सीमा विवाद पर नेपाल को योगी आदित्यनाथ की चेतावनी, बोले- तिब्बत का हश्र रखे याद
लखनऊ। सीमा विवाद मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पड़ोसी देश नेपाल को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने देश की राजनीतिक सीमाएं तय करने से पहले उसके होने वाले प्रभावों को भी ध्यान में रखना चाहिए। उसे यह भी देखना चाहिए कि तिब्बत का क्या हश्र हुआ। उसे तिब्बत जैसी गलती नहीं करनी चाहिए। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने यह बात मीडिया से बात करते हुए कही।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत और नेपाल सदियों पुराने सांस्कृतिक रिश्ते हैं, जो केवल सीमाओं की बंदिशों से तय नहीं हो करते। कहा कि भारत और नेपाल भले ही दो देश हों लेकिन यह एक ही आत्मा हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल की सरकार को हमारे रिश्तों के आधार पर ही कोई फैसला करना चाहिए। अगर वह नहीं चेता तो उसे तिब्बत का हश्र याद रखना चाहिए। बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ गोरखपुर के महंत हैं और इस पीठ में श्रद्धा रखने वाले नेपाल में भारी संख्या में हैं। मुख्यमंत्री की पहल पर ही अयोध्या से नेपाल के सीता के जन्मस्थान जनकपुरी से बस सेवा शुरू की गई थी।
क्या
है
विवाद
गौरतलब
है
कि
31
मई
को
नेपाली
कैबिनेट
की
ओर
से
पास
किए
गए
नए
राजनीतिक
नक्शे
में
नेपाल
ने
भारतीय
क्षेत्र
लिपुलेख,
कालापानी
और
लिम्पियाधुरा
को
दर्शाया
था।
भारत
ने
नेपाल
से
इस
मुद्दे
पर
साफ
कर
दिया
है
कि
वह
सीमाओं
के
अनाधिकृत
विस्तार
को
स्वीकार
नहीं
करेगा।
बता
दें
कि
भारत
के
उत्तराखंड
राज्य
के
बॉर्डर
पर
नेपाल-भारत
और
तिब्बत
के
ट्राई
जंक्शन
पर
स्थित
कालापानी
करीब
3600
मीटर
की
ऊंचाई
पर
स्थित
है।
भारत
का
कहना
है
कि
करीब
35
वर्ग
किलोमीटर
का
यह
इलाका
उत्तराखंड
के
पिथौरागढ़
जिले
का
हिस्सा
है
जबकि
नेपाल
सरकार
का
कहना
है
कि
यह
इलाका
उसके
दारचुला
जिले
में
आता
है।
नाथ
पंथ
के
रास्ते
सुलझेगा
विवाद
एनबीटी
ऑनलाइन
की
खबर
के
मुताबिक,
दोनों
देश
मामले
को
बातचीत
के
जरिए
सुलझाने
की
कोशिश
में
हैं।
वहीं,
विशेषज्ञ
बताते
हैं
कि
नेपाल
से
संबंध
ठीक
रखने
हैं
तो
इसका
एक
सरल
मार्ग
गुरु
गोरखनाथ
का
नाथ
पंथ
भी
हो
सकता
है।
उत्तर
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
और
गोरक्ष
पीठाधीश्वर
इसमें
सहायक
सिद्ध
हो
सकते
हैं।
यह
वह
सूत्र
है
जिससे
बंधकर
नेपाल
की
जनता
और
वहां
का
शासक
वर्ग
हमसे
अलग
होने
के
बारे
में
सोच
भी
नहीं
सकता।
नेपाल
शाही
परिवार
गुरु
गोरखनाथ
को
अपना
राजगुरु
मानता
रहा
है।
नेपाल
और
नाथ
पंथ
एक-दूसरे
में
ऐसे
रचे-बसे
हैं
कि
शासक
वर्ग
भले
चीन
की
भाषा
बोलने
लगे
लेकिन
नेपाल
की
जनता
हमेशा
भारत
के
स्वर
में
ही
स्वर
मिलाकर
बोलेगी।