द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देकर उद्धव ठाकरे ने दिए संकेत, क्या फिर भाजपा के साथ आएंगे!
मुंबई, 13 जुलाई। महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना के बागी विधायकों ने बड़ा उलटफेर करते हुए महाविकास अघाड़ी की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर ना सिर्फ सत्ता में वापसी की बल्कि तकरीबन सिर्फ 40 विधायकों की मदद से मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हासिल की। एकनाथ शिंदे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सत्ता के इस परिवर्तन के साथ शिवसेना के बीच अंदरूनी लड़ाई शुरू हो गई। एक तरफ जहां उद्धव ठाकरे पार्टी को बचाने की कोशिश में जुटे हैं तो दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे दावा कर रहे हैं कि शिवसेना उनकी है। इन सब के बीच राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में शिवसेना के दोनों गुटों का रुख काफी अहम हो जाता है।
खुद के नेताओं का दबाव
दरअसल शिवसेना के बागी विधायक पहले ही द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं। वहीं शिवसेना विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को अपना समर्थन देने की बात कह चुकी थी। लेकिन पार्टी के दो फाड़ होने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने धर्म संकट यह था कि अगर वह अगर यशवंत सिन्हा के साथ जाती है तो बागी विधायकों के साथ वापस जाने के रास्ते बिल्कुल बंद हो जाएंगे। ऐसे में राजनीतिक मजबूरी के चलते आखिरकार उद्धव ठाकरे ने द्रौपदी मुर्मू को ही अपना समर्थन देने का फैसला लिया। खुद उद्धव ठाकरे ने इस बात को स्वीकार किया है कि वह अपने विधायकों के दबाव में थे और कोई छिपा हुई सच नहीं है
भाजपा के साथ फिर से वापसी की उम्मीद
उद्धव ठाकरे ने सोमवार को पार्टी के 18 में से 13 सांसदों की बैठक बुलाई। पहले ही पांच सांसद पार्टी से बगावत कर चुके हैं। ऐसे में 13 सांसदों के साथ बैठक के दौरान इन सांसदों ने उद्धव ठाकरे से अपील की कि वह द्रौपदी मुर्मू को अपना समर्थन दें और भाजपा के साथ समझौते के लिए दरवाजों को खुला रखें, साथ ही एकनाथ शिंदे के साथ एक बार फिर से वापसी के विकल्प को तलाशें। गौर करने वाली बात है कि पिछले हफ्ते सांसद राहुल शेवाले ने उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा था और कहा था कि शिवसेना को द्रौपदी मुर्मू को अपना समर्थन देना चाहिए।
अपने नेताओं को साथ बनाए रखना चाहते हैं उद्धव
पार्टी के भीतर फूट पड़ने के बाद उद्धव ठाकरे तमाम विधायकों और सांसदों को अपने साथ बनाए रखना चाहते हैं। वह बाहर किसी भी सूरत में यह संदेश जाने नहीं देना चाहते हैं कि बचे हुए सांसद और विधायकों में भी फूट पड़ रही है। लिहाजा वह कोई भी फैसला फूंक-फूंक कर ले रहे हैं। सूत्रों की मानें तो उद्धव ठाकरे द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देकर एक बड़ा संदेश यह देना चाहते हैं कि वह पीएम मोदी के साथ अच्छे संबंध रखने के पक्षधर हैं और यह संदेश भी देना चाहते हैं कि शिवसेना और भाजपा के एकसाथ आने के दरवाजे अभी भी खुले हैं।
आखिर क्यों ना दें द्रौपदी मुर्मू को समर्थन
द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के फैसले का बचाव करते हुए शिवसेना के नेता ने कहा कि जब एक आदिवासी महिला को देश के राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाया जाता है तो इसपर कोई ऐतराज क्यों करेगा। उन्हे रोकने का कोई भी प्रयास महाराष्ट्र के आदिवासी समुदाय में अच्छा संदेश नहीं देगा। इसके साथ ही शिवसेना के नेता ने कहा कि हमारे पास काफी कम विकल्प थे। एक तरफ जहां हमारे पास पढ़ी-लिखी आदिवासी नेता मुर्मू हैं तो दूसरी तरफ यशवंत सिन्हा विपक्ष के उम्मीदवार हैं, लेकिन विपक्ष में उनको लेकर आम सहमति नहीं है, ऐसे में शिवसेना क्यों उनको अपना समर्थन दे।
उद्धव ठाकरे पर निशाना नहीं साधेगी भाजपा
शिवसेना के एक करीबी नेता ने बताया कि बाल ठाकरे ने विचारधारा और राजनीतिक मतभेद को किनारे रखकर यूपीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी को अपना समर्थन दिया था। शिवसेना ने जिस तरह से इस बार इसी राह पर चलते हुए द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान किया है उसका भाजपा ने स्वागत किया है। सूत्रों की मानें तो भाजपा की शीर्ष नेतृत्व की ओर से कहा गया है कि वह उद्धव ठाकरे पर निशाना ना साधें। इससे पहले जिन शिवसेना के विधायकों को अयोग्य घोषित करने की लिस्ट तैयार की गई थी उसमे आदित्य ठाकरे के नाम को शामिल नहीं किया गया था।
एक मीटिंग खत्म कर सकती है फासला
भाजपा के एक महासचिव की ओर से कहा गया है कि अगर शिवसेना शिंदे के बागी विधायकों को गले लगाने के लिए तैयार है और एक बार फिर से भाजपा के साथ आने के पक्ष में है तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनकी इसमे मदद करेगा। आखिरकार इस सब के लिए सिर्फ एक फोन कॉल की जरूरत है, या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्धव ठाकरे के बीच एक बैठक हो सकती है और मामला सुलझ सकता है।