पाकिस्तान: हर साल 1000 लड़कियां अगवाकर बनाई जाती हैं मुसलमान, कोरोनाकाल में बढ़े मामले
इस्लामाबाद। Force Conversion in Pakistan: पिछले महीने ही पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में एक 13 साल की ईसाई लड़की को अगवाकर 44 साल के शख्स से उसकी जबरन शादी किए जाने के मामले ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं। इस मामले ने इसलिए भी ज्यादा सुर्खियां बटोरी थीं क्योंकि लड़की के 13 साल के होने के बावजूद कोर्ट ने उसके शौहर के साथ भेज दिया था। वैसे तो पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लड़कियों की स्थिति कुछ खास नहीं है और न ही अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों का धर्मांतरण कर शादी करने का ये इकलौता मामला ही था। एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में हर साल अल्पसंख्यक समुदाय की एक हजार लड़कियों को अगवाकर उनसे जबरन इस्लाम स्वीकार करवाया जाता है।
आरजू का मामला आया था सुर्खियों में
आरजू रजा भी इन्हीं लड़कियों में से एक थी जिन्हें हर साल पाकिस्तान में इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं की नजर में मामला आने के चलते आरजू को ऊपरी अदालत से राहत मिली लेकिन पाकिस्तान की हजारों लड़कियों को मदद नहीं मिलती और वे बिना उम्र सीमा तक पहुंचे और बिना सहमति के ही जबरन शादी करने और आगे की जिंदगी उस शख्स के साथ गुजारने को मजबूर कर दी जाती हैं। इन लड़कियों को अगवाकर उनकी शादी करा दी जाती है और कई बार में कर्ज में डूबे मां-बाप को मजबूर कर उन्हें जबरन उठा लिया जाता है।
मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि कोरोना वायरस के दौरान लागू हुए लॉकडाउन के चलते इसमें और तेजी आई है क्योंकि स्कूल बंद चल रहे हैं और लड़कियां इन दिनों घरों और समाज में ज्यादा नजर आ रही है। कोरोना वायरस के चलते रोजगार और उद्योग कमजोर पड़े हैं जिसकी वजह से लोग अधिक कर्ज में डूबे हैं। इसके चलते पाकिस्तान में दुल्हनों की तस्करी करने वाले इंटरनेट पर अधिक सक्रिय हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसी महीने धार्मिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर 'खास चिंता वाला देश' घोषित किया था। अमेरिका की ये घोषणा धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग द्वारा दी गई उस रिपोर्ट पर आधारित थी जिसमें ये कहा गया था कि पाकिस्तान में हिंदू, ईसाई और सिख समुदाय की नाबालिग लड़कियों को अगवाकर उनसे जबरन इस्लाम स्वीकार करवाया जाता है फिर वे जबरन शादी या रेप का शिकार होती है।
अधिकांश लड़कियां हिंदू समुदाय से
इन लड़कियों में अधिकांश हिंदू समुदाय से होती हैं जो दक्षिणी सिंध प्रांत से होती हैं लेकिन दो नए केस ऐसे आए हैं जिनमें ये लड़कियां ईसाई समुदाय से हैं। आरजू भी इन्हीं लड़कियों में थी। उसे अक्टूबर में कराची स्थित उसके घर के बाहर से अगवाकर कर लिया गया था। दो दिन बाद 44 वर्षीय शख्स कोर्ट में निकाहनामा के कागजात लेकर पेश हुआ जिसमें उसने खुद को उसका शौहर बताया।
अक्सर इन लड़कियों को अगवा करने वालों में उनकी पहचान वालों की मिलीभगत होती है या फिर दुल्हन की तलाश करने वाले तस्कर इन्हें अगवा करते हैं। कई बार ये लड़कियों को बड़े जमीदार उठवा लेते हैं जब उनकी जमीनों पर काम करने वाले उनके माता-पिता उनका कर्ज नहीं चुका पाते हैं। इस दौरान पुलिस भी इन गरीब अल्पसख्यकों की मदद नहीं करती है। एक बार लड़की के इस्लाम स्वीकार करते ही उसकी जल्द से जल्द से किसी उम्रदराज व्यक्ति से उसकी शादी की जाती है जो कि कई बार उसे अगवा करने वाले ही होते हैं।
दहलाने वाली है नेहा की कहानी
ईसाई लड़की नेहा की भी यही कहानी है। उसे उसकी ही बिल्डिंग में रहने वाली एक परिचित आंटी अपने साथ अस्पताल चलने के बहाने ले गई। लेकिन वह उसे एक घर में ले गई और उससे एक 45 साल के आदमी से निकाह करने को कहा। जब उसने मना किया तो उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया। बाद में दो शख्स आए जिसमें एक वह था जिससे उसकी शादी कराई जानी थी। बाद में उसके सामने एक कागज साइन के लिए लाया गया जिस पर उसका नाम फातिमा लिखा हुआ था।
नेहा की जिस शख्स से शादी हुई उसके पहले से दो बच्चे थे। उसे कमरे में बंद कर दिया जहां उसका जबरन बना शौहर रोज उसके पास आता। दिन में उसकी बड़ी बेटी नेहा के लिए खाना लाती। वह उनसे रोज मदद की गुहार लगाती लेकिन वह अपने पिता से डरी रहती थी। आखिर एक सप्ताह बाद वह मानी और एक बुर्का और 500 रुपये उसे दिए जिसे लेकर नेहा वहां से भाग निकली। लेकिन जब घर पहुंची तो यहां पर उसके परिवार वाले उसे अपनाने को तैयार नहीं हैं। उसके परिवार को डर है कि नेहा का शौहर उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। इतना ही नहीं नेहा का भाई तो गन लेकर उसे मारने कोर्ट में भी पहुंच गया था। फिलहाल नेहा को कराची के एक चर्च में आश्रय मिला है।
विरोध करने पर परिवार को किया जाता है प्रताड़ित
अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों को इसलिए भी अगवा कर लिया जाता है कि यौन कुंठित लोगों की इच्छा पूरी करने के लिए पाकिस्तान में आसान शिकार होती हैं। ऐसे लोगों के लिए इस्लाम स्वीकार करने से ज्यादा महत्वपूर्ण लड़की का कुंवारी होना होता है। अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों को अगवा करने का फायदा ये हैं इन्हें प्रशासन से भी अधिक मदद नहीं मिलती और इन्हें आसानी से दबाया जा सकता है। विरोध करने पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ सबसे आसान ईशनिंदा का आरोप लगा देना है। पाकिस्तान की 22 करोड़ की आबादी में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 3.6 प्रतिशत है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू और ईसाई लड़कियों के साथ जबरन निकाह की घटनाएं बड़ी संख्या में होती है। ऐसी घटनाओं पर न तो पुलिस प्रशासन ध्यान देता है और न ही वहां पर राजनेता ही इस मुद्दे पर बोलते हैं। यहां तक कि कोर्ट में भी इन मुद्दों पर पीड़ितों के हक में फैसला नहीं आता है।
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