Mainpuri : दुर्लभ प्रजाति के 300 कछुए बरामद, पुलिस ने किया तस्करी करने वाले गैंग का पर्दाफाश
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में थाना घिरोर क्षेत्र अंर्तगत पुलिस ने कछुओं की तस्करी कर रही एक गैंग को घर दबोचा है। बताया जा रहा है कि इनके पास से दुर्लभ प्रजाति के लगभग 300 कछुओं की बरामदगी हुई है।
वास्तु
शास्त्रियों
की
सलाह
पर
अपने-अपने
घरों
में
खूबसूरती
बढ़ाने
के
लिए
कांच
के
बर्तनों
में
कछुओं
को
रखे
जाने
का
चलन
लगातार
बढ़ता
ही
चला
जा
रहा
है।
इसके
पीछे
यह
भी
माना
जा
रहा
है
घरों
में
रखने
वाले
इन
कछुओं
के
बलबूते
परिवार
में
सुख
समृद्धि
आती
है।
साथ
ही
लोगों
को
लक्ष्मी
यानि
धन
की
भी
बढ़ोतरी
होती
है।
कुछ
इस
तरह
की
ही
भ्रांतियो
के
कारण
दुर्लभ
प्रजाति
के
कछुओं
की
तस्करी
थमने
का
नाम
नहीं
ले
रही
है।
दुर्लभ प्रजाति के 300 कछुए बरामद
दरअसल,
उत्तर
प्रदेश
के
मैनपुरी
में
थाना
घिरोर
क्षेत्र
अंर्तगत
पुलिस
ने
कछुओं
की
तस्करी
कर
रही
एक
गैंग
को
घर
दबोचा
है।
बताया
जा
रहा
है
कि
इनके
पास
से
दुर्लभ
प्रजाति
के
लगभग
300
कछुओं
की
बरामदगी
हुई
है।
पुलिस
अधीक्षक
कमलेश
दीक्षित
ने
जानकारी
देते
हुए
बताया
कि
बरामद
किये
गए
कछुओं
की
कीमत
लगभग
15
लाख
है।
उन्होंने
बताया
कि
उन्हें
अंतर
राज्यीय
तस्करी
के
लिए
ले
जाए
जा
रहे
कछुओं
के
बारे
में
मुखबिरों
द्वारा
सूचना
मिली
थी।
जिसके
बाद
पुलिस
टीम
द्वारा
कार्यवाही
कर
छापेमारी
की
गई।
फरार
होने
में
कामयाब
हुए
तस्कर
इस
छापेमारी
में
मैनपुरी
की
घिरोर
थाना
पुलिस
ने
दुर्लभ
प्रजाति
के
3
सैकड़ा
कछुओं
को
बरामद
किया
है।
हालाँकि
इस
दौरान
तस्कर
किसी
तरह
कछुओं
को
छोड़कर
फरार
हो
गए।
पुलिस
पूरे
मामले
की
जांच
कर
रही
है।
वहीं
पुलिस
द्वारा
कछुआ
को
बरामद
करने
के
बाद
वन
विभाग
के
सुपुर्द
कर
दिया
गया
है
और
कछुओं
की
तस्करी
कर
रही
गैंग
की
तलाश
में
पुलिस
जुट
गई
है।
बता
दें
कि
कछुओं
की
तस्करी
करने
वाली
गैंग
के
दो
सदस्यों
के
नाम
पुलिस
के
संज्ञान
में
आए
हैं,
जिनकी
गिरफ्तारी
के
प्रयास
भी
पुलिस
ने
शुरू
कर
दिए
हैं।
राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य
वैसे देखा जाए तो कछुओं की तस्करी का यह काम आज शुरू नहींं हुआ है। बरसों से तस्कर इस काम में लगे हुए हैं। मैनपुरी और आसपास के इलाके में चंबल, यमुना, सिंधु, क्वारी और पहुज जैसी अहम नदियों के अलावा छोटी नदियों और तालाबों में कछुओं की भरमार है। 1979 में सरकार ने चंबल नदी के लगभग 425 किलोमीटर में फैले तट से सटे हुए इलाके को राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य घोषित किया था। इसका मकसद घड़ियालों, कछुओं (रेड क्राउंड रूफ टर्टल यानी गर्दन पर लाल व सफेद धारियों वाले शाल कछुए) और गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन (राष्ट्रीय जल जीव) का संरक्षण था। मगर, यहां हुआ कुछ उल्टा ही। दरअसल, इस अभ्यारण्य की हदें उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और राजस्थान तक फैली हुई हैं। इसमें से 635 वर्ग किलोमीटर उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा में है।
