नौरादेही में धरी रह गई तैयारियां, अफ्रीकन चीते जा रहे कूनो, 12 साल से चल रहीं यहां तैयारियां
सागर, 12 अगस्त। मप्र के सागर स्थित नौरादेही अभयारण्य को अफ्रीकन चीता प्रोजेक्ट में मायूसी हाथ लगी। करीब 12 साल से सागर से लेकर दिल्ली तक लंबी प्रक्रिया चली थी। देहरादून वन्य प्राणी संस्थान के विशेषज्ञों की टीमें कई दौर में नौरादेही अभयारण्य में चीतों को बसाने के लिए निरीक्षण करने आई हैं। चीता प्रोजेक्ट के लिए यहां जंगल में काफी तैयारियां भी की गई थीं। चीतों को बसाने के लिए लंबे-चैड़े घास के मैदान तैयार कराए गए। अन्य अभयारण्य से चीतलों को लगाकर बसाया गया था ताकि अफ्रीकन मेहमानों को भरपूर भोजन मिल सके।
मप्र के नौरादेही को अफ्रीकन चीता प्रोजेक्ट में मायूसी हाथ लगी है
मप्र के नौरादेही को अफ्रीकन चीता प्रोजेक्ट में मायूसी हाथ लगी है। सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले में करीब 1197 वर्ग किलोमीटर एरिया में फैले नौरादेही वन्य प्राणी अभयारण्य में बीते करीब 12 साल से अफ्रीकन मेहमानों चीतों को बसाने की योजना पर काम चला था। यहां देहरादून वन्य प्राणी संस्थान के एक्सपर्ट की टीमें कई दौर में निरीक्षण करने भी आई थीं। मप्र में नौरादेही और कूनो पालपुर को अफ्रीकन चीतों को बसाने के लिए सबसे उपयुक्त माना गया था। बावजूद इसके सरकार ने नौरादेही के बजाय कूलो पालपुर को तव्वजों दी है। नौरादेही में घास के मैदान, चीतों के शिकार के लिए चीतल का पुनस्र्थापन तक कराया गया था।
नौरादेही सहित कुल 4 अभयारण्य में एक्सपर्ट संभावनाएं तलाश रहे थे
वन विभाग से मिली जानकारी अनुसार अफ्रीकन चीतों का बसाने के लिए सागर के नौरादेही सहित देश के कुल चार वन्य प्राणी अभयारण्यों में प्राकृतिक रुप से चीतों को बसाने की संभावनाएं तलाशी जा रही थीं। इनमें नौरादेही वन्य प्राणी अभयारण्य सागर, कूनो पालपुर श्योरपुर, माधव नेशनल पार्क ग्वालियर एवं गांधी सागर अभयारण्य को शामिल किया गया था। इनमें लगातार एक्सपर्ट टीमों के निरीक्षण हुए। जिनमें सागर के नौरादेही और कूनो पालपुर को चीतों के प्राकृतिक आवास के लिए सबसे माकूल पाया गया था।
अभयारण्य में घास के मैदान तैयार किए गए हैं
अफ्रीकन चीतें मूलतः खेतों और ऊंची घास के मैदानों में रहते हैं। हल्की पहाड़ी इलाकों से लगे मैदान इनके लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। नौरादेही में चीतों के अनुकूल प्राकृतिक मैदान और पठार वाले इलाकें हैं। सरकार ने यहां घास के लंबे चैड़े मैदान तैयार कराए थे। वहीं चीतों का मुख्य आहार चीतल प्रजाति हैं, जिनका वे शिकार कर पेट भरते हैं। करीब दो साल पहले दूसरे अभयारण्यों से 200 से अधिक चीतलों को यहां पर शिफ्ट किया गया था।
चीतों से पहले बाघों को बसा लिया गया
नौरादेही में चीता प्रोजेक्ट चलते-चलते बाघों का पुनस्र्थापन जरुर करा लिया गया है। साल 2018 में यहां कान्हा से बाघिन और बांधवगढ़ से बाघ को लाकर बसाया गया था। वन विभाग और सरकार का यहा निर्णय सफल रहा और महज चार साल में यहां बाघों का कुनबा बढ़कर 2 से 10 पर पहुंच गया है। यह बाघों की वंशवृदिध के लिए सकारात्मक संकेत व परिणाम सामने आए हैं।
टाइगर रिजर्व बनाने शासन को भेजा गया है प्रस्ताव
नौरादेही अभयारण्य से अफ्रीकन चीता प्रोजेक्ट छिना तो बाघ प्रोजेक्ट मिल गया है। यह प्रोजेक्ट भविष्य के लिहाज से काफी सकारात्मक माना जा रहा है। बीते साल नौरोदही को नेशनल पार्क का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास शुरु किए गए थे, इसके बाद बीते दो महीने पहले नौरादेही को टाइगर रिजर्व बनाने के लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जा चुका है। यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो साल के अंत तक नौरादेही टाइगर रिजर्व बन जाएगा।