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उत्पीड़न से परेशान ईरानी महिला एथलीट दूसरे देशों में ले रहीं शरण

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Provided by Deutsche Welle

तेहरान, 28 मई। परिसा जहानफेकरियन 2021 में टोक्यो ओलंपिक में शामिल होना चाहती थीं. उनका सपना था ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली ईरान की पहली वेटलिफ्टर बनना. हालांकि ईरानी वेटलिफ्टिंग एसोसिएशन (आईआरआईडब्ल्यूएफ) और राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 27 साल की जहानफेकरियन को ऐसा करने से रोक दिया. उन्हें खेल से निलंबित कर दिया. उनका खेलने का इतना बड़ा सपना पूरा होते-होते टूट गया. उन्होंने अपने 'बचपन के सपने को लूटते, टूटते, और मरते' हुए देखा.

इसके बाद, जहानफेकरियन ने अपने टूटे हुए सपने को फिर से पूरा करने के लिए ईरान से भागने का फैसला किया. वह अपने देश से भागकर जर्मनी पहुंची हैं. यहां बर्लिन में उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जब से मैंने वेटलिफ्टिंग शुरू की, तब से मैं अपने बचपन के इस सपने को पूरा करने के लिए लड़ती रही."

ईरान में लंबे समय से महिला एथलीटों का उत्पीड़न हो रहा है. इस वजह से कई वेटलिफ्टर और एथलीटों ने अपने देश से भागने का फैसला किया. हालांकि, जर्मनी पहुंचने के बाद भी जहानफेकरियन का भविष्य अधर में है, लेकिन उनकी उम्मीद वापस लौट आई है. वह कहती हैं, "मैं यह साबित करने के लिए जर्मनी आयी हूं कि अगर ईरानी महिला को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की आजादी दी जाए, तो वह किस मुकाम तक पहुंच सकती हैं."

परिसा जहानफेकरियन ने वेटलिफ्टिंग में कई मेडल जीते हैं

ओलंपिक के लिए चुने जाने के बाद भी उन्हें ईरान में शायद ही प्रशिक्षण लेने का कोई मौका मिला था. जहानफेकरियन उस कठिन दौर को याद करते हुए कहती हैं, "मैंने बार-बार अधिकारियों को इन समस्याओं के बारे में जानकारी देने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने छोटी से छोटी मांग को भी नजरअंदाज कर दिया. ऐसे में देश छोड़ने का फैसला ही मेरे पास सबसे बेहतर विकल्प था."

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तीन साल में 90 डॉलर की मदद

जहानफेकरियन के देश छोड़ने की एक वजह यह भी थी कि ईरान में महिला एथलीटों को आर्थिक मदद देने में काफी ज्यादा भेदभाव किया जाता है. उन्होंने ऑनलाइन पत्रिका 'इनसाइड द गेम्स' को बताया, "ओलंपिक में खेलने के लिए चुने जाने के बाद, मुझे तीन संगठनों से आर्थिक मदद मिलनी चाहिए थी. इनमें ईरानी वेटलिफ्टिंग एसोसिएशन, राष्ट्रीय ओलंपिक समिति, और खेल एवं युवा मंत्रालय शामिल थे. हालांकि, मुझे सिर्फ मंत्रालय से ही मदद मिली. अन्य दो ने मदद करने का आश्वासन देकर भी कोई रकम नहीं दी."

जहानफेकरियन को तीन साल में महज 90 डॉलर मिले, जबकि पुरुष एथलीटों को हर महीने इससे कई गुना ज्यादा पैसे मिले. उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने भी पैसे देने के अपने वादे को पूरा नहीं किया. साथ ही, बाहरी स्रोत से मिलने वाले पैसे पर भी पाबंदी लगा दी. आर्थिक सहायता नहीं मिलने, सम्मान में कमी और महिलाओं के साथ लगातार हो रहे भेदभाव की वजह से आखिरकार उन्हें अपना देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा.