तकरीबन 85 हजार से ज्यादा कछुए बरामद
अभ्यारण्य बनने के एक साल बाद यानी 1980 से आज तक इटावा में ही सैकड़ों की संख्या में तस्कर गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनके पास से कुल 85 हजार से ज्यादा कछुए बरामद किए गए। इनमें से 14 तस्कर पिछले दो बरसों में पकड़े गए हैं, जिनके पास से 12 हजार से ज्यादा कछुए बरामद हुए। इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहींं कि जब इतने कछुए पकड़ में आए तो कितने सप्लाई हो चुके होंगे। यह धंधा सैकड़ों रुपए प्रति कछुए से शुरू होकर हजारों-लाखों के खेल तक पहुंचता है।
चीन में है इन कछुओं की भरी डिमांड
जानकारों
का
कहना
है
कि
कछुओं
की
सप्लाई
पश्चिम
बंगाल
और
बांग्लादेश
के
रास्ते
चीन,
हांगकांग
और
थाईलैंड
जैसे
देशों
तक
की
जाती
है।
वहां
लोग
कछुए
के
मांस
को
पसंद
करते
हैं।
साथ
ही
इसे
पौरुषवर्धक
दवा
के
रूप
में
भी
इस्तेमाल
किया
जाता
है।
इन
तमाम
देशों
में
कछुए
के
सूप
और
चिप्स
की
जबरदस्त
मांग
है।
भविष्यवाणी
के
लिए
कछुओं
की
खाल
का
इस्तेमाल
चीन
के
लोग
कई
तरह
के
पूजा-पाठ
और
भविष्यवाणी
के
लिए
कछुओं
की
खाल
का
इस्तेमाल
लंबे
अरसे
से
करते
आए
हैं।
यह
परंपरा
1,000
ईसा
पूर्व
यानी
शांग
काल
से
चली
आ
रही
है।
कछुए
की
खाल
के
जरिए
भविष्य
बताने
की
कला
को
किबोकू
कहा
जाता
है।
इसमें
कछुए
के
खोल
को
गर्म
करके
उस
पर
पड़ने
वाली
दरारों
और
धारियों
को
पढ़कर
भविष्य
जाना
जाता
है।
इसी
तरह
चीन
के
लोग
कछुए
के
खोल
की
जेली
बनाकर
दवाओं
में
इस्तेमाल
करते
हैं।
कछुओं
के
खोल
से
तरह-तरह
का
सजावटी
सामान,
आभूषण,
चश्मों
के
फ्रेम
आदि
भी
बनाए
जा
रहे
हैं।
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हमारे देश में कछुओं की लगभग 55 जतियाँ पाई जाती हैं, जिनमें साल, चिकना, चितना, छतनहिया, रामानंदी, बाजठोंठी और सेवार आदि प्रसिद्ध कछुए हैं। इनमे कई कछुए दुर्लभ प्रजाति के हैं जिन्हें मल्टीनेशनल शहरों में लोग एक्वेरियम में रखकर के शौक पूरा करते है तो वही इसका यौनवर्धक दवाओं में भी प्रयोग किया जाता है। जिसके चलते इस धंधे ने आज लगभग पूरे भारत में अपने पैर पसार लिए हैं। ये शिकार कई वषों से लगातार सेंचुरी क्षेत्र के कर्मचारियों की मिली भगत से चल रहा है। इतने मामले सामने आते हैं। फिर भी कोई कार्यवाही अमल में नहीं आती है।
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