लखनऊ में 100 साल से बंद है बकरीद के मौके पर गोहत्या
लखनऊ। बकरीद के मौके पर लखनऊ के मुसलमानों ने तकरीबन एक शताब्दी पहले गो हत्या को स्वेच्छा से छोड़ दिया है। मुसलमानों ने यूपी गो रक्षा एक्ट 1955 के अस्तित्व में आने से पहले ही बकरीद के मौके पर गो हत्या नहीं करने का फैसला लिया था। लखनऊ में यह परंपरा आज भी जारी है और इसकी पुष्टि श्री धर्म भारत महामंडल ने भी की है। इस महामंडल की स्थापना 1857 में हुई थे जिसकी नींव पंडित मदन मोहन मालवीय ने डाली थी।
Must Read: ईद-उल-जुहा (बकरीद) से जुड़ी खास बातें
बारी बंधुओं ने छेड़ी थी मुहिम
मौलाना अब्दुल बारी फरंगी महली के नेतृत्व में जोकि एक स्वतंत्रता सेनानी थी और उन्होंने खिलाफत आंदोलन में हिस्सा लिया था ने अली बंधुओं के साथ बकरीद के मौके पर गो हत्या पर रोक लगाने के लिए अभियान छेड़ा था।
महात्मा गांधी ने भी इस मुहिम का सराहा था
बाद में मौलाना बारी ने भी इस अभियान को आगे जारी रखा, महात्मा गांधी ने 1919 में टाइम्स ऑफ इंडिया को लिखे पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि कैसे इस मुहिम को बिना किसी शर्त के आगे बढ़ाया गया और कैसे मौलाना के समर्थन में काफी लोग सामने आए।
महात्मा गांधी के पत्र के जवाब में मौलाना ने लिखा था कि मैं अपने समर्थकों के बीच इस बात का प्रचार कर रहा हूं कि कैसे गो हत्या पर रोक लगाई जाए। उस दिन एक टेलीग्राम में मौलाना बारी ने कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए इस बार बकरीद के मौके पर गो बलि नहीं दी जाएगी।
मुस्लिम लड़की ने बनाई गणेश मूर्ति, गांव वाले कर रहे पूजा
1920 से ही बंद है गो हत्या
मौलाना बारी ने 10 जनवरी 1920 को एक पत्र गांधीजी को लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि श्री भारत धऱ्मा महामंडल ने उनका शुक्रिया अदा किया है। इसके साथ ही हमने पूरे लखनऊ में बकरीद के मौके पर गाय की बलि पर रोक लगाने का फैसला लिया है।
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के लिए उठाया कदम
15 जनवरी 1950 को सहारनपुर में हिंदू मुस्लिम कॉफ्रेंस में मोहम्मद बारी ने कहा था कि ना तो हिंदुओं और ना ही गांधीजी ने उन्हें गाय की हत्या को बंद करने के लिए कहा है, हमने यह फैसला खुद से हिंदू भाईयों की भावनाओं को आहत नहीं करने के लिया है। बारी बंधुओं के बाद कई आला मुस्लिम लीग के नेताओं ने देश के अन्य हिस्सों में बकरीद के मौके पर गो हत्या नहीं करने का फैसला लिया था।