टेंशन में चन्नी सरकार, अगर चंडीगढ़ बन गया 'दिल्ली बॉर्डर' तो क्या होगा ?
चंडीगढ़, 02 दिसंबर। पंजाब की चन्नी सरकार अब अपने ही जाल में फंसती दिख रही है। तीन कृषि कानूनों को वापस लिये जाने के बाद पंजाब का राजनीतिक परिदृश्य बदलने लगा है। आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर से लौटने लगे हैं। अब किसान कार्ड का दांव चन्नी सरकार के खिलाफ उल्टा पड़ सकता है।
दिल्ली बॉर्डर से लौटने वाले किसान पंजाब में पूर्ण कर्जमाफी का मुद्दा उठा सकते हैं। पांच साल पूरा होने को हैं और राज्य सरकार अभी तक आंशिक कर्ज ही माफ कर पायी है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पूर्ण कर्जमाफी के लिए अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं ले पाये हैं। वे गहरे दवाब में हैं और उन्हें राजनीतिक नुकसान की चिंता सताने लगी है।
कर्जा 90 हजार करोड़, माफ 4 हजार 600 करोड़
2017 के चुनाव में कांग्रेस ने वायदा किया था कि अगर सरकार बनी तो किसानों के कर्ज पूरी तरह माफ कर दिये जाएंगे। कांग्रेस की सरकार तो बन गयी लेकिन किसानों की कर्जमाफी का वायदा अधूरा रह गया। पंजाब के किसानों पर करीब 90 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। राज्य सरकार अभी तक करीब 4 हजार 600 करोड़ का कर्ज ही माफ कर पायी है। यानी अभी तक कर्ज का एक छोटा हिस्सा ही माफ हो पाया है। अधिकतर किसानों पर अभी भी 2017 की तरह बैंकों और आढ़तियों का कर्जा लदा हुआ है। सरकार की इस वादाखिलाफी से किसान बेहद नाराज हैं। अब उन्होंने चंड़ीगढ़ को दिल्ली बॉर्डर बनाने की धमकी दी है। किसान नेता जगजीत सिंह डडेवाल ने कहा है कि दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन खत्म होने के बाद अब चंड़ीगढ़ में तंबू गाड़ा जाएगा। पंजाब सरकार को पूर्ण कर्जमाफी का वायदा पूरा करना ही होगा। चन्नी सरकार अपना दामन बचाने के लिए इस मामले में केन्द्र सरकार को घसीटने की कोशिश कर रही है। पंजाब सरकार ने पूर्ण कार्जमाफी के लिए केन्द्र सरकार से पैसा मांगा है। लेकिन किसानों का मानना है कि राज्य सरकार इस मुद्दे को लटकाने के लिए ये पैंतरा खेल रही है। अब राज्य सरकार पर किसानों का दबाव बढ़ता जा रहा है। अगर चुनाव की घोषणा से पहले किसानों की मांग पूरी नहीं हुई तो कांग्रेस को लेने के देने पड़ सकते हैं।
राहुल गांधी की किरकिरी
पंजाब कांग्रेस के नेताओं ने कर्जमाफी के मुद्दे पर राहुल गांधी को भी अंधेरे में रखा। एक महीना पहले राहुल गांधी चुनावी अभियान पर गोवा गये थे। उन्होंने एक सभा में कहा था, कांग्रेस के घोषणा पत्र में जो वायदे किये जाते हैं वो जरूर पूरा किये जाते हैं। छत्तीसगढ़ में हमने किसानों के कर्जमाफ करने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा। सरकार बनने के बाद इस वायदे को पूरा भी किया। हमने पंजाब में किसानों के सब कर्जे माफ कर दिये। अगर लोग चाहें तो पंजाब जा कर इस बात को कंफर्म कर सकते हैं। इस बयान पर राहुल गांधी की खूब किरकिरी हुई थी। अकाली दल के नेताओं ने राहुल गांधी पर गलतबयानी का आरोप लगाया था। उन्होंने राहुल गांधी को चुनौती दी थी कि अगर वे सच बोल रहे हैं तो राज्य सरकार पूर्ण कर्ज माफी की रिपोर्ट जारी करे। जाहिर है राहुल गांधी आधी अधूरी जानकारी पर ऐसा बोल गये। उन्हें यह नहीं बताया गया कि अभी तक पंजाब में किसानों के कर्ज का एक छोटा हिस्सा ही माफ हुआ है। सच्चाई छिपाने की यह कोशिश अब कांग्रेस सरकार पर भारी पड़ने वाली है।
अगर किसान नेता चुनाव में उतरे तो क्या होगा?
किसान नेता हालात बदलने के लिए अब खुद अपनी पार्टी बना कर चुनाव लड़ना चाहते हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी पहले ही इस बात का संकेत दे चुके हैं। जम्हूरी किसान सभा के नेता कुलवंत सिंह संधु भी चुनावी मैदान में उतरने के पक्षधर हैं। किसानों का मानना है कि सभी दलों ने इनके साथ धोखा किया है। भाजपा, कांग्रेस अकाली दल और आप इस मामले में एक जैसे ही है। वे किसानों की बजाय पूंजीपतियों का समर्थन करते हैं। जब तक किसानों की सरकार नहीं बनेगी, उनका भला नहीं होने वाला है। दिल्ली बॉर्डर पर जमे किसान नेता चुनाव लड़ने की बात तो कह रहे हैं कि लेकिन उनके पास कोई राजनीतिक संगठन नहीं है। वे अलग-अलग राज्य और संगठन के हैं। पंजाब में ही किसानों के छोटे-बड़े 32 संगठन हैं। इनमें कुछ संगठन पहले भी चुनाव लड़ते रहे हैं। अगर किसानों का संगठन कोई चुनावी मोर्चा बनाता है तो उसका स्वरूप क्या होगा, यह भी पता नहीं है। किसान नेता अगर अचानक चुनावी मैदान में उतरते हैं तो क्या वे जीत पाएंगे ? उनके चुनाव लड़ने से अगर वोट कटेंगे तो किसको फायदा होगा ? इन सवालों ने भी कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है।