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जियोमार्ट ने मचाई उथल-पुथल, लाखों की रोजी-रोटी संकट में

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Provided by Deutsche Welle

नई दिल्ली, 23 नवंबर। घरेलू चीजों के सेल्समैन विप्रेश शाह आठ दिन से डिटॉल साबुन की एक भी टिकिया दुकानदारों को नहीं बेच पाए हैं. ये वही दुकानदार हैं जो 14 साल से उनसे सामान खरीद रहे हैं.

महाराष्ट्र के सांगली के नजदीक वीटा में विप्रेश शाह ब्रिटेन की रैकिट बैंकाइजर कंपनी के आधिकारिक डिस्ट्रीब्यूटर हैं. वह बताते हैं कि उनके सबसे वफादार ग्राहक भी अब टूटने लगे हैं क्योंकि वे लोग जियोमार्ट पार्टनर ऐप की ओर जा रहे हैं.

विप्रेश कहते हैं कि सामान बेचने जाओ तो दुकानदार ऐप दिखा देते हैं जिस पर कीमतें 15 प्रतिशत तक कम हैं. वह बताते हैं, "रिकेट का डिस्ट्रीब्यूटर हूं तो कभी बाजार मैं राजा हुआ करता था. अब ग्राहक कहते हैं कि देखो तुमने हमें कितना लूटा है."

31 साल के व्यापारी शाह कहते हैं कि जियोमार्ट जिस कीमत पर सामान दे रहा है उस पर सामान बेचने के लिए उन्हें अपनी जेब से लगभग डेढ़ लाख रुपये देने पड़े हैं. जियोमार्ट भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की ऐप है जिसके जरिए वह भारत के रीटेल सेक्टर में क्रांति लाना चाहते हैं.

भारत में वीटा जैसी ऐसी हजारों छोटी-छोटी जगह हैं जहां के छोटे-छोटे किराना दुकानदार अब थोक में सामान खरीदने के लिए जियोमार्ट के पास जा रहे हैं. ये छोटे किराना दुकानदार आज भी भारत के 900 अरब डॉलर के रीटेल बाजार के ज्यादातर हिस्से के मालिक हैं.

मुकेश अंबानी ने जिस तरह जियो के जरिए टेलीकॉम उद्योग को उथल-पुथल कर दिया था, कुछ वैसा ही काम अब रीटेल सेक्टर में हो रहा है. जियोमार्ट के जरिए वह अमेजॉन और वॉलमार्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों को भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं और तेजी से भारत में पांव पसार रहे हैं.

कैसे मची उथल-पुथल

भारत में लगभग छह लाख गांव हैं. इनमें थोक सप्लाई के लिए लगभग साढ़े चार लाख डिस्ट्रीब्यूटर हैं. अब तक ये थोक व्यापारी 3-5 फीसदी के मार्जिन पर किराना दुकानदारों को सामान बेचते रहे हैं. यह व्यापार व्यक्तिगत रूप से होता है और किराना दुकानदार या खुद सामान ले जाते हैं या फिर व्यापारी उनके यहां सामान पहुंचा देते हैं.

लेकिन रिलायंस का मॉडल इस व्यवस्था में उथल पुथल मचा रहा है. जियोमार्ट ऐप पर किराना दुकानदार अपनी दुकान से ही ऑर्डर करते हैं और उन्हें 24 घंटे में डिलीवरी मिल जाती है. रिलायंस दुकानदारों को ट्रेनिंग भी देता है कि कैसे ऑर्डर करना है. इसके अलावा उधार और मुफ्त सैंपल जैसी सुविधाएं भी हैं.

इसका असर रैकिट, यूनिलीवर, कोलगेट पामोलिव जैसी कंपनियों के लाखों छोटे-छोटे डिस्ट्रीब्यूटर और सेल्समैन को झेलना पड़ रहा है. दर्जनों सेल्समैन, डिस्ट्रीब्यूटरों और एक ट्रेडर ग्रुप के लोगों से बातचीत में यह बात सामने आई कि इन लोगों का पूरा धंधा मुश्किल में पड़ गया है.

इन लोगों ने बताया कि ऐप आने के बाद 20-25 प्रतिशत तक कम हो गया है जिसके चलते बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी से निकालना पड़ है और वाहन तक बेचने पड़े हैं.

वीटा के डिस्ट्रीब्यूटर विप्रेश शाह ने बताया कि उनके पास आठ लोग काम करते थे जिनमें से चार को उन्होंने काम से हटा दिया है. उन्हें डर है कि 50 साल से चला आ रहा उनका खानदानी व्यापार छह महीने भी नहीं टिक पाएगा.

उग्र विरोध

इस उथल पुथल का असर कई जगह तो हिंसा के रूप में भी सामने आया है. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कई जगहों पर जियोमार्ट की गाड़ियों का रास्ता रोका गया है. ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन में चार लाख एजेंट सदस्य हैं. इस संघ के अध्यक्ष धैर्यशील पाटील कहते हैं कि वह रिलायंस का विरोध जारी रखेंगे.

पाटील ने बताया, "हम तो गुरिल्ला तकनीक अपनाएंगे. हम आंदोलन जारी रखेंगे. हम चाहते हैं कि कंपनियां हमारी कीमत समझें." हालांकि, रिलायंस पर इसका असर नहीं हो रहा है और 2018 में शुरू हुआ रीटेल वेंचर पूरे जोर से आगे बढ़ाया जा रहा है. रिलायंस ने इस बारे में सवालों के जवाब तो नहीं दिए लेकिन कंपनी से जुड़े एक स्रोत ने बताया कि किराना दुकानों को अपने नेटवर्क में शामिल करना जारी रखा जाएगा.

कोलगेट और यूनिलीवर ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जबकि रैकिट ने बस इतना कहा कि उसके ग्राहक और डिस्ट्रीब्यूटर उसके व्यापार का अहम हिस्सा हैं.

वीके/एए (रॉयटर्स)

Source: DW

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English summary
princes to paupers indias salesmen face ruin as ambani targets mom and pop stores
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