हिस्सा
मूर्ति
लगवाने
में
ही
खर्च
कर
दिया
गया।
कुछ
समय
पहले
एक
तस्वीर
अखबारों
में
छपी
थी।
उसमें
शहीद
की
विधवा
अपने
बच्चों
के
साथ
शहीद
की
मूर्ति
और
आसपास
से
गंदगी
को
हटा
रहे
थे,
झाड़ू
लगा
रहे
थे।
देश
में
शहीद
की
मूर्ति
की
सारसंभाल
करने
वाला
भले
ही
कोई
न
हो
लेकिन
मूर्ति
के
तोड़ने
पर
मातम
करने
वाले
हजारों
मिल
जाते
हैं।
यह
किसी
त्रासदी
से
कम
नहीं
है।