बिहार में वार्मअप मैच खेल रही थी बसपा, तीन सीटों पर चौंकाया
पटना। बिहार में बहुजन समाज पार्टी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव वार्मअप मैच की तरह था। वह अभ्यास के लिए सभी 40 सीटों पर लड़ी थी। लेकिन तीन लोकसभा क्षेत्रों में बसपा ने अपने प्रदर्शन से अन्य राजनीतिक दलों को चौंकाया है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे चुनाव क्षेत्रों में बसपा पिछले कई वर्षों प्रभाव विस्तार के लिए सक्रिय है। विधानसभा चुनावों उसको कामयाबी मिल चुकी है। 2000 के विधानसभा चुनाव में बसपा के पांच विधायक चुने गये थे। लेकिन इस कामयाबी को वह जारी नहीं रख सकी। अभी तक लोकसभा चुनाव में उसको सफलता नहीं मिली है। लेकिन इस बार कुछ हद तक उसने उपस्थिति दर्ज करायी है। सासाराम, बक्सर और वाल्मीकि नगर में बसपा ने 50 हजार से अधिक वोट हासिल किये हैं।
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सासाराम में सबसे अच्छा प्रदर्शन
सासाराम सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र है और यह उत्तर प्रदेश की सीमा के नजदीक है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मनोज कुमार ने बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था। उन्होंने कुल 86 हजार 406 वोट हासिल किये। वे तीसरे स्थान पर रहे। जिस तरह से कांग्रेस की मीरा कुमार यहां लगातार चुनाव हार रही हैं उससे लगता है कि बसपा यहां मुख्य प्रतिद्वंद्वी का स्थान हासिल कर लेगी। अभी तक गैरभाजपा मत कांग्रेस को मिलते रहे हैं। लेकिन जैसे ही मजबूत विकल्प मिल जाएगा ये वोट उधर शिफ्ट हो जाएंगे। बसपा इसके लिए लगातार मेहनत कर रही है।
बक्सर में सुशील कुमार सिंह ने चौंकाया
बक्सर भी उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है। इस सीट पर बसपा के सुशील कुमार सिंह कुशवाहा ने 80 हजार 221 वोट हासिल किये। उन्होंने तीसरा स्थान हासिल किया। 2014 में इस सीट पर ददन पहलवान ने बसपा से चुनाव लड़ा था। उन्होंने करीब 92 हजार वोट हासिल कर बसपा की धमक दिखायी थी। लेकिन ददन पहलवान खुद डुमरांव से विधायक रहे हैं। वे अभी जदयू के विधायक हैं। उनका बक्सर इलाके में अपना प्रभाव भी है। इस लिए बसपा को यहां इतने वोट मिले थे। लेकिन इस बार तो बसपा ने एक नये चेहरे पर दांव खेला जिसने गंभीर चुनौती दी।
वाल्मीकि नगर में बसपा की चुनौती
वाल्मीकि
नगर
पश्चिम
चम्पाराण
जिले
का
भाग
है
जो
उत्तर
प्रदेश
सीमा
के
पास
है।
इस
सीट
पर
बसपा
के
दीपक
यादव
ने
62
हजार
963
वोट
हासिल
किये।
वे
तीसरे
स्थान
पर
रहे।
इसके
अलावा
औरंगाबाद
में
बसपा
के
नरेश
यादव
ने
34
हजार
33
मत
हासिल
कर
तीसरा
स्थान
प्राप्त
किया।
गोपालगंज
में
भी
बसपा
के
युगल
किशोर
को
36
हजार
से
अधिक
मिले
और
वे
भी
तीसरे
स्थान
रहे।
बसपा की राह में चुनौती
बसपा
अभी
तक
अपने
प्रभाव
विस्तार
के
दलित
मतों
पर
ही
अधिक
मिर्भर
रही
है।
लेकिन
2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
एक
नयी
बात
ये
हुई
कि
जाति
आधारित
राजनीति
करने
वाले
दलों
को
जोर
का
झटका
लगा
है।
सपा
और
बसपा
का
गठबंधन
भी
इसी
वजह
से
नाकाम
हुआ।
जहां
तक
दलित
मतों
की
बात
हैं
तो
ये
तबका
भी
मायावती
से
दूर
हुआ
है।
उत्तर
प्रदेश
में
मायावती
ने
10
सुरक्षित
लोकसभा
सीटों
पर
चुनाव
लड़ा
था।
दस
में
से
बसपा
केवल
दो
सीट
ही
जीत
पायी।
जब
कि
आठ
सीटों
पर
भाजपा
जीती।
यानी
मायावती
केवल
दलित
मतों
के
बल
पर
आगे
नहीं
बढ़
सकती
है।
बिहार
के
सासाराम,
काराकाट,
आरा
इलाके
में
अभी
भी
अधिकांश
दलित
वोटर
भाकपा
माले
के
साथ
है।
ये
कैडर
वोटर
हैं।
ये
केवल
जाति
को
देख
वोट
नहीं
करते।
मायावती
केवल
दलित
चिंतन
से
भविष्य
की
राजनीति
नहीं
कर
सकती।
बिहार
में
बसपा
ने
जो
तीन
बेहतर
प्रदर्शन
किये
हैं
उनमें
दो
उम्मीदवार
पिछड़ी
जाति
से
आते
हैं।