किमिया अलीजादेह ने रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था उसके बाद वो भाग कर जर्मनी आ गईं

लगातार निगरानी के बावजूद भागने में कामयाब

देश छोड़ने का फैसला जहानफेकरियन ने अकेले नहीं किया. कहा जाता है कि करीब 20 -30 ईरानी एथलीट विदेशों में होने वाली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने गए और वहां से भाग निकले. फिलहाल, ये दुनिया के अलग-अलग देशों में रह रहे हैं और वहां शरण के लिए आवेदन किया है. इनमें प्रसिद्ध जूडो खिलाड़ी सईद मोल्लाई भी शामिल हैं. इन्होंने मंगोलिया की तरफ से टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लिया. वे ईरान की एकमात्र ओलंपिक पदक विजेता भी हैं. इन्होंने 2016 में रियो ओलंपिक में ईरान की ओर से खेलते हुए कास्य पदक जीता था. ताइक्वांडो स्टार किमिया अलीजादेह आज जर्मनी के असाफेनबर्ग में रहती हैं. अलीजादेह भी 2020 में ईरान से भाग गई थीं. इन्होंने खुद को 'ईरान में उत्पीड़न की शिकार लाखों महिलाओं में से एक' बताया था.

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वेटलिफ्टर येकता जमाली ने भी जहानफेकरियन के रास्ते पर चलते हुए देश से भागने का फैसला लिया. जिस समय जहानफेकरियन देश से भागी थीं, उसी समय जमाली ने भी यह कदम उठाया था. वह भी भागकर जर्मनी पहुंची. जमाली वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली ईरानी महिला हैं. उन्होंने 2021 में जेद्दा में आयोजित युवा चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था.

ग्रीस के क्रेते में चैंपियनशिप जीतने के बाद 17 साल की जमाली हेराक्लिओन शहर में अपने होटल से 10 मई को अचानक गायब हो गईं. यहां भी उन्होंने एक और रजत पदक जीता था. ईरानी प्रतिनिधिमंडल ने जमाली के गायब होने की पुष्टि की और स्थानीय पुलिस और जमाली के परिवार से संपर्क किया गया, लेकिन उनके बारे में कोई सुराग नहीं मिला. आईआरआईडब्ल्यूएफ की उपाध्यक्ष जहरा पौरामिन ने कहा, "मुझे नहीं पता कि क्या हुआ था."

येकता जमाली ग्रीस में चैंपियनशिप जीतने के बाद भाग कर जर्मनी आ गईं

आईआरआईडब्ल्यूएफ के अध्यक्ष अली मोरादी ग्रीस में मौजूद ईरानी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे. उन्होंने व्यक्तिगत रूप से जमाली की खोज की. जमाली ने लंदन स्थित ईरानी प्रसारक "ईरान इंटरनेशनल" को बताया, "वे लोग हमेशा मेरी निगरानी कर रहे थे. निगरानी करने वालों ने शायद यह नहीं सोचा होगा कि मैं राष्ट्रीय टीम के क्वार्टर से फरार हो जाऊंगी. हालांकि, सुबह-सुबह मैं किसी तरह खुद को उनकी नजरों से बचाते हुए होटल से बाहर निकल गई. मुझे भागने के लिए सही समय का इंतजार करना पड़ा. मैं होटल से सीधे एथेंस के एयरपोर्ट पर पहुंची."

परिवार से बिछड़ने का दर्द

जमाली के भागने के मामले ने पूरे ईरान में तहलका मचा दिया. यहां तक कि सरकारी टीवी चैनल पर भी खबर चली. जमाली जैसी महिला एथलीट उत्पीड़न और भेदभाव से बचने के लिए जिस तरह का जोखिम भरा कदम उठा रही हैं, वह इस बात का संकेत है कि ईरान में खेल के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति कितनी दयनीय है. भागने के दौरान पकड़े जाने और सजा मिलने के खतरों के साथ-साथ, उन्हें परिवार से बिछड़ने का दुख भी झेलना पड़ता है. जमाली कहती हैं, "मुझे मेरे परिवार की कमी बहुत ज्यादा खलेगी. मैं उन्हें अपने प्रदर्शन से गौरवान्वित करने का हर संभव प्रयास करूंगी."

जब विदेशों में होने वाली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की बात आती है, तो परिवार भी उसमें पहले से ही शामिल होते हैं. परिवार को ही अपने बच्चों को आर्थिक तौर पर मदद करना होता है. देश से बाहर जाने का परमिट पाने के लिए, जमानत के तौर पर देश की सरकार के पास अच्छी-खासी रकम जमा करनी पड़ती है.

उदाहरण के लिए, दिसंबर 2021 में स्पेन में आयोजित महिला हैंडबॉल विश्व कप के दौरान हैंडबॉल खिलाड़ी शाघयेग बापिरी टीम से फरार हो गईं और शरण के लिए आवेदन किया. बाद में, उन्होंने बताया कि टूर्नामेंट में शामिल होने के लिए आने से पहले, ईरानी टीम के हर खिलाड़ी को 30,000 डॉलर सरकार के पास जमा करना था. कहा जाता है कि एथलीट को भागने से रोकने के लिए उनकी अचल संपत्ति और अन्य कीमती सामान भी जमानत के तौर पर सरकार जमा कराती है.

जर्मनी में भविष्य

परिवार की कमी और एक नए देश में संभावित संघर्षों के बावजूद, ईरान के कई एथलीट वापस लौटने को तैयार नहीं हैं. जमाली ने कहा, "जर्मनी में, मुझे एक शरणार्थी के तौर पर निश्चित रूप से कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, लेकिन ईरान में मुझे जिस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा यह उससे कहीं कम है." उनका लक्ष्य जर्मनी में रहते हुए इतना बेहतर प्रदर्शन करना है कि 'ईरान के अधिकारियों को यह एहसास हो कि उन्होंने किसे खोया है.'

कई अन्य लोगों की तरह जहानफेकरियन ने जर्मनी भागने के लिए एक बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अब वह अपना भविष्य देख रही हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि वह 'आजाद देश में रहकर बहुत खुश हैं.' उनका कहना है कि अब वह बिना किसी तनाव और चिंता के रह रही हैं. जर्मनी में उनका कदम उन "दमनकारी कार्रवाइयों की निंदा की शुरुआत है जो ईरान के इस्लामी गणराज्य में सत्ता में रहने वाले लोग महिलाओं के ऊपर करते हैं."

सपना पूरा होगा?

जहानफेकरियन उन प्रगतिशील महिलाओं की आवाज बनना चाहती हैं जिन्हें अपनी निजी क्षमता को साबित करने का अवसर नहीं दिया गया. फिलहाल, वह बर्लिन में प्रशिक्षण ले रही हैं. उनके पास अपने भविष्य को लेकर कई योजनाएं हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "मैं 2024 के ओलंपिक में शामिल होने के लिए हर संभव कोशिश करूंगी. अगर मैं ऐसा कर पायी, तो मेरा एक बड़ा सपना सच हो जाएगा."

जहानफेकरियन जर्मनी का स्थायी निवास परमिट और शायद नागरिकता भी पाना चाहती हैं, ताकि वह 2024 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक में जर्मनी की तरफ से मुकाबले में उतर सकें. वह कहती हैं, "जब मैं जर्मन खिलाड़ी के तौर पर ईगल का निशान वाला ड्रेस पहनकर मैदान पर जाऊंगी, तो यह मेरे लिए बड़ा सम्मान होगा." जहानफेकरियन का पुराना सपना टूट गया है, लेकिन अब उनके पास एक नया सपना है, जिसे वह हर हाल में पूरा करना चाहती हैं.

Source: DW

English summary
Persecution troubled Iranian female athletes taking refuge in other countries
